धारा 195 दण्ड प्रक्रिया संहिता | Section 195 Crpc in Hindi - Dand Prakriya Sanhita Dhara 195

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धारा 195 दण्ड प्रक्रिया संहिता | Section 195 Crpc in Hindi - Dand Prakriya Sanhita Dhara 195

Section 195 in The Code Of Criminal Procedure, 1973
इस आर्टिकल में मै आपको “लोक न्याय के विरुद्ध अपराधों के लिए और साक्ष्य में दिए गए दस्तावेजों से संबंधित अपराधों के लिए लोक सेवकों के विधिपूर्ण प्राधिकार के अवमान के लिए अभियोजन | दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 195 क्या है | section 195 CrPC in Hindi | Section 195 in The Code Of Criminal Procedure | CrPC Section 195 | Prosecution for contempt of lawful authority of public servants, for offences against public justice and for offences relating to documents given in evidence” के विषय में बताने जा रहा हूँ आशा करता हूँ मेरा यह प्रयास आपको जरुर पसंद आएगा । तो चलिए जानते है की –
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 195 | Section 195 in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 195 in Hindi ] –
लोक न्याय के विरुद्ध अपराधों के लिए और साक्ष्य में दिए गए दस्तावेजों से संबंधित अपराधों के लिए लोक सेवकों के विधिपूर्ण प्राधिकार के अवमान के लिए अभियोजन–
(1) कोई न्यायालय,
(क) (i) भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 172 से धारा 188 तक की धाराओं के (जिनके अंतर्गत ये दोनों धाराएं भी है) अधीन दंडनीय किसी अपराध का, अथवा
(ii) ऐसे अपराध के किसी दुप्रेरण या ऐसा अपराध करने के प्रयत्न का, अथवा
(iii) ऐसा अपराध करने के लिए किसी आपराधिक षडयंत्र का,
संज्ञान संबद्ध लोक सेवक के, या किसी अन्य ऐसे लोक सेवक के, जिसके वह प्रशासनिक तौर पर अधीनस्थ है, लिखित परिवाद पर ही करेगा, अन्यथा नहीं;
(ख) (i) भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की निम्नलिखित धाराओं अर्थात् 193 से 196 (जिनके अंतर्गत ये दोनों धाराएं भी हैं), 199, 200, 205 से 211 (जिनके अंतर्गत ये दोनों धाराएं भी है और 228 में से किन्हीं के अधीन दंडनीय किसी अपराध का, जब ऐसे अपराध के बारे में यह अभिकथित है कि वह किसी न्यायालय में की कार्यवाही में या उसके संबंध में किया गया है ; अथवा
(ii) उसी संहिता की धारा 463 में वर्णित या धारा 471, धारा 475 या धारा 476 के अधीन दंडनीय अपराध का, जब ऐसे अपराध के बारे में यह अभिकथित है कि वह किसी न्यायालय में की कार्यवाही में पेश की गई साक्ष्य में दी गई किसी दस्तावेज के बारे में किया गया है ; अथवा
(iii) उपखंड (i) या उपखंड (ii) में विनिर्दिष्ट किसी अपराध को करने के लिए आपराधिक षडयंत्र या उसे करने के प्रयत्न या उसके दुप्रेरण के अपराध का,
संज्ञान ऐसे न्यायालय के, या न्यायालय के ऐसे अधिकारी के, जिसे वह न्यायालय इस निमित्त लिखित रूप में प्राधिकृत करे या किसी अन्य न्यायालय के, जिसके वह न्यायालय अधीनस्थ है लिखित परिवाद पर ही] करेगा अन्यथा नहीं।
(2) जहां किसी लोक सेवक द्वारा उपधारा (1) के खंड (क) के अधीन कोई परिवाद किया गया है वहां ऐसा कोई प्राधिकारी, जिसके वह प्रशासनिक तौर पर अधीनस्थ है, उस परिवाद को वापस लेने का आदेश दे सकता है और ऐसे आदेश की प्रति न्यायालय को भेजेगा; और न्यायालय द्वारा उसकी प्राप्ति पर उस परिवाद के संबंध में आगे कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी:
परतु ऐसे वापस लेने का कोई आदेश उस दशा में नहीं दिया जाएगा जिसमें विचारण प्रथम बार के न्यायालय में समाप्त हो चुका है।
(3) उपधारा (1) के खंड (ख) में “न्यायालय” शब्द से कोई सिविल, राजस्व या दंड न्यायालय अभिप्रेत है और उसके अंतर्गत किसी केंद्रीय, प्रांतीय या राज्य अधिनियम द्वारा या उसके अधीन गठित कोई अधिकरण भी है यदि वह उस अधिनियम द्वारा इस धारा के प्रयोजनार्थ न्यायालय घोषित किया गया है।
(4) उपधारा (1) के खंड (ख) के प्रयोजनों के लिए कोई न्यायालय उस न्यायालय के जिसमें ऐसे पूर्वकथित न्यायालय की अपीलनीय डिक्रियों या दंडादेशों की साधारणतया अपील होती है, अधीनस्थ समझा जाएगा या ऐसा सिविल न्यायालय, जिसकी डिक्रियों की साधारणतया कोई अपील नहीं होती है, उस मामूली आरंभिक सिविल अधिकारिता वाले प्रधान न्यायालय के अधीनस्थ समझा जाएगा जिसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर ऐसा सिविल न्यायालय स्थित है :
परन्तु
(क) जहाँ अपीलें एक से अधिक न्यायालय में होती हैं वहां अवर अधिकारिता वाला अपील न्यायालय वह न्यायालय होगा जिसके अधीनस्थ ऐसा न्यायालय समझा जाएगा;
(ख) जहां अपीलें सिविल न्यायालय में और राजस्व न्यायालय में भी होती हैं वहां ऐसा न्यायालय उस मामले या कार्यवाही के स्वरूप के अनुसार, जिसके संबंध में उस अपराध का किया जाना अभिकथित है, सिविल या राजस्व न्यायालय के अधीनस्थ समझा जाएगा।
धारा 195 CrPC
[ CrPC Sec. 195 in English ] –
“ Prosecution for contempt of lawful authority of public servants, for offences against public justice and for offences relating to documents given in evidence ”–
1. No Court shall take cognizance—

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