Dwarka Dham Gujarat| द्वारकाधीश मंदिर, नागेश्वर ज्योर्तिलिंग, गोपी तालाब के संपूर्ण दर्शन|

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जय द्वारकाधीश जय Shri कृष्ण

द्वारका शहर भारत के गुजरात राज्य के देवभूमि द्वारका ज़िले में स्थित एक प्राचीन नगर है, जो कि अहमदाबाद से 439 किलोमीटर की दूरी पर है। द्वारका गोमती नदी और अरब सागर के किनारे ओखामंडल प्रायद्वीप के पश्चिमी तट पर बसा हुआ है। यह हिन्दुओं के चारधाम में से एक है और सप्तपुरी (सबसे पवित्र प्राचीन नगर) में से भी एक है। यह श्रीकृष्ण के प्राचीन राज्य द्वारका का स्थल है और गुजरात की सर्वप्रथम राजधानी माना जाता है। द्वारका शहर का इतिहास महाभारत में द्वारका साम्राज्य से जुड़ा है।
इसी शहर मे द्वारकाधीश मंदिर है, जिसे जगत मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, जो भगवान कृष्ण को समर्पित है। पांच मंजिला मुख्य मंदिर चूना पत्थर और रेत से निर्मित अपने आप में भव्य और अद्भुत है। माना जाता है कि 2200 साल पुरानी इस वास्तुकला का निर्माण श्रीकृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ ने किया था, जिन्होंने इसे भगवान कृष्ण द्वारा समुद्र से प्राप्त भूमि पर बनाया था। मंदिर के भीतर अन्य मंदिर भी हैं जो सुभद्रा, बलराम और रेवती, वासुदेव, रुक्मिणी और कई अन्य लोगों को समर्पित हैं।
जन्माष्टमी की पूर्व संध्या पर द्वारकाधीश मंदिर हजारों भक्तों द्वारा पूजा और अनुष्ठान से सजाया जाता है। यह मंदिर आप को आंतरिक शांति और पवित्रता में बदल देता है। मंदिर में जाने से पहले आपको बता दे की मंदिर में मोबाइल, कैमरा आदि अंदर ले जाने की अनुमति नहीं है। इस लिए बाहर से ही फोटोग्राफी की जा सकती है।

सुदामा सेतु, द्वारका अवलोकन
सुदामा सेतु पुल एक आश्चर्यजनक झूला पुल है जो पैदल चलने वालों के लिए गोमती नदी पार करने के लिए बनाया गया है। इस पुल का नाम भगवान कृष्ण के बचपन के दोस्त सुदामा के नाम पर रखा गया था। इसका उद्घाटन 2016 में गुजरात की सीएम ने किया था। सुदामा सेतु द्वीप पर प्राचीन जगत मंदिर और पवित्र पंचकुई तीर्थ को जोड़ता है जो पौराणिक पांडव भाइयों से जुड़ा हुआ है। मोरबी में हुए पुल हादसे के बाद इस पुल को अब बंद कर दिया है।
यह स्थान गोमती नदी के पार स्थित एक द्वीप है। यहां गरुड़गामी श्री लक्ष्मी नारायण जी का एक मंदिर है जिसमें लक्ष्मी नारायण गरुड़ स्वयंभू मूर्ति है। मंदिर में एक पेड़ के नीचे दुर्वासा ऋषि की एक मूर्ति स्थापित है। मंदिर की एक संरचना में रामेश्वरम के पास राम सेतु का एक तैरता हुआ पत्थर भी प्रदर्शित किया गया है। इसी स्थान के पास पांच कुंएं है, जिसे पांच पांडव कुआं या पंचनंद तीर्थ कहा जाता है।
नागेश्वर मंदिर
नागेश्वर मंदिर भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह द्वारका और बेयट द्वारका द्वीप के बीच मार्ग पर स्थित है। इसे कभी-कभी नागनाथ मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, यहां के मुख्य देवता भगवान शिव हैं, जिन्हें नागेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है। शिव पुराण के अनुसार, जो लोग नागेश्वर ज्योतिर्लिंग पर प्रार्थना करते हैं वे सभी जहर, सांप के काटने और सांसारिक आकर्षण से मुक्त हो जाते हैं। नागेश्वर मंदिर का एक प्रमुख आकर्षण भगवान शिव की 80 फीट ऊंची विशाल प्रतिमा है।
यह मंदिर अपने आप में विशिष्ट हिंदू वास्तुकला की विशेषता है। नागेश्वर शिव लिंग पत्थर से बना है, जिसे द्वारका शिला के नाम से जाना जाता है, इस पर छोटे-छोटे चक्र बने हुए हैं। यह तीन मुखी रुद्राक्ष के आकार का होता है। महा शिवरात्रि के त्योहार पर, नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में भव्य उत्सव मनाया जाता है।
रुक्मणि मंदिर,
श्री रुक्मणी देवी मंदिर भगवान कृष्ण की प्रमुख पत्नी रुक्मिणी को समर्पित है, जिन्हें माता लक्ष्मी का अवतार माना जाता है। नागेश्वर ज्योतिर्लिंग तथा बेट द्वारका जाते समय देवी रुक्मिणी का यह मंदिर द्वारका से निकलते ही रास्ते में ही पड़ता है। मंदिर द्वारका से बाहरी ओर लगभग 2 किलो मीटर की दूरी पर स्थित है। मंदिर की दीवारों पर हाथी, घोड़े, देव और मानव मूर्तियाँ की नक्काशी की गई है। वर्तमान मंदिर का अस्तित्व 12 वीं शताब्दी की संरचना माना जाता है।
मंदिर के गर्भगृह में माता रुक्मणी का चतुर्भुजी सुंदर विग्रह है, माता इस विग्रह रूप में शंख, चक्र, गदा एवं पद्म धारण किए हुए हैं। द्वारका के अधिकतर मंदिरों की ही तरह माता रुक्मिणी का यह मंदिर भी बलुआ पत्थर से निर्मित है। रुक्मणी देवी मंदिर में पीने के पानी का दान सबसे बड़ा महत्वपूर्ण दान माना जाता है।
गोपी तलाव,
गोपी तलाव द्वारका से 21.5 किलोमीटर दूर स्थित है। यहां की आस-पास की जमीन पीली है। तालाब के अन्दर से भी पीला रंग की मिट्टी निकलती है। इस मिट्टी को गोपीचन्दन कहते है। किंवदंती है कि यह झील भगवान कृष्ण की बचपन की स्मृति हुआ करती थी जहां वह गोपियों के साथ नृत्य किया करते थे। कहा जाता है कि कृष्ण से दूर रहने की बेचैनी में वृन्दावन की गोपियाँ आखिरी बार उनके साथ नृत्य करने यहां पहुँची थीं। इस प्रकार उन्होंने देवत्व के इस नृत्य के दौरान अपने जीवन का त्याग करने और मिट्टी में विलीन होने की पेशकश की।
गोपी तालाब के आस-पास कई छोटे-छोटे मंदिर हैं, जो भगवान श्री कृष्ण जी को समर्पित है। मंदिरों में राम सेतु से लाए हुए पत्थर रखे हुए हैं, जो पानी में तैरते हैं। यहां लगभग सभी दुकानो में गोपी चंदन बिकता है।
बेयट द्वीप, द्वारका के मुख्य शहर से लगभग 30 किमी दूर स्थित एक छोटा द्वीप है जो ओखा के विकास से पहले इस क्षेत्र का मुख्य बंदरगाह था, जिसे बेट द्वारका या शंकोधर भी कहा जाता है। यहाँ भगवान श्री कृष्ण जी और सुदामा जी का मंदिर है। इस मंदिर में कृष्‍ण और सुदामा की प्रतिमाओं की पूजा होती है। भेट का मतलब मुलाकात और उपहार भी होता है। दरअसल ऐसी मान्यता है कि इसी स्थान पर भगवान श्रीकृष्ण की अपने मित्र सुदामा से भेट हुई सुदामा जी जब अपने मित्र से भेंट करने यहां आए थे तो एक छोटी सी पोटली में चावल भी लाए थे।

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