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Скачать или смотреть लक्ष्मी स्तुतिः l Lakshmi Ashtakam l Madhvi Madhukar । ऋषि अगस्त्य

  • Madhvi Madhukar
  • 2025-10-19
  • 193195
लक्ष्मी स्तुतिः l Lakshmi Ashtakam   l Madhvi Madhukar । ऋषि अगस्त्य
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Описание к видео लक्ष्मी स्तुतिः l Lakshmi Ashtakam l Madhvi Madhukar । ऋषि अगस्त्य

महालक्ष्मीस्तुतिः
मातर्नमामि कमले कमलायताक्षि
श्रीविष्णुहृत्कमलवासिनि विश्वमातः।
क्षीरोदजे कमलकोमलगर्भगौरि
लक्ष्मि प्रसीद सततं नमतां शरण्ये॥ १॥
अगस्त्यजी बोले-कमलके समान विशाल नेत्रोंवाली मातः कमले! मैं आपको प्रणाम करता हूँ। आप भगवान् विष्णुके हृदयकमलमें निवास करनेवाली तथा सम्पूर्ण विश्वकी जननी हैं। कमलके कोमल गर्भके सदृश गौर वर्णवाली क्षीरसागरकी पुत्री महालक्ष्मि! आप अपनी शरणमें आये हुए प्रणतजनोंका पालन करनेवाली हैं। आप सदा मुझपर प्रसन्न हों ॥ १॥

त्वं श्रीरुपेन्द्रसदने मदनैकमात-
र्ज्योत्स्नासि चन्द्रमसि चन्द्रमनोहरास्ये।
सूर्ये प्रभासि च जगत्व्रितये प्रभासि
लक्ष्मि प्रसीद सततं नमतां शरण्ये॥ २॥
मदन (प्रद्युम्न)-की एकमात्र जननी रुक्मिणीरूपधारिणी मातः ! आप भगवान् विष्णुके वैकुण्ठधाममें 'श्री' नामसे प्रसिद्ध हैं। चन्द्रमाके समान मनोहर मुखवाली देवि! आप ही चन्द्रमामें चाँदनी हैं, सूर्यमें प्रभा हैं और तीनों लोकोंमें आप ही प्रभासित होती हैं। प्रणतजनोंको आश्रय देनेवाली माता लक्ष्मि! आप सदा मुझपर प्रसन्न हों॥ २॥

त्वं जातवेदसि सदा दहनात्मशक्ति-
र्वेधास्त्वया जगदिदं विविधं विदध्यात्।
विश्वम्भरोऽपि बिभृयादखिलं भवत्या
लक्ष्मि प्रसीद सततं नमतां शरण्ये॥३॥
आप ही अग्निमें दाहिका शक्ति हैं। ब्रह्माजी आपकी ही सहायतासे विविध प्रकारके जगत्की रचना करते हैं। सम्पूर्ण विश्वका भरण-पोषण करनेवाले भगवान् विष्णु भी आपके ही भरोसे सबका पालन करते हैं। शरणमें आकर चरणमें मस्तक झुकानेवाले पुरुषोंकी निरन्तर रक्षा करनेवाली माता महालक्ष्मि! आप मुझपर प्रसन्न हों॥३॥

त्वत्त्यक्तमेतदमले हरते हरोऽपि
त्वं पासि हंसि विदधासि परावरासि।
ईड्यो बभूव हरिरप्यमले त्वदाप्त्या
लक्ष्मि प्रसीद सततं नमतां शरण्ये॥ ४॥
निर्मल स्वरूपवाली देवि! जिनको आपने त्याग दिया है, उन्हींका भगवान् रुद्र संहार करते हैं। वास्तवमें आप ही जगत्का पालन, संहार और सृष्टि करनेवाली हैं। आप ही कार्य-कारणरूप जगत् हैं। निर्मलस्वरूपा लक्ष्मि! आपको प्राप्त करके ही भगवान् श्रीहरि सबके पूज्य बन गये। माँ! आप प्रणतजनोंका सदैव पालन करनेवाली हैं, मुझपर प्रसन्न हों॥ ४॥

शूरः स एव स गुणी स बुधः स धन्यो
मान्यः स एव कुलशीलकलाकलापैः।
एक: शुचि: स हि पुमान् सकलेऽपि लोके
यत्रापतेत्तव शुभे करुणाकटाक्षः॥५॥
माँ! आप प्रणतजनोंका सदैव पालन करनेवाली हैं, मुझपर प्रसन्न हों॥ ४॥ शुभे! जिस पुरुषपर आपका करुणापूर्ण कटाक्षपात होता है, संसारमें एकमात्र वही शूरवीर, गुणवान्, विद्वान्, धन्य, मान्य, कुलीन, शीलवान्, अनेक कलाओंका ज्ञाता और परम पवित्र माना जाता है ।। ५॥

यस्मिन्वसे: क्षणमहो पुरुषे गजेऽश्वे
स्त्रैणे तृणे सरसि देवकुले गृहेऽन्ने।
रत्ने पतत्रिणि पशौ शयने धरायां
सश्रीकमेव सकले तदिहास्ति नान्यत्॥६॥
देवि!आप जिस किसी पुरुष, हाथी, घोड़ा, स्त्रैण, तृण, सरोवर, देवमन्दिर, गृह, अन्न, रत्न, पशु-पक्षी, शय्या अथवा भूमिमें क्षणभर भी निवास करती हैं, समस्त संसारमें केवल वही शोभासम्पन्न होता है, दूसरा नहीं॥ ६॥

त्वत्स्पृष्टमेव सकलं शुचितां लभेत
त्वत्त्यक्तमेव सकलं त्वशुचीह लक्ष्मि।
त्वन्नाम यत्र च सुमङ्गलमेव तत्र
श्रीविष्णुपत्नि कमले कमलालयेऽपि ।। ७॥
हे श्रीविष्णुपत्नि! हे कमले! हे कमलालये! हे माता लक्ष्मि! आपने जिसका स्पर्श किया है, वह पवित्र हो जाता है और आपने जिसे त्याग दिया है, वही सब इस जगत्में अपवित्र है। जहाँ आपका नाम है, वहीं उत्तम मंगल है॥। ७॥

लक्ष्मीं श्रियं च कमलां कमलालयां च
पद्मां रमां नलिनयुग्मकरां च मां च।
क्षीरोदजाममृतकुम्भकरामिरां च
विष्णुप्रियामिति सदा जपतां क्व दुःखम्॥ ८॥
जो लक्ष्मी, श्री, कमला, कमलालया, पद्मा, रमा, नलिनयुग्मकरा (दोनों हाथोंमें कमल धारण करनेवाली), मा, क्षीरोदजा, अमृतकुम्भकरा (हाथोंमें अमृतका कलश धारण करनेवाली), इरा और विष्णुप्रिया, इन नामोंका सदा जप करते हैं, उनके लिये कहीं दुःख नहीं है ॥८॥

ये पठिष्यन्ति च स्तोत्रं त्वद्भक्त्या मत्कृतं सदा।
तेषां कदाचित् संतापो माऽस्तु माऽस्तु दरिद्रता॥ ९।।

माऽस्तु चेष्टवियोगश्च माऽस्तु सम्पत्तिसंक्षयः।
सर्वत्र विजयश्चाऽस्तु विच्छेदो माऽस्तु सन्ततेः ॥१०॥
[इस स्तुतिसे प्रसन्न हो देवीके द्वारा वर माँगनेके लिये कहनेपर अगस्ति मुनि बोले-हे देवि !] मेरे द्वारा की गयी इस स्तुतिका जो भक्तिपूर्वक पाठ करेंगे, उन्हें कभी संताप न हो और न कभी दरिद्रता हो, अपने इष्टसे कभी उनका वियोग न हो और न कभी धनका नाश ही हो। उन्हें सर्वत्र विजय प्राप्त हो और उनकी संतानका कभी उच्छेद न हो ॥ ९-१०॥

एवमस्तु मुने सर्वं यत्त्वया परिभाषितम्।
एतत् स्तोत्रस्य पठनं मम सांनिध्यकारणम्॥ ११॥
श्रीलक्ष्मीजी बोलीं - हे मुने! जैसा आपने कहा है, वैसा ही होगा। इस स्तोत्रका पाठ मेरी संनिधि प्राप्त करानेवाला है॥ ११॥

Song Credits

Song : Lakshmi Stuti
Lyrics: Rishi Augustya
Singer: Madhvi Madhukar
Composition : Madhvi Madhukar
Music Label : SubhNir Productions
Music Director : Nikhil Bisht
Flute : Minal Boro
Video Editing : Gourav Bankoti

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