GUPTA DHAM || GUPTESHWAR DHAM || भस्मासुर के डर से छुप गए थे भगवान शिव! || खुल गया राज ?
GUPTA DHAM
गुप्ता धाम
भस्मासुर के डर से छुप गए थे भगवान शिव!
गुप्तधाम महादेव मंदिर जिसे गुप्तेश्वर धाम के नाम से भी जाना जाता है, बिहार के सासाराम में सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है। कैमूर पठार में स्थित है और दक्षिण में सासाराम से 12 मील तथा शेरगढ़ से दक्षिण-पूर्व में लगभग 8 मील की दूरी पर है
श्रावण के महीने के दौरान विभिन्न स्थानों से तीर्थयात्री भगवान शिव की पूजा करने और उनका आशीर्वाद लेने के लिए यहां आते हैं। नवरात्र और वसंत पंचमी के दौरान यहां एक बड़ा मेला लगता है और दूर-दूर से लोग यहां आते हैं। यहां स्नान करने में आनंद आता है। यह एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थान माना जाता है, लेकिन पर्यटकों के लिए एक रमणीय और आकर्षक स्थान भी है।
इस गुफा के अंदर एक छोटी चट्टान पर नीबू से बनी शिलालेख (शिव-लिंग) की एक मूर्ति (स्टैलाग्माइट) है, जिसे गुप्तेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। दुनिया के इस हिस्से में इस शिलालेख (शिव-लिंग) के बारे में कई कहानियां हैं लेकिन इसे साबित करने के लिए कोई पौराणिक प्रमाण नहीं है। यह गुफा पहाड़ के पूर्वी किनारे पर एक निश्चित ऊंचाई पर है। गुफा के प्रवेश द्वार से नीचे उतरना पड़ता है। प्रवेश द्वार पर यह 18 फीट चौड़ा और 12 फीट ऊंचा है। गुफा के अंदर का रास्ता अंधेरा, कीचड़युक्त, फिसलन भरा और नम है। लेकिन, पिछले वर्ष सतही फर्श को सीमेंट कर दिया गया है। गुफा के अंदर 363 फीट अंदर जाने के बाद गहरी खाई है, जिसमें हमेशा पानी भरा रहता है। इसीलिए इसे पाताल गंगा भी कहा जाता है। इसके बाद एक बेहद संकरी गली है. इस गुफा के मध्य से एक रास्ता दूसरी गुफा की ओर जाता है, जो आगे चलकर तीसरी गुफा की ओर जाता है
गुप्ताधाम: पहाड़ की चढ़ाई, जंगल की सैर और गुफा में स्थित बाबा गुप्तेश्वर नाथ के दर्शन
एक साहसिक एवं सुखद यात्रा. इस यात्रा में पहाड़ का उतार-चढ़ाव, समतल, झरने, नदियाँ, जंगल सबकुछ मिलता है. यह यात्रा है रोहतास जिला के चेनारी प्रखंड में गुप्ताधाम की. कैमूर पहाड़ी पर गुफा में स्थित गुप्ताधाम की ख्याति शैव केन्द्र के रूप में है.
इस क्षेत्र में भगवान शंकर व भस्मासुर से जुड़ी कथा को जीवंत रखे हुए व पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भस्मासुर से भयभीत होकर भगवान शिव को भागना पड़ा था. वह इसी धाम की गुफा में आकर छुपे थे. भगवान विष्णु ने पार्वती का रूप धारण करके भस्मासुर को अपने सिर पर हाथ रखकर नृत्य करने का प्रस्ताव रखा. देवी पार्वती से शादी करने के लोभ में भस्मासुर ने जब अपने सिर पर हाथ रखकर नृत्य शुरू किया, तो भगवान शिव से प्राप्त किए गए वरदान के कारण वह जलकर भस्म हो गया. ऐतिहासिक गुप्तेश्वरनाथ महादेव का गुफा मंदिर को लेकर कई किंवदंतियाँ है, किन्तु इनका कोई पौराणिक आधार नहीं है. विंध्य श्रृंखला की कैमूर पहाड़ी के जंगलों से घिरे गुप्ताधाम गुफा आज भी रहस्यमय बना हुआ है.
इस स्थान पर सावन महीने के अलावा सरस्वती पूजा और महाशिवरात्रि के मौके पर मेला लगता है. सावन में एक महीना तक बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और नेपाल से हजारों शिवभक्त यहां आकर जलाभिषेक करते हैं.
गुप्ताधाम गुफा
बक्सर से गंगाजल लेकर गुप्ता धाम पहुंचने वाले भक्तों का तांता लगा रहता है. लोग बताते हैं कि विख्यात उपन्यासकार देवकी नंदन खत्री ने अपने चर्चित उपन्यास ‘चंद्रकांता’ में विंध्य पर्वत श्रृंखला की जिन तिलस्मी गुफाओं का जिक्र किया है, संभवत: उन्हीं गुफाओं में गुप्ताधाम की यह रहस्यमयी गुफा भी है. वहां धर्मशाला और कुछ कमरे अवश्य बने हैं, परंतु अधिकांश जर्जर हो चुके हैं.
रोहतास के इतिहासकार डॉ. श्यामसुंदर तिवारी का कहना है कि गुफा के नाचघर और घुड़दौड़ मैदान के बगल में स्थित पताल गंगा के पास दीवार पर उत्कीर्ण शिलालेख, जिसे श्रद्धालु ‘ब्रह्मा के लेख’ के नाम से जानते हैं, को पढ़ने से संभव है, इस गुफा के कई रहस्य खुल जाएं. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को चाहिए कि पुरातत्ववेत्ताओं और भाषाविदों की मदद से अबतक अपाठ्य रही इस लिपि को पढ़वाया जाए, ताकि इस गुफा के रहस्य पर पड़ा पर्दा हट सके.
एक साहसिक एवं सुखद यात्रा. इस यात्रा में पहाड़ का उतार-चढ़ाव, समतल, झरने, नदियाँ, जंगल सबकुछ मिलता है. यह यात्रा है रोहतास जिला के चेनारी प्रखंड में गुप्ताधाम की. कैमूर पहाड़ी पर गुफा में स्थित गुप्ताधाम की ख्याति शैव केन्द्र के रूप में है
गुप्ताधाम जाने के क्रम में कैमूर पहाड़ी का अद्भुत नजारा.
बाबाधाम की तरह गुप्तेश्वरनाथ यानी ‘गुप्ताधाम’ श्रद्धालुओं में काफी लोकप्रिय है. यहां बक्सर से गंगाजल लेकर शिवलिंग पर चढ़ाने की परंपरा है. गुफा में गहन अंधेरा होता है, बिना कृत्रिम प्रकाश के भीतर जाना संभव नहीं है. पहाड़ी पर स्थित इस पवित्र गुफा का द्वार पर जाने के बाद सीढियों से नीचे उतरना पड़ता है. द्वार के पास 18 फीट चौड़ा एवं 12 फीट ऊंचा मेहराबनुमा है. सीधे पूरब दिशा में चलने पर पूर्ण अंधेरा हो जाता है. गुफा में लगभग 363 फीट अंदर जाने पर बहुत बड़ा गड्ढा है, जिसमें सालभर पानी रहता है. इसलिए इसे ‘पातालगंगा’ कहते है.
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