Pragat Shri Santoshi Mata Mandir Jodhpur | चमत्कार की अद्भुत कहानियां | Shweta Jaya Travel Vlog |

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मंदिर खुलने, बंद होने का समय


मंदिर की टाइमिंग की बात करें तो मौसम के हिसाब से ये थोड़ा बदलता रहता है। सर्दियों में मंदिर सुबह 7 बजे से रात 8 बजे तक खुला रहता है जबकि गर्मियों में सुबह 6 बजे से रात को 9 बजे तक खुला रहता है।


मंदिर प्रांगण में मिलने वाले स्पेशल स्वीट्स


यहां दशकों से मिठाई की दुकान चलाने वाले केशव जी से हमने जाना कि यहां देवी को चढ़ाने के लिए कौन सी खास मिठाई श्रद्धालु खरीदते हैं और जोधपुर की स्पेशल स्वीट्स कौन सी हैं। तो गुलाब हलवा यहां माता को चढ़ाई जाती है।


मंदिर के पास मिलने वाली सहगरी मिर्च पकौड़ी


मंदिर के पास ही एक और ख़ास तरह की शॉप लोगों को आकर्षित करती है जो काफ़ी पुरानी है और अपने मिर्च पकौड़े के लिए मशहूर है।


मंदिर कैसे पहुंचें

यदि आप बस से मंदिर पहुंचना चाहते हैं तो दिल्ली से जोधपुर की बस पकड़ सकते हैं और बस स्टैंड से मंदिर के लिए आपको ऑटो और टैक्सी भी मिल जाती हैं। ट्रेन के लिए सबसे नजदीकी स्टेशन मंडोर है जहां से आप ऑटो ले सकते हैं।


मंदिर में है रुकने की व्यवस्था

मंदिर में बाहर से आने वाले श्रृद्धालुओं के लिए रुकने की भी व्यवस्था मंदिर प्रशासन की तरफ़ से की गई है, साथ ही मंदिर के आस पास भी कई ऐसे होटल और धर्मशाला हैं जहां आप रुक सकते हैं।

जोधपुर में मंडोर रोड कृषि मंडी के पीछे एक बहुत ही प्रसिद्ध मंदिर है, जहां लोग अपनी मनोकामनाएं लेकर आते हैं और उसे पूरा होने का आशीर्वाद लेकर जाते हैं। कहते हैं सैकड़ों साल पहले लाल सागर की इन पहाड़ियों पर एक गुफा में संतोषी माता की मूर्ति प्रकट हुई थी और इसलिए इसे प्रकट संतोषी माता कहा जाता है।

इस मंदिर को शक्तिपीठ के रूप में भी जाना जाता है। मंदिर से जुड़ी कई ऐसी कहानियां हैं जो भक्तों के साथ हुए चमत्कारों को बताती हैं।

इस मंदिर में आने के बाद आध्यात्मिक शांति महसूस होती है और जीवन की सभी नकारात्मकता खत्म हो जाती है। मां के इस स्थान पर विजिटर्स भी खूब आते हैं जिनको अट्रैक्ट करने में यहां की रौनक और नेचुरल ब्यूटी की भी बड़ी भूमिका है, जल कुंड, पहाड़ियां और अध्यात्मिक माहौल...यहां आने पर आप इस जगह के अद्भुत औरा को महसूस कर सकते हैं।

इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां माता मूर्ति रूप में साक्षात निवास करती हैं और दर्शन करने आए श्रद्धालुओं की सभी उचित मनोकामनाएं पूरी करती हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस स्थान को देखकर ऐसा लगता है जैसे मुख्य गर्भगृह की चट्टानें शेषनाग की तरह माता की मूर्ति पर छाया कर रही हों। ध्यान से देखने पर पता चलता है कि पहाड़ी के अंदर ऊपरी भाग में प्राकृतिक मातेश्वरी और सिंह का पदचिह्न बना हुआ है। ये वाकई अद्भुत नज़ारा पेश करता है।

संतोषी माता को गुड़ और चना प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है। यहां प्रत्येक शुक्रवार को भक्त माता की कथा पढ़ते हैं, भोग लगाते हैं और माता की आरती गाकर उन्हें प्रसन्न करते हैं। यहां
मंदिर के विकास के लिए किसी तरह का कोई चंदा नहीं लिया जाता है और ना ही माता की चौकी लगाई जाती है।

माता के मंदिर प्रांगण में ही एक बहुत प्राचीन हरा-भरा पेड़ है, जहाँ श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए मौली बाँधते हैं। नीम नारायण के नाम से प्रसिद्ध बरसों पुराने इस वृक्ष में तने नीम के हैं, लेकिन उसके ऊपर पीपल का पेड़ उगा हुआ है।

मन्दिर के पास ही एक अमृत कुण्ड है, जिसके ऊपर कई वर्षों से एक ही आकार में हरा भरा वट वृक्ष मौजूद है। इसके पास से एक झरना भी बारहों महीने बहता रहता है। इस सरोवर का जलस्तर हर मौसम में एक समान बना रहता है।

मंदिर के आस-पास काफी हरियाली है जहां नीम, पीपल, वट वृक्ष और अन्य कई तरह के वृक्ष मौजूद हैं। इससे मंदिर का वातावरण हमेशा सुखद और सौम्य बना रहता है।

इस मंदिर के आसपास लाल रंग की चट्टानें हैं जिन पर सूर्य की किरणें पड़ने से पूरा क्षेत्र लाल रंग की आभा से भर उठता है... इस अद्भुत आभा और चमत्कारों की वजह से ही इस मंदिर को भारत के सभी संतोषी माता मंदिरों के बीच वास्तविक मंदिर माना जाता है।

यहां कई राज्यों जैसे दिल्ली एनसीआर, पंजाब, हरियाणा, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, यूपी और गुजरात तक से श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए आते हैं। श्रद्धालु व्रत की समाप्ति के लिए यहां आते हैं और पूरे विधि विधान से पूजा को संपन्न करते हैं। इसके लिए मंदिर द्वारा पूरी व्यवस्था की जाती है।

यहां राजस्थान के मारवाड़ स्टाइल के पारंपरिक परिधान में काफी महिलाएं नजर आती हैं जो माता की पूजा के लिए खासकर शुक्रवार को यहां आती हैं।


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