श्री अनोप दास जी महाराज के भजन ||anopdas ji maharaj ke bhajan

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Anup Das Ji Maharaj ke bhajan full song

परम पुज्य परम श्रद्धेय युग प्रवर्तक साधु श्री अनोपदासजी महाराज एक ऐसे प्रज्ञा महापुरुष हुए है जिन्होंने विश्व कल्याण हेतु भौतिक देह धारण की।

🗓 आपका जन्म चैत्र सूद 14 संवत् 1905 (सन् 1848) सोमवार को गाँव बांगड़ी तह.- सुमेरपुर, पाली राजस्थान में क्षत्रिय रावणा राजपुत समाज के घर में माता श्रीमति जैतादे कँवर की कोख़ से हुआ। आपके पिता श्री का नाम श्रीमान हीरा सिंहजी चौहान था। आपकी गोत्र मादरेचा चौहान व बचपन का नाम ओखसिंहजी चौहान था। आपके दो भाई श्री किशन सिंहजी व श्री भीमसिंह जी थे।

❓ एक प्रश्न सदा आपके मन में उत्पन्न होता की जिसने तमाम जहांन को अपनी कुदरत से पैदा किया है और ज़मीन आसमान बनाया है सो परमेश्वर किस तरह से अपने हाथ से बनाई हुई चीजो को बिगाड़ सकता है क्योंकि जब लोग अपने हाथ से कोई दरख़त लगाते है, उसे अपने हाथ से नही उखाड़ते है और न बिगाड़ते है सो परमेश्वर अपने कुदरत की चीजो को किस तरह से बिगाड़ सकता है।

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अतः आप परम सत्य की जिज्ञासा वश परम पिता परमेश्वर के वास्ते साधु बने व आपने मात्र 16 वर्ष की आयु में तमाम दुनिया के दुःखो का मूल कारण खोजने व उसे दूर करने हेतु सन्यासी मार्ग अपनाया।

⛰ 12 वर्ष तक आप आबू, आडावळआ, मालवा, सिवाणा और जालोरी के भाकरो (जंगलो/पहाड़ो) में इसकी खोज में लगे रहे व कठोर तप से आपने परम् सत्य को जान लिया।

सत्य की खोज के दौरान आपके साथ जो तमाम व कमाल घटनाए घटी अतः जो आप पर बीती हुई बाते हुई, समामुख व नजरों से देखी हुई वाक़िआत गुजरी व आप द्वारा जो दुःख का मूल कारण खोजा गया, वे सारे मुक़म्मल हालात मय सनद और हवालों के आप द्वारा दिनांक 17 अप्रैल सन् 1909 वैशाख सुदी 12 संवत् 1965 को शिवगंज एरणपुरा छावणी में बैठ कर अपनी अनुपम रचना श्री जगतहितकारनी में पेश किये गये। यह किताब फ़ायदा-ए-आम के वास्ते तैयार की गई और इसमें तमाम दुनिया की औलाद बचाने का रास्ता बताया गया।

💫 आप परमदयालु हृदयवश दलितों, पीड़ितों, शोषितों, गरीबो और अनबोलो की सेवा 30 वर्षो तक करते रहे तथा जन सामान्य के सम्पर्क में रहकर दीन-दुखियो के दर्द को दूर करने में लगे रहे। आपने कुचरित्र सामन्तशाही, राक्षसी प्रवर्तियुक्त पुंजीपतियों, रक्त पिपाशु ब्याजभोजियो के आतंक से जन-सामान्य को भय मुक्त किया। आप द्वारा रचित "श्री जगतहितकारनी" नामक ग्रन्थ समस्त संसार के दुःख को दूर करने का मार्ग प्रशस्त करने वाली अनुपम कृति है जो हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी व गुजराती में उपलब्ध है।

✨ आपने जन समुदाय को अहम अहंकार रूपी आडम्बर से मुक्त रहने के लिये प्रकृति -कुदरत -मालिक - परमेश्वर व जमीन माता की पहचान का मार्ग बतलाया और जमीन माता एक जिन्दा जीव है सो इसके दुःख दर्द को समझने के लिये सज्जनो से गुजारिश की। आपने सात्विक खान-पान पर जोर दिया। सामाजिक कुरीतियों जैसे डाकन प्रथा, बलि प्रथा, पेड़ काटना, पेड़ो में भुत प्रेत के नाम से किले गाड़ना, पेड़ो की टहनियों पर जानवरो की खाल लटकाना, बाल विवाह, मन में उत्पन्न वहमो (जैसे किसी के सामने छींकने से बुरा होना, नजर लगना, सुबह किसी का मुह देखने से दिन खराब निकलना) इत्यादि को बन्द कराने की कोशिश की व शिक्षा पर जोर दिया, हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे को बढ़ावा दिया और कर्म महत्व का अनुभव कराया।

🌞 सनातन धर्म के अनुरूप आप दसवें अवतार माने जाते है क्योंकि जिस तरह रावण, हिरण्यकश्यप, कंश व कारूँन के इंद्रजाल, राक्षसीविद्या, जादूचाला व काफ़िर विद्या को उजागर करने वाले अवतार कहलाए उसी भाँती आपने भी इस कलयुग नाम से पाप चलाने वालो का पर्दाफाश अपनी किताब में करके तमाम दुनिया को यह बताया की सृष्टि में तकलीफे परमेश्वर की कुदरत से पैदा नही होती ।
इसी कारण आप जन मानस के हृदय में नकलंक अवतार की पदवी लिये है।

🌟 आपकी तपोभूमि पर प्रति वर्ष मेले आयोजित किये जाते है। आपके अनुयायी भाविक भक्त गण राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब आदि स्थानों पर लाखों करोड़ो की तादाद में विद्यमान है।

🌅 भक्त भाविक गणों द्वारा जगह-जगह पर विश्व कल्याण केंद्र स्थापित किये गये है जिन्हें "साधु श्री अनोपदासजी महाराज की झुपडी" कहाँ जाता है।

🌳 *आप निर्वाण आषाढ़ वद बीज संवत् 1978 सन् 1921 में गाँव जाखोड़ा, सुमेरपुर, जिला- पाली में 73 वर्ष की आयु प्राप्त कर पञ्च तत्व में समाहित हुए
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