Tara Chandi Mandir

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माँ तारा चंडी मंदिर
मां तारा चंडी मंदिर भारतीय राज्य बिहार के सासाराम जिले में स्थित एक दुर्गा मंदिर है। यह भारत के 52 शंक्ति पीठों से एक है
इतिहास[संपादित करें]
माँ तारा चंडी पीठ भारत के 52 पीठों से सबसे पुराना पीठ माना जाता है। पुराण के अनुसार उनके पत्नी "सती " अपने पिता के घर अपने स्वामी को अबमानना होने पर जब आत्मदाह किए , भगबान शिब क्रोध मे आकार सती के सब को उठाकर भयंकर तांडब नृत्य करने लगे। उसी मे बिश्व द्वंश होने का खतरा रहा। भगबान बिष्णु बिश्व को रक्षया करने हेतु अपने सुदर्शन चक्र भेज कर सती के सब को खंड खंड करा दिये। वो सभी खंड भारत उपमहादेश की बिभिन्न प्रांत में गिरे। वो सभी प्रांत को " शक्ति पीठ" माना जाता है और हिंदुओं के लिए सभी पीठ बहुत मतत्वपूर्ण रहे है। माँ तारा पीठ पर सती की "दाहिने आँख " पड़े थे। यहाँ एक अति प्राचीन मंदिर , जिनहे " माँ सती " मंदिर कहा जाता था,उसे माँ तारा की आबास कहा जाता है।
कैमूर पहाड़ियों में अनन्य कई आकर्षण भी रहे है। यहाँ गुप्त महादेव मंदिर, पारबती मंदिर, पुराने गुंफाओं, मँझार कुंड और धुआ कुंड नामक दो जलप्रपात है। येही दोनों जलप्रपात से बिजली उत्पादन भी संभब है। [4]
प्राचीन[संपादित करें]
माना जाता है कि मां सती की दाहिनी आंख (नेत्र) यहां गिरा थी, इसलिए इसका नाम ताराचंडी पड़ा। यह भी कहा जाता है कि जब गौतम बुद्ध[5] ज्ञान प्राप्त करके यहां आए थे, तो मां ताराचंडी ने उन्हें एक बालिका के रूप में दर्शन दिए थे। तब उन्हें सारनाथ जाने का निर्देश दिया गया, जहां बुद्ध ने पहली बार उपदेश दिया था। मोक्ष देने के लिए जाना जाता है, पूजा की विधि सात्विक है। ऐसा कहा जाता है कि जो लोग यहां पूजा करते हैं, उन पर मां लक्ष्मी की वर्षा होती है।
शक्ति पीठ[संपादित करें]

रोहतास। 51 शक्तिपीठों में से एक मां ताराचंडी मंदिर सासाराम से महज पांच किलोमीटर की दूरी पर कैमूर
रोहतास। 51 शक्तिपीठों में से एक मां ताराचंडी मंदिर सासाराम से महज पांच किलोमीटर की दूरी पर कैमूर पहाड़ी की गुफा में स्थित है। मनमोहक प्राकृतिक ²श्यों से भरपूर इस मंदिर के पास पहाड़, झरने व अन्य जल स्त्रोत हैं। इस पीठ के बारे में किवदंती है कि सती के तीन नेत्रों में से श्री विष्णु के चक्र से खंडित होकर दायां नेत्र यहीं पर गिरा था, जो तारा शक्तिपीठ के नाम से विख्यात हुआ।
मंदिर की प्राचीनता के बारे में कोई ठोस साक्ष्य लिखित रूप से नहीं है। लेकिन मंदिर में स्थित शिलालेख से यह स्पष्ट होता है कि 11वीं सदी में भी यह देश के ख्यात शक्ति स्थलों में से एक था। कहा जाता है कि महर्षि विश्वामित्र ने इस पीठ का नाम तारा रखा था। दरअसल यहीं पर परशुराम ने मां तारा की उपासना की थी। मां तारा इस शक्तिपीठ में बालिका के रूप में प्रकट हुई थीं और यहीं पर चंड का वध कर चंडी कहलाई थी। इस धाम पर वर्ष भर में तीन बार मेला लगता है। जहां हजारों श्रद्धालु मां का दर्शन पूजन कर मन्नते मांगते हैं। यहां मन्नतें पूरा होने पर अखंड दीप जलाया जाता है। मंदिर के गर्भगृह के समीप संवत 1229 का खरवार वंशीय राजा प्रताप धवल देव द्वारा ब्राह्मी लिपि में लिखवाया गया शिलालेख भी है, जो मंदिर की ख्याति व प्राचीनता को दर्शाता है।

यह धाम 51 शक्तिपीठों में से एक है। मंदिर का इतहिास अत्यंत प्राचीन है। यहीं सती का दाहिना नेत्र गिरा था। धाम पर शारदीय व चैत्र नवरात्र के अलावे सावन महीने में श्रद्धालुओं की काफी भीड़ होती है। सावन महीने में यहां एक महीने का भव्य मेला भी लगता है। श्रावणी पूर्णिमा के दिन स्थानीय लोग देवी को शहर की कुलदेवी मान चुनरी कढ़ैया के साथ काफी संख्या में प्रसाद चढ़ाने धाम पर पहुंचते हैं। हाथी-घोड़ा व बैंडबाजे के साथ शोभायात्रा भी निकाली जाती है। शारदीय नवरात्र में लगभग दो लाख श्रद्धालु मां का दर्शन-पूजन करने पहुंचते हैं।

बिहार में रोहतास जिले के सासाराम स्थित मां ताराचंडी के मंदिर में पूजा करने वालू श्रद्धालुओं की हर मनोकामना पूर्ण होती है। सासाराम से महज पांच किलोमीटर की दूरी पर कैमूर पहाड़ी की गुफा में मां ताराचंडी का मंदिर है। इस मंदिर के आस-पास पहाड़, झरने एवं अन्य जल स्रोत हैं। यह मंदिर भारत के प्रमुख शक्तिपीठों में से एक है। इस शक्तिपीट में वर्ष 2011 से हर वर्ष चैत्र सप्तमी को मां ताराचंडी महोत्सव का आयोजन भी किया जाता है लेकिन इस बार कोरोना वायरस से संक्रमण के प्रसार के खतरे को देखते हुए महोत्सव का आयोजन नहीं किया गया है। कोरोना वायरस के कारण लगभग 800 सालों में पहली बार शक्तिपीठ मां ताराचंडी मंदिर के पट को बंद किया गया जिसके कारण हजारों श्रद्धालु इस बार चैत्र नवरात्र में भी मां का दर्शन एवं पूजन करने से वंचित रह गए। वहीं, मंदिर के प्रधान पुजारी उदय गिरी ने बताया कि इस मंदिर की स्थापना का इतिहास 12वीं शताब्दी का है। तब से अब तक कभी भी मां का पट बंद नहीं हुआ लेकिन कोरोना महामारी को देखते हुए भक्तों की सुरक्षा के मद्देनजर मंदिर के पट को फिलहाल बंद करना पड़ा है। सिर्फ मां को भोग लगाने के लिए पुजारी द्वारा कुछ देर के लिए पट को खोला जाता है।
मनोकामनाएं पूरी होने की लालसा में दूर-दूर से भक्त यहां आते हैं। वैसे तो यहां सालो भर भक्तो की आना लगा रहता है, लेकिन नवरात्र मे यहां पूजा-अर्चना का विशेष महत्व है। कहा जाता है कि यहां आने वालों की हर मनोकामना माता रानी पूरी करती हैं इसलिए लोग इसे मनोकामना सिद्धी देवी भी कहते हैं।
मान्यता है कि इस स्थल पर माता सती की दाहिनी आंख गिरी थी। पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान शंकर जब अपनी पत्नी सती के मृत शरीर को लेकर तीनों लोकों में घूम रहे थे तब संपूर्ण सृष्टि भयाकूल हो गयी थीं तभी देवताओं के अनुरोध पर भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खंडित किया था। जहां-जहां सती के शरीर का खंड गिरा उसे शक्तिपीठ माना गया। सासाराम का ताराचंडी मंदिर भी उन्हीं शक्तिपीठों में से एक है। मंदिर की प्राचीनता के बारे में कोई लिखित साक्ष्य उपलब्ध नही

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