कुंडलिनी शक्ति जागृत होती है । सम्पूर्ण अनुभव

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कुंडलिनी जब ऊपर है तो क्या होता है
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कुंडलिनी जागृत होने पर क्या अनुभव होता है?
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कुंडलिनी जागृत होने पर क्या अनुभव होता है?
हां कुंडलिनी शक्ति होती है । और यह सभी मनुष्यों में मौजूद है। एक ध्यान करने वाला साधक इसके बारे में अच्छी तरह समझ सकता है। मैं आपको समझाने की कोशिश करता हूं । पहले हम ध्यान के साथ चक्रों के बारे में जान लेते हैं। पहला चक्र होता है मुलाधार, जो मलद्वार एवं मुत्रद्वार के मध्य में होता है । आपको जानकर आश्चर्य होगा कि परमात्मा ने इस शरीर के अन्दर सबकुछ बनाने के बाद वहां सीलाई लगाई है । इसलिए इस चक्र को मुलाधार( मुल आधार) कहते हैं। सिलाई को कभी हाथ फिराकर महसूस करना ।

दुसरा चक्र है स्वाधिष्ठान। , जो नाभि के नीचे होता है।

तीसरा चक्र है मणीपुर ( नाभि चक्र) , जो नाभि के थोड़ा ऊपर होता है।

चौथा चक्र है हृदय चक्र, जो दोनों स्तनों के मध्य में होता है।

पांचवां चक्र है विशुद्धी, जो कण्ठ पर होता है।

छठवां चक्र है आज्ञा चक्र, जो आंखों की दोनों भौहों के बीच में होता है। जहां हम तिलक लगाते हैं ।

सातवां चक्र है सहस्त्रार , जो हमारी खोपड़ी के ऊपरी भाग के मध्य में होता है।

और कुण्डलिनी का स्थान नाभि के ढ़ाई ऊंगली नीचे होता है। यह सांप की भांति कुण्डली लगातार स्थिर अवस्था में सोई रहती है । इसे अमृत कुण्ड भी कहते हैं। रावण की कुण्डलिनी जागृत थी। इसलिए राम को रावण के अमृत कुण्ड में तीर मारना पड़ा। वरना रावण को मारना मुश्किल था।

उपरोक्त सात चक्रो को जागृत करने के बाद ही कुण्डलिनी जागृत करने की कोशिश करनी चाहिए वरना खतरा हो सकता है।

यह जरूरी नहीं कि सभी साधकों के सभी चक्र जाग्रत हो। गुजरात में एक संत हुए हैं ।जो 'चुनरी वाली माता ' के नाम से जाने जाते थे। परंतु असली नाम 'प्रल्हाद जानी' था । उन्होंने लगभग 75 साल तक अन्न जल कुछ भी गृहण नहीं किया। You tube पर आपको पुरी जानकारी मिल जाएगी।

12साल की उम्र में ही उनका सहस्त्रार चक्र जागृत हो गया था। और उनके काकलक ( uvula ) से अमृत निकलने लगा था । जिसके कारण उन्हें कभी भी भूख प्यास नहीं लगती थी। आध्यात्मिक जीवन बहुत ही आनंददायक है । अगर आपकी अध्यात्म में रूचि है तो किसी अच्छे साधक के सान्निध्य में में साधना करना ।
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