मन ना रंगाये रंगाये जोगी कपड़ा – संत कबीर दास जी का यह अमर भजन हमें यह सिखाता है कि केवल बाहरी आडंबर और वेशभूषा से सच्ची साधुता प्राप्त नहीं होती।
असली भक्ति मन को ईश्वर में लगाना है। मंदिर जाना, पूजा-पाठ करना, शास्त्र पढ़ना – सब तभी सार्थक है जब मन सच्चे नाम और भक्ति से रंग जाए।
इस भजन में कबीर दास जी हमें सच्चे साधक का मार्ग दिखाते हैं – भक्ति, सत्य और निष्ठा का।
इस भजन को सुनकर आत्मा को शांति और मन को गहराई मिलेगी।
“Man Na Rangaye Jogiya Kapda” – Sant Kabir Das Ji’s timeless bhajan reminds us that true devotion does not come from outer appearance but from a heart filled with divine love.
Wearing saffron robes, reading scriptures, or visiting temples is meaningful only when the soul is truly connected with the Lord.
👉 This Kabir Bhajan inspires us to seek inner purity, truth, and devotion.
Listen to this soulful bhajan and connect with the eternal wisdom of Sant Kabir Das Ji.
इस भजन का भावार्थ (अनुवाद):
मन ना रंगाये, रंगाये जोगी कपड़ा
👉 कबीर जी समझाते हैं कि असली साधना मन की होती है। अगर मन भगवान में नहीं लगा, तो केवल वस्त्र बदलने से कोई लाभ नहीं।
आसन मारि जोगी मंदिरां में बैठे, नाम छोड़ जोगी पूजन लागे पथरा।।
👉 कबीर जी कहते हैं कि मंदिर में बैठना या पूजा करना बुरा नहीं है, लेकिन असली साधना है भगवान का नाम स्मरण और आत्मा की खोज। बाहरी पूजा तभी फलदायी होती है जब मन भीतर भी जुड़ा हो।
कनवा फड़ाय जोगी जटवा बढ़ौले, दाढ़ी बढ़ाय जोगी हो गये बकरा।।
👉 बाहरी रूप-रंग जैसे कान छिदवाना, जटाएँ या दाढ़ी बढ़ाना – ये सब परंपरा का हिस्सा हैं, पर असली महत्व तो मन के शुद्ध होने का है। केवल बाहरी रूप से ही साधु नहीं बना जा सकता।
जंगल जाये जोगी धुनिया रमौले, काम जराय जोगी हो गये हिजरा।।
👉 जंगल जाना, साधना करना भी अच्छा है, लेकिन अगर मन की इच्छाओं और वासनाओं को नहीं जीता तो साधना अधूरी है। असली शक्ति भीतर की जीत में है।
मथवा मुंडाय जोगी भगवा रंगोले, गीता बाँच जोगी हो गये लबरा।।
👉 सिर मुंडाना, भगवा पहनना, या शास्त्र पढ़ना – ये सब साधना के साधन हैं, लेकिन इनका असली फल तभी मिलता है जब इंसान का आचरण और जीवन भी उसी अनुसार बदलता है।
कहत ‘कबीर’ सुनो भाई साधो, यम दरवाजे पे जायेगा पकड़ा।।
👉 कबीर जी चेतावनी नहीं, बल्कि समझा रहे हैं – मृत्यु सबको आती है। उस समय केवल बाहरी आडंबर नहीं, बल्कि सच्ची भक्ति और अच्छे कर्म ही साथ जाते हैं।
✨ मुख्य संदेश
कबीर जी कहना चाहते हैं कि –
साधना, पूजा-पाठ और धार्मिक रीति-रिवाज अच्छे हैं, पर उनका वास्तविक मूल्य तभी है जब मन भगवान की भक्ति और सच्चाई से जुड़ा हो।
बाहरी दिखावे से ज़्यादा ज़रूरी है भीतर की निष्ठा और भक्ति।
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