Kagaz Ki Nav | कागज़ की नाव | Telefilm

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लघुकथा- कागज़ की नाव
लेखक,निर्माता एवं निर्देशक- केदार शर्मा

हमें तो रात भारी है, तुम तो सितारे सो जाओ | आसमान वाला और ये धरती वाले जो नाच नचाते हैं वही नाच नाचना होता है| हर रिश्ते के दो पहलू होते हैं, एक खुशनुमा और एक गमगीन | सात-आठ साल का गोपाल जिसकी उम्र अभी अपनी माॅं की गोद में सर रखकर लोरी सुनने, पढ़ने,खाने, उछलने-कूदने की होती है उसे क्या पता था कि इसी उम्र में काम करके अपनी बीमार माॅं के लिए दवाईयां और शराबी पिता के लिए शराब के पैसे जुटाने पड़ेंगे | कोमल मन और माॅं का दुलारा गोपाल अपनी माॅं को पिता की पिटाई और बीमारी से बचा नहीं पाता | माॅं के मरने के बाद गोपाल टूट जाता है और एक दिन वह भी एक दुघर्टना में माॅं के पास चला जाता है | केदार शर्मा की कहानी एक बच्चे के कोमल मन और एक माॅं के दर्द को खूबसूरत तरीके से दिखाती है |

#mother #love #children #family #relationship #problem #society

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