क्या एक पिता पितृओं के उद्धार हेतु, अपनी ही पुत्री के साथ विषयभोग कर सकता है?

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दर्शकगण कृपया ध्यान दें!
आप में से बहुत से लोग इस बात को लेकर असमंसज में है कि, महर्षि अगस्त्य ने जिस कन्या की सृष्टि की वो उनकी बेटी कैसे हो गई?
तो दोस्तों यहां पर समझने वाली बात ये है कि, जो जिसकी सृष्टि या रचना करता है, वो उसका जनक या पिता कहलाता है, ये ठीक वैसा ही है, जैसे ब्रह्मा ने सभी की रचना की, इसीलिये हम उन्हें 'परम पिता ब्रह्मा' कहते है, हालांकि ये उनकी ‘बॉयोलॉजिकल डॉटर’ नहीं है और हमने भी ऐसा नहीं कहा है।
और वे लोग जो वीडियों का टाइटल देखकर कहानी को कल्पनिक बता रहें हो, वो पहले महाभारत का वनपर्व के ‘तीर्थयात्रापर्व, अध्याय 97’ पढ़कर अपनी गलहफहमी दुर कर लें।
धन्यवाद!

दोस्तों आज हम आपको महाभारत के वनपर्व में वर्णित एक ऐसी कथा सुनाने जा रहे है, जिसमें एक पिता ने अपनी ही पुत्री के साथ विष्यभोग करने की इच्छा प्रकट थी,

अब प्रश्न ये उठता है कि, क्या उस बेटी ने भी इसे स्वीकार्य कर लिया था, या फिर उस मुनि की ये कामना अधुरी ही रही,

तो चलिये एक बार विस्तार से प्रकाश डालते है कि, ये सब कुछ कैसे हुआ और इसके क्या परिणाम हुए,

नमस्कार और एक बार फिर स्वागत है आप सभी का आपके अपने वीडियों कलश युट्यूब चैनल पर।
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