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इस Video में एक संदेश दिया गया है.. एक सत्य कहा गया है ..
मैं नारायण परमेश्वर हूँ। मैने अपने भीतर ब्रह्म, विष्णु, शिव, दुर्गा आदि ४ निराकार ईश्वर की उत्पत्ती की है। मैंने ईश्वर दुर्गा द्वारा काली, लक्ष्मी, सरस्वती आदि ३ निराकार ईश्वर की उत्पत्ती की है। मैं नारायण ईश्वर दुर्गा द्वारा मच्छ, कच्छ, गज, नारद आदि ४ अवतार को उत्पन्न करता रहता हूँ।
मैं नारायण परमेश्वर हूँ। मैंने ईश्वर शिव द्वारा शंकर भगवान को उत्पन्न किया है। मैंने ईश्वर ब्रह्म द्वारा दत्त्तात्रेय भगवान को उत्पन्न किया है। मैंने ईश्वर विष्णु द्वारा परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध आदि ४ भगवान को उत्पन्न किया है। मैंने स्वयं के अंश से कल्कि भगवान को उत्पन्न किया है।
मैंने आकाश, वायु, अग्नि, जल, भुमि आदि ५ तत्वो से संपूर्ण प्रकृती की निर्मिती की है। मैने शांती, समय, स्थान, ऊर्जा, शक्ति, चक्र, प्रकाश, कंपन, माया आदि ९ आयामों से ७ ब्रह्मांड एवं १ बैकुंठ की निर्मिती की है। मैंने अपने भीतर केंद्र में बैकुंठ की निर्मिती की है। सभी निराकार ईश्वर, साकार भगवान, मनुष्य, पशुपक्शी, पेड पौधे, संपूर्ण प्रकृती , ब्रह्मांड,एवं बैकुंठ मेरे भीतर बैकुंठगर्भ में समाविष्ठ हैं। मेरे भीतर मौजुद प्रत्येक कण मेरे नियमों के अधीन हैं। मैने सभी निराकार ईश्वर को विभिन्न नियमों के तहत उत्पन्न किया है।
मैं नारायण परमेश्वर सभी मनुष्य, पशुप्राणि, पेड़पौधो को विभिन्न नियमों के तहत उत्पन्न करता हूँ। मैंने संपुर्ण प्रकृती की विभिन्न नियमों के तहत निर्मिती की है। मैंने सभी आयाम, ब्रह्मांड, एवुं बैकुंठ की विभिन्न नियमों के तहत उत्पत्ती की है। सभी ब्रह्मांड मेरे नियमों को धारण करते हुए एक निश्चित गति एवं अंतर के सिदधांत के अनुसार बैकुंठ के ईर्दगिर्द घूमते रहते हैं। प्रकृती मेरे नियम को धारण करते हुए अपने स्वरूप में परिवर्तन करती रहती है। सभी आयाम मेरे नियमों को धारण करते हुए विभिन्न कार्य करते रहते हैं।
मेरे भीतर मौजुद सभी भौतिक पदार्थ एवं जीव, शरीर, प्रकृती एवं आयाम के विभिन्न तत्वो से निर्माण होते हैं। प्रकृती के प्रत्येक तत्व के विभिन्न नियम होते हैं, आयाम के प्रत्येक तत्व के विभिन्न नियम होते हैं, इस कारण सभी भौतिक पदार्थ एवं जीव शरीर का गुणधर्म विभिन्न होता है। प्रकृती में मौजुद प्रत्येक भौतिक तत्व का अपना अलग गुणधर्म होता है। प्रकृती के आकाश, वायु, अग्नि, जल, भूमि सभी तत्वों का गुणधर्म विभिन्न होता है। प्रकृती में मौजुद प्रत्येक जीव का अपना अलग गुणधर्म होता है। पेड़पौधो, जीवजंतु, पशुप्राणि, पक्षी, मछली, आदि सभी जीव का अपना अलग गुणधर्म है।
पेड़पौधो, जिवजंतु, पशुप्राणि, पक्षी, मछली, आदि सभी जीव और नदी, पर्वत, पृथ्वी, चुंद्र, सुर्य , ब्रह्मांड आदि सभी भौतिक पदार्थ का गुणधर्म विभिन्न होता है, किंतु सभी का गुणधर्म सनातन होता है। किसी भी भौतिक पदार्थ के गुणधर्म में बदलाव नही हो सकता है। किसी भी जीव के गुणधर्म में बदलाव नही हो सकता है। शुरू से अंत तक प्रत्येक जीव एवं भौतिक पदार्थ का गुणधर्म सनातन रहता है।
मेरे भीतर. बैकुंठ में मौजुद सभी भौतिक पदार्थ, खगोलीय पिंड, प्रकृती, पेड़पौधे, जीवजंतु, पशुप्राणि, पक्षी, मछली आदि. सभी भौतिक पदार्थ एवं जीव शरीर भोगी होते हैं। एकमात्र मनष्यु जीव कर्मी होते हैं। सभी भौतिक पदार्थ एवं जीव शरीर भोगी होने के कारण वे सभी प्रकृती के नियम एवं स्वयं के गुणधर्म को धारण करते हुए धर्म का पालन करते हैं। सभी भौतिक पदार्थ एवं जीव शरीर कर्मी नही होने के कारण वे कोई कर्म एवं अधर्म नही करते हैं, केवल अपने गुणधर्म के अनुकूल अपने जीवन को भोगते हैं।
मैं नारायण परमेश्वर. मनष्यु को स्वयं के अनुसार कर्म करने की स्वतंत्रता देता हूँ। मनष्यु को स्वतंत्रतापुर्वक कर्म करने की सुविधा प्राप्ति होने के कारण. मनुष्य विभिन्न प्रकार के कर्म करता है। कुछ कर्म धर्म के अनुकूल करता है, तो कुछ कर्म धर्म के विपरित करता है।
मनुष्यके सद्गुण एवं. दुर्गुण आदि २ प्रकार के विभिन्न गुणधर्म होते है । मुक्ति, आनंद , ज्ञान, शांति, सुख, प्रेम, पवित्रता, शक्ति आदि ८ प्रमुख सद्गुण होते है। काम, क्रोध, लोभ, लत, अहंकार, भय, ईर्षा, क्रूरता आदि ८ प्रमुख दुर्गुण होते हैं। मनुष्य को अपने भीतर मौजुद सद्गुणों को धारण करना धर्म होता है, और अपने भीतर मौजुद दुर्गुण को धारण करना. अधर्म होता है। मनष्यु को मोक्ष प्राप्ति के लिए और अपने जीवन को आनंदमय बनाने के लिए धर्म और अधर्म दोनों का ज्ञान होना अति आवश्यक होता है।
मनुष्य को सनातन धर्म का ज्ञान देने मैं नारायण परमेश्वर निराकार ईश्वर ब्रह्म, विष्णु, शिव द्वारा शंकर, दत्तात्रेय, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध आदि साकार भगवान को बैकुंठ से पृथ्वीलोक पर. प्राचीन, मध्य, आधुनिक आदि ३ काल के प्रत्येक युग में अवतरित करता रहता हूँ। मैं नारायण परमेश्वर. स्वयं के सूक्ष्म अंश. भगवान कल्कि को. बैकुंठ से पृथ्वी पर प्रत्येक पर्व के अंतिम कलयुग में. अवतरित करता रहता हूँ।
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