मूर्ति पूजा का क्या महत्व है? Importance of idol worship? तिलक क्यों लगाते है? घंटी क्यों बजाते हैं

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दोस्तों आज तक आप अनगिनत बार मंदिर गए होंगे, मंदिर में घंटी भी बजाई होगी, माथे पर तिलक भी लगाया होगा, मंदिर की परिक्रमा भी की होगी पर क्या आपको इसके पीछे छिपे वैज्ञानिक तथ्य मालूम है? क्या आपको मालूम है कि हिंदू धर्म में मूर्ति पूजा को इतना महत्व क्यों दिया गया है? देव मूर्ति की परिक्रमा क्यों की जाती है? अगर नहीं तो ऐसे कई और सवालों का जवाब जानने के लिए यह पूरा वीडियो जरूर देखें. पहला सवाल हिंदू धर्म में मूर्ति पूजा को इतना महत्व क्यों दिया गया है? दोस्तों ऐसे तो हिंदू धर्म में तीन प्रकार की पूजा का मुख्य स्थान है- मूर्ति पूजा, पार्थिव पूजा और मानस पूजा, किंतु जानकारी के अभाव में लोग केवल मूर्ति पूजा तक ही सिमट कर रह जाते हैं. पूजा का मुख्य रूप मानस पूजा को माना जाता है किंतु इसके लिए बहुत अभ्यास की जरूरत होती है, जिस तरह एक बच्चा पैदा होने के बाद लगभग 1 वर्ष तक केवल सुनता है फिर छोटे-मोटे शब्द बोलना सीखता है तथा लगातार अभ्यास के बाद किसी भाषा में उसे महारत हासिल होती है ठीक उसी तरह पूजा अर्चना करने के लिए और ईश्वर से जुड़ने के लिए मानक पूजा तक पहुंचना ही एकमात्र होना चाहिए. हर वक्त मन में भगवान का स्मरण रहना तथा उसके अनुसार ही आचरण रखना ही मानस पूजा कहलाता है. किंतु मानस पूजा की अवस्था तक पहुंचने के लिए मूर्ति पूजा को प्रथम चरण बनाया गया है क्योंकि नए साधक के लिए मूर्ति पूजा करना मानस पूजा की अपेक्षा ज्यादा आसान होता है और ध्यान केंद्रित करने में ज्यादा कठिनाई नहीं होती है. इसके अलावा नए साधक के लिए मूर्ति से मनोवैज्ञानिक दृष्टि से जल्दी जुड़ाव होता है और वह अपने अच्छे एवं बुरे समय में अपने आप को अकेला महसूस नहीं करता है और हमेशा किसी का साथ होने का एहसास रहता है. इसके बाद अगला चरण पार्थिव पूजा का होता है. मूर्ति पूजा का निरंतर अभ्यास हो जाने के बाद साधक को पार्थिव पूजा की ओर अग्रसर होना चाहिए. पार्थिव पूजा का अर्थ यह है कि आपको अपने इष्ट देवी या देवता की मूर्ति रोज बनानी है और विधि विधान से पूजा अर्चना करने के बाद उसे रोज विसर्जित भी करना है. प्रार्थना करते समय मूर्ति में स्थित देवता अपने हृदय में विराजमान हो गए हैं ऐसी कल्पना करनी चाहिए, ऐसा करने से धीरे-धीरे ध्यान केंद्रित करने के लिए मूर्ति पर आप की निर्भरता कम होने लगेगी और आप ईश्वर को हमेशा अपने मन में अपने आसपास पाएंगे और मानस पूजा की ओर अग्रसर होने लगेंगे. हिंदू धर्म में पूजा का असली रूप मानस पूजा ही है तथा हर साधक के लिए मानस पूजा तक पहुंचना ही उसका उद्देश्य होना चाहिए.
दूसरा सवाल- माथे पर तिलक क्यों लगाया जाता है?
दोस्तों आपने अपने जीवन में कई बार तिलक तो लगाया ही होगा लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस तिलक लगाने के पीछे कोई वैज्ञानिक कारण भी हो सकता है जी हां दोस्तों अब हम आपको माथे के बीचो-बीच तिलक लगाने के पीछे का वैज्ञानिक कारण बताते हैं. ऐसे तो हिंदू शास्त्रों में तिलक लगाने के पीछे कई मान्यताएं hain परंतु उनमें से सबसे महत्वपूर्ण है एकाग्रता, जी हां तिलक लगाने से हमारी ekagrata me badhotri hoti hai jisse hamari seekhne aur samjhne ki shakti badhti hai. इसके लिए विद्यार्थियों को चंदन या कुमकुम का टीका लगाना चाहिए. तिलक लगाने से हमारे मस्तिष्क में है हैप्पी ब्रेन केमिकल जैसे सेराटोनिन और एंडोर्फिन का रिसाव जिससे हम कोई भी कार्य उत्साह और खुशी के साथ करते हैं तिलक लगाते वक्त इस बात का ध्यान रखें कि आपका तिलक केमिकल युक्त ना हो क्योंकि आजकल ज्यादातर लोग तिलक लगाने के लिए सिंदूर का उपयोग करते हैं जिसमें भारी मात्रा में लेड या शीशा केमिकल पाया जाता है जो स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक होता है सबसे अच्छा होगा यदि आप कुमकुम का टीका लगाए, घर पर ही हल्दी के चूर्ण में नींबू का रस मिलाकर उससे कुमकुम बनाया जा सकता है.
अब दोस्तों एक और सवाल जो मन में आता है वह यह है कि मंदिरों में अक्सर घंटे क्यों बजाए जाते हैं मंदिरों में घंटा बजाने के पीछे मुख्य कारण यह है कि इनसे निकलने वाली भारी ध्वनि के कारण मंदिर के बाहर से आने वाली उन आवाजों पर नियंत्रण पाया जा सकता है जिसके कारण पूजा करने वालों की एकाग्रता में बाधा उत्पन्न होती है. दूसरी बात घंटा नाथ करने से आसपास के लोगों को आरती करने के सही समय की सूचना मिल जाती है. तीसरा और महत्वपूर्ण कारण यह है कि मंदिर में बजाई जाने वाली बहुत सारी घंटियों को यदि एक ताल और लय में बजाया जाए तो उससे वहां मौजूद लोगों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक असर होता है तो दोस्तों हमेशा ध्यान दें कि जब भी आप मंदिर में घंटी ओ का वादन करें तो उसे विशेष ले में सभी लोगों को एक साथ ही बजाना होता है वरना इसका लाभ प्राप्त नहीं होता. मंदिर में देव मूर्ति की परिक्रमा क्यों की जाती है किसी भी मंदिर में जो मूर्ति होती है उस की प्राण प्रतिष्ठा विभिन्न मंत्रों द्वारा की जाती है जिससे की मूर्ति में एक प्रकार की विशेष कंपन पैदा हो जाती है जिसे दिव्य प्रभा भी कहा जाता है. प्राचीन मंदिरों में मूर्ति की पवित्रता और तेज बनाए रखने के लिए मूर्ति को छूकर आशीर्वाद लेने की प्रथा नहीं थी. प्राण प्रतिष्ठा एवं मंत्र उच्चारण द्वारा स्थापित मूर्ति के चारों ओर दिव्य शक्ति उत्पन्न होती है उसका प्रभाव मूर्ति के चारों ओर ज्योतिर मंडल की तरह होता है. इस ज्योतिर मंडल में परिक्रमा करने से हमारा शरीर इस शक्ति को अवशोषित करता है जिससे हमें कई प्रकार के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य का लाभ होता है. शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि कभी भी मूर्ति के दाएं हाथ से शुरू करके बाएं हाथ की ओर परिक्रमा करनी चाहिए क्योंकि ज्योतिर मंडल का बहाव इसी दिशा में होता है और हमें भी इसी के लाए में बहना है.

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