क्या है गोमती चक्र ?? पद्धति , प्रभाव एवं प्रयोग!

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लक्ष्मी समुद्र से निकली है और गोमतीचक्र प्रत्यक्ष लक्ष्मी का स्वरूप है.
लक्ष्मी और चन्द्रमा दोनों ही समुद्र से निकले हैं. इसीलिये समुद्र में अनेक तरह के रत्न-मूंगा, मोती, हीरा जवाहरात आदि पाये जाते हैं. गोमतीचक्र के सम्बन्ध में अनेक किवदंतियां तथा कथायें प्राप्त होती हैं. मैं आप को एक अत्यंत रहस्यमय कथा बताउंगा.
कछवा जो बाद में त्रेता युग में निषाद के रूप में अवतार लिया था, अपने पूर्व जन्म में समुद्र में रहता था. वहीँ पर शेष नाग की शैया पर भगवान् विष्णु लेते हुए थे. माँ लक्ष्मी उनके पाँव दबा रही थीं. वहीँ पर कछवा बार बार कोशिश कर रहा था ताकि भगवान् विष्णु के चरण छू ले. लेकिन माँ लक्ष्मी समुद्र्फेन के टुकड़ों से उसे मारकर भगा देती थी. तथा ऊपर से शेष नाग फुंकार मारकर उसे डरा देते थे.
समुद्र्फेन के जितने टुकड़े समुद्र में गिरते थे वे सब भंवर में पड़कर गोल आकृति के हो जाते थे और कालान्तर में वे सब गोमतीचक्र के नाम से विख्यात हुए. ये गोमतीचक्र साक्षात माँ लक्ष्मी के स्पर्श से समुद्र में गिरते थे और उधर भगवान् इस लीला को बड़े ध्यान से देख रहे थे. उन्होंने मन ही मन उन टुकड़ों को आशीर्वाद दिया कि जिन टुकड़ों को लक्ष्मी ने हथियार बनाकर कछुवे पर प्रहार किया वे लक्ष्मी के दुसरे रूप हो जाएँ. और ये गोमती चक्र अतुलित धन-रत्न आदि दाता हो गये.
गोमती चक्र को यदि शालिग्राम की बटिया के साथ शतपर्णी शंख में डालकर या उसके पास रखकर कौड़ी को चारो तरफ फैलाकर उनकी जागृति कर दी जाय तो निश्चित रूप से यह संयोग अतुलित धनदाता हो जाता है. इसके जागृत करने का विडिओ मैंने बहुत पहले बनाया है जिसका लिंक निम्न प्रकार है -
   • 2 October 2020  
गोमती चक्र वायसी हो ना चाहिये. लेकिन बहुत नकली गोमती चक्र आज दिखाई दे रहे हैं. कौड़ी भी बहुत अशुद्ध दिखाई दे रही हैं. इनका पहचान बहुत कठिन है लेकिन एक तरह से थोड़ा पहचाना जा सकता है. गोमती चक्र की सतह पर बनने वाली रेखा कभी मुलायम नहीं होती. दूसरा वे रेखाएँ समानांतर गति-दिशा वाली होती हैं. तीसरा इनका वजन इनके आयतन के अनुपात में 8 गुना ज्यादा होता है.
अंग्रेजी में यदि इन्हें देखा जाय तो ये सल्फोथियानेट कार्बामाजाइन फेयरोटेट होती हैं. किन्तु इनकी कुछ खूबियाँ विज्ञान नहीं पहचान पाता है. इनका वायदाहन बहुत तीव्र होता है.
यही स्थिति शतपर्णी शंख की भी होती है. इनके पहचान एवं लक्षण को मैंने अपने विडिओ में बताया है जिसका लिंक मैंने ऊपर दिया है. (    • 2 October 2020   )
इनका जागरण इन्हें सर्वप्रथम कुसैनी, अमर रस और विलोया के रस में डालकर किया जाता है. तथा पञ्चोपचार के बाद इन पर निम्न मन्त्र पढ़ते हुए 108 बार जल छिड़कने पड़ते हैं-
"संसमिद युवसे वृषन्नग्ने विश्वान्यर्य आ.
इडस्पदे समिध्यसे स नो वसून्या भर.
तेन भूतेन हविषायमा प्यायताँ पुनः.
जायां यामस्मा आवाक्षुस्ताँ रसेनाभि वर्धताम.
अभि वर्धताँ पयसाभि राष्ट्रेण वर्धताम.
रय्या सहस्रवर्चसेमौ स्तामनुपक्षितौ.
त्वष्टा जायामजनयत त्वष्टास्यै त्वां पतिम्.
त्वष्टा सहस्रमायूंषि दीर्घमायु: कृणोतु वाम.
इन्हीं मन्त्रों से शंख और कौड़ी को भी जागृत कर लेते हैं.
तदुपरांत इन्हें दीप दिखाते हैं. और सम्मुख देवी का पूजन आदि कर देते हैं.
इन्हें घर में रखने से निश्चित रूप से माँ लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है.
इसका और विवरण संलग्न विडिओ में देख सकते हैं.
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