भगवान बलराम जयंती Lord Balram Jayanti

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भगवान बलराम जयंती Lord Balram Jayanti
भगवान बलराम को भगवान विष्णु के 8वें अवतार के रूप में पूजा जाता है।




भगवान बलराम को आदिशेष के अवतार के रूप में भी पूजा जाता है, जिस नाग पर भगवान
विष्णु विश्राम करते हैं। बलराम को बलदेव, बलभद्र और हलायुध के नाम से भी जाना
जाता है।



इस दिन को उत्तर भारत में हल षष्ठी और ललही छठ के नाम से भी जाना जाता है।

ब्रज क्षेत्र
में यह दिन बलदेव छठ के नाम से जाना जाता है और गुजरात में यह दिन रंधन छठ के रूप
में मनाया जाता है।





बलभद्र या बलराम श्री कृष्ण के बड़े भाई थे जो रोहिणी के गर्भ से उत्पन्न
हुए थे।

बलराम, हलधर, हलायुध, संकर्षण आदि इनके अनेक नाम
हैं।

बलभद्र के सगे सात भाई और एक बहन सुभद्रा थी
जिन्हें चित्रा भी कहते हैं।

इनका ब्याह रेवत की कन्या रेवती से हुआ था।
पेट से गर्भ को खींचकर निकालकर दूसरे गर्भ में डालने की इस
क्रिया को संकर्षण कहा जाता है।

देवकी के पेट
से उसे रोहिणी के गर्भ में डालने के कारण ही बलरामजी का नाम संकर्षण पड़ा।



(गर्व की बात है कि यह गायनोकोलॉजिकल प्रक्रिया
हमारे भारत में आदि काल से चली आ रही है)

लोकरंजन करने
के कारण बलरामजी राम कहलाए और बलवानों में श्रेष्ठ होने के कारण वे बलराम कहलाए।

वे अपने साथ हमेशा एक हल रखते थे इसलिए उन्हें हलधर भी कहा
जाता

था।

बलराम का सबसे प्रमुख अस्त्र हल और मूसल है। सामान्य व्यक्ति हल उठाकर उसे हथि
बलराम की पत्नी रेवती कई युग बड़ी थी। वह
सतयुग की महिला थी और लगभग कई फुट लंबी थी। गर्ग संहिता के अनुसार रेवती के पिता
ककुद्मी सतयुग में अपनी पुत्री के साथ ब्रह्मा जी से मिलने गए। वहां उन्होंने
रेवती के लिए किसी योग्य वर की प्रार्थना की। ब्रह्मदेव ने हंसते हुए कहा कि जितना
समय आपने यहां बिताया है उतने समय में पृथ्वी पर 27 युग बीत चुके हैं और अभी
द्वापर का अंतिम चरण चल रहा है। आप शीघ्र पृथ्वी पर पहुंचिए। वहां शेषावतार बलराम
आपकी पुत्री के सर्वथा योग्य हैं। जब रेवती पृथ्वी पर आकर बलराम से मिली तो उनकी
लम्बाई में बड़ा अंतर था। तब बलरामजी ने अपने हल के प्रभाव से रेवती की ऊंचाई 7
हाथ कर दी थी और बाद में दोनों को विवाह हुआ।यार
के रूप में प्रयोग नहीं कर सकता लेकिन बलरामजी उसे उठा उसका हथियार के रूप में
प्रयोग कर लेते थे।

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