Chal_nanadai_sushila_nanadai

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उत्तराखंड की लोक विरासत को बचाने व बढावा देने के लिए नयी पीढी तक पहुँचाने की ये मुहिम पुराने गीतो की श्रृंखला मे इस गीत को जोडा है
बहुत ही पौराणिक गीत है और सच्ची घटना पर आधारित है ।
गीत की बोल - चल नणँदै सुशीलै नणँदा,
गीतकार- वीरू रावत
ढोलक - मनीष रावत
धुन पौराणिक

लिरिक्स
चल नणँदै सुशीलै नणँदा, पल्या छाल जयोलै या ।
पल्या छाल जाकी नणँदा मिठी बेरी खयोलै या ।।

पुँगणू बयू च हे भौजी...........2
पल्या छाल नि जाणु हे भौजी गदनू अयूब चै या ।।

चौंलु की छपाक हे नणँदा ........2
वल्या ढुँगी मा खुटि धैरि नणँदा ठप मारी ठहाके या ।।

भ्यली खायी मीठी हे भौजी .......2
ब्याला की अयी च हे भौजी म्यारा भाजी की चिट्ठे या ।।

बिजली की तार हे नणँदा...........2
क्या ल्यख्यूँ चिट्ठी मा तारा भैजी कू, कब आणा छी घारै या ।।

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