"परमतत्व के मिलन में बाधक अहंकार " जीवन चलने का नाम,सुधा सक्सेना(प़ाक रूह)

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गरिमा"
गगन भी तू ,और उसका सुभग भी तू ,
नीड़ भी तू और उसका विहग भी तू ।
प्रीत तेरी है अमिट,....
पुञ्ज तेरा ,नीड़ में मेरे निहित,
गंध और स्पर्श से आवृत मन,
सिक्त तेरी आत्मा से रूप-तन।।
मौन प्रातः पुष्पमाला ...
पश्चिमी सागर से नित भर..
कर-कमल से नित्य प्रातः ,
अवनि का अभिषेक करतीं ,
किन्तु नभ फैला जहाँ ,
नित आत्मा के संचरण को ,
ज्योत्स्ना फैली वहाँ ,
निष्पङ्ग श्वेत अटूट प्रण को ।।
लोक इतना शान्त वह,
कि शब्द की छाया गई न,
रात-दिन का क्रम न चलता,
वर्ष की रेखा खिंची न......!!!!
सुधा सक्सेना(पाक रूह)

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