आज भी रहस्य बना हुआ है तारा तारिणी शक्तिपीठ मंदिर || Tara Tarini Temple in Odisha

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32 K.M. away from #Berhampur, Orissa is the famous Shakti Peetha of the twin goddesses Tara and Tarini, where the breast portion of Sati fell. It is mentioned is the scriptures like Shiva Purana and the Kalika Purana as one of the four most important Shaki Peethas.


It is situated 708 feet above sea level on the top of a hill, called #Purnagiri hills, near the holy river #Rushikulya. You have to climb about a 999 steps to reach the temple on the hill. However there is a Ariel Rope Car from #Taratarini Foothill to Top hill Temple Place. Special festivals are conducted during the four Tuesdays in the month of #Chaitra and on all #Sankranties as per the Hindu calendar. Apart from being a great #ShaktiPeetha it is also a holy place for the Mahayana Buddhists.


Kalingan Empire and its capital Sampa which florished about 2300 years ago was about 7 km from Tara Tarini Devi temple. Tara Tarini was the principal deity – Ista-Devi – of the mighty kings of the Kalinga Empire.


While it existed since ancient times and mentioned in many scriptures, the present temple, according to legend was built by a Brahmin called Basu Praharaj who was a great devotee of Shakti. One night the goddess appeared in his dream and blessed him to be the father of twin daughters. He reared his daughters with love and care but when he became old the daughters vanished. Goddess appeared again in his dream and told him to build a temple atop the Purnagiri hill, which he did.
श में देवी के 51 शक्तिपीठ हैं जिसमें से चार आदिशक्ति पीठ माने गये हैं, जो देश के पूर्व में स्थित हैं। चार आदिशक्ति पीठ में उड़ीसा का तारा तारिणी मंदिर भी शामिल है। यह भारत के प्राचीन मंदिरों में से एक है, जो उड़ीसा के ब्रह्मपुर शहर के पास तारा तारिणी पहाड़ी पर स्थित है। यह मंदिर दो जुड़वां देवियों यानी तारा और तारिणी को समर्पित है और इस मंदिर की चारों दिशाओं में एक-एक शक्तिपीठ है। यह मंदिर रुशिकुल्या नदी के किनारे पहाड़ी पर स्थित है। बताया जाता है कि इस मंदिर में देवी सती के स्तन की पूजा की जाती है। वहीं इस शक्ति पीठ को कल्याणी धाम के नाम से भी जाना जाता है
इस मंदिर को लेकर एक पौराणिक कथा प्रचलित है और यह एक विद्वान ब्राह्मण वासु प्रहरजा से जुड़ा है, जो देवी के भक्त थे। कुछ वर्षों तक तारा तारिणी वासु प्रहरजा के साथ रहती थीं, लेकिन एक दिन वह लापता हो जाती हैं। इस बात से परेशान ब्राह्मण प्रहरजा उन्हें काफी ढूढ़ते हैं, लेकिन वह कहीं नहीं मिलतीं, जिससे वह काफी निराश हुए थे। ऐसा माना जाता है कि दोनों बहनें तारा तारिणी पहाड़ी पर चढ़ गई थीं और वहां से गायब हो गईं। कुछ वक्त बाद एक रात दोनों बहनें प्रहरजा के सपने में आईं और उन्हें बताया कि वह आदिशक्ति का अवतार हैं। जिसके बाद वहां मंदिर स्थापित किया गया और लोग उनकी पूजा करने लगे।17वीं शताब्दी का तारा तारिणी एक प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए 999 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं, जो कि तारा तारिणी पहाड़ी या फिर पूर्णागिरी पहाड़ी के ऊपर स्थित है। इस मंदिर को वास्तुकला की रेखा शैली का उपयोग करके बनाया गया है और देवी तारा तारिणी कलिंग साम्राज्य के शासकों की प्रमुख देवी थीं। मंदिर में देवी तारा और तारिणी की मूर्तियां स्थापित हैं, जो पत्थर से बनी हैं और उन्हें सोने-चांदी के गहनों और कीमती पत्थरों से सुशोभित किया गया है। बता दें कि देवी तारा तारिणी दक्षिणी उड़ीसा के अधिकांश घरों में अधिष्ठात्री देवी हैं।

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