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Скачать или смотреть खुशहाल जीवन के लिए संगत और सत्संग में अंतर जानिए |क्या संगत और सत्संग का असर एक जैसा ही हुआ करता है?

  • UTSAHI IMPERSONAL ENERGY
  • 2025-09-12
  • 492
खुशहाल जीवन के लिए संगत और सत्संग में अंतर जानिए |क्या संगत और सत्संग का असर एक जैसा ही हुआ करता है?
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Описание к видео खुशहाल जीवन के लिए संगत और सत्संग में अंतर जानिए |क्या संगत और सत्संग का असर एक जैसा ही हुआ करता है?

समाज में रहते हुए हर व्यक्ति का अपना-अपना दायरा होता है, जिनसे वह मिलता है, जिनके साथ उठता-बैठता है और अपने कार्यों में उनको शामिल भी करता है. इसको हम संगत कहते हैं.
अगर हमारा दायरा अच्छे लोगों का है तो हम भी अच्छे लोगों की गिनती में आते हैं. दूसरी ओर अगर हमारा उठना-बैठना समाज के ऐसे लोगों के साथ है जो स्वयं भी सामाजिक तौर पर मर्यादित नहीं है और हमें भी ख़राब करते हैं तो हम भी ख़राब लोगों की श्रेणी में आ जाते हैं.
अगर हमारा मिलना-जुलना संतों-महात्माओं से होता है, सुबह-शाम सत्संग करते हैं, रोजाना ही ऐसे ही संतों का संग मिलता है तो हम भी सत्संगी के रूप में पहचाने जाते हैं क्योंकि हमारा दायरा संतों-महापुरुषों वाला होता है.
अगर हम ज्ञानवान हैं तो हम जानते हैं कि परमात्मा ही सत्य है. यही सब जगह हमेशा होता है. सतगुरु की कृपा से यह नजर आता है.
जो परमात्मा को जान लेते हैं, ओ महात्मा एक साथ बैठकर इस परमात्मा (ईश्वर, गॉड, वाहे गुरु, अल्लाह, जिसे हम कई नामों से पुकारते हैं, लेकिन यह है- एक ही) की चर्चा करते हैं, इसका गुणगान करते हैं, इसे याद करते हैं, इसके दर्शन करते हैं, तो उस कार्यक्रम को सत्संग कहते हैं.
सत्संग की महानता के सम्बन्ध में महात्मा फरमाते हैं कि- जब परमात्मा ने संत कबीर जी को आवाज दी कि आप बैकुण्ठ में आ जाओ तो कबीर साहिब रोने क्यों लगे? संत कबीर ने भ्रम दूर करते हुए कहा कि-
राम बुलावा भेजिए, दिया कबीरा रोय. जो सुख साधु संग में, सो बैकुंठ न होय. कहते हैं कि जो सुख महात्माओं के साथ है वो बैकुंठ में भी नहीं है इसलिए मुझे रोना आ रहा है. समस्त धर्मग्रंथों में संतों ने साध संगत की महानता का वर्णन किया है. गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं- एक घड़ी आधी घड़ी आधी ते पुनि आध. तुलसी संगत साध की कटे कोट अपराध.. जब संतों का साथ रहता है तो इस परमात्मा की याद सदा बनी रहती है. कहा गया है कि हमारे करोड़ों अपराध भी परमात्मा माफ़ कर देता है.
भगवन श्री राम जी ने माता शबरी को नवधा भक्ति में भक्ति में बताया है कि – प्रथम भक्ति संतन कर संगा. अर्थात संतों का संग आवश्यक है. आगे कहा है कि-
राम कथा के तेहि अधिकारी, जिनको सतसंगति अति प्यारी. सत्य परमात्मा को जानने वालों का साथ अति आवश्यक है. सत्संग के बिना विवेक जाग्रत नहीं होता और इन्सान नादानी में उल्टे-सीधे कर्म करता रहता है.
विचार करने की बात यह है कि क्या संगत और सत्संग एक ही चीज के दो नाम हैं ? आइए विचार करें- संगत वो होती है कि यदि अच्छे की संगत करोगे तो अच्छे बन जाओगे और बुरे का साथ करोगे तो बुरे बन जाओगे.
उदहारण - सुनार का साथ करोगे तो अच्छे आभूषण बनाना सीख जाओगे और चोर का साथ करोगे तो चोरी करना सीख जाओगे. इन्सान एक और गुण अलग-अलग आये. यह संगत का असर है. जैसे कहा है – कदली, सीप, भुजंग मुख, स्वाति एक गुण तीन, जैसी संगत कीजिए तैसो ही फल दीन .
अर्थात् यदि स्वाति नक्षत्र की बूँद केले के पत्ते पर गिरती है तो कपूर बनती है. यदि सीप के मुख में गिरती है तो मोती बनती है और यदि सर्प के मुख पर गिरती है तो विष बन जाती है. बूँद एक ही है लेकिन जैसा साथ मिला वह वैसी ही बन गई, यह संगत का असर है.
इसके विपरीत सत्संग का असर एक जैसा ही हुआ करता है अर्थात साध संगत में आने पर सकारात्मक प्रभाव ही पड़ता है. जैसे चीनी की बोरी को चाहे जहाँ से भी खोलें चीनी ही निकलेगी.
इस प्रकार स्पष्ट है कि सत्संग की महिमा निर्विवाद है, जब कि संगत तो अलग-अलग असर छोड़ती है. वास्तव में सत्संग और संगत के इस अंतर को हृदयंगम करते हुए संगत को साधसंगत के रूप में परिणत करके भक्ति लाभ उठाने की आवश्यकता है.
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