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Скачать или смотреть कुब्जिका तंत्र ,रस रत्नाकर और. रसेंद्र मंगल

  • Vishal Ayurved Amratanaam
  • 2025-07-16
  • 520
कुब्जिका तंत्र ,रस रत्नाकर और. रसेंद्र मंगल
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Описание к видео कुब्जिका तंत्र ,रस रत्नाकर और. रसेंद्र मंगल

कुब्जिका तन्त्र :-

नेपाल के पुस्तकालय से गुप्तकालीन लिपि में 600 ई. में लिखा हुआ यह ग्रन्थ श्री हरिप्रसाद शास्त्री को मिला था। जिसमें एक स्थान पर स्वयं शिव ने पारद के विषय में कहा है कि गन्धक से छः बार मारित होने पर इसके गुणों में वृद्धि हो जाती है। पारद की सहायता से ताम्र स्वर्ण हो जाता है। यथा-

पलेन विहितो वेधः किं व्यन्जतो न विध्यते। रसविद्धं यथा ताम्र न भूयस्ताम्रतां व्रजेत् ।।

रसरत्नाकर या रसेन्द्रमंगल :-

यह ग्रन्थ नागार्जुन विरचित रसशास्त्र का सबसे महत्वपूर्ण एवं प्राचीन ग्रन्थ माना जाता है। रसरत्नाकर तथा रसेन्द्रमंगल दोनों को श्री पी.सी. राय ने 7-8 वीं शताब्दी का तथा एक ही माना है किन्तु कुछ आचार्य इन दोनों को भिन्न मानते है। ग्रन्थ के प्रारम्भ में आठ अध्याय होने का उल्लेख है किन्तु प्राप्त पुस्तक में चार ही अध्याय है। यह ग्रन्थ खण्डित एवं अव्यस्थित है। उपलब्ध अंश में पारद के अठारह संस्कार, लौहवेध, रस, उपरस, लौह का शोधन मारण एवं सत्त्वपातन का वर्णन किया गया है।


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