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Скачать или смотреть Class 10th Hindi श्रम विभाजन और जाति प्रथा|| vvi 2026 Bihar Board most important Questions

  • Sm Classes31
  • 2025-10-06
  • 496
Class 10th Hindi श्रम विभाजन और जाति प्रथा|| vvi 2026 Bihar Board most important Questions
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Описание к видео Class 10th Hindi श्रम विभाजन और जाति प्रथा|| vvi 2026 Bihar Board most important Questions

Class 10th Hindi श्रम विभाजन और जाति प्रथा|| vvi 2026 Bihar Board most important Questions #science
आपके प्रश्न "श्रम विभाजन और जाति प्रथा" का विश्लेषण निम्नलिखित बिंदुओं में किया जा सकता है। ये दोनों ही अवधारणाएँ समाज में कार्यों के बँटवारे से जुड़ी हैं, लेकिन उनकी प्रकृति, उद्देश्य और परिणाम में जमीन-आसमान का अंतर है।

1. श्रम विभाजन (Division of Labour) क्या है?

श्रम विभाजन एक सामाजिक-आर्थिक अवधारणा है जिसमें उत्पादन की प्रक्रिया को छोटे-छोटे कार्यों में बाँट दिया जाता है और अलग-अलग लोग या समूह उन अलग-अलग कार्यों में विशेषज्ञता हासिल कर लेते हैं।

· स्वैच्छिक और व्यावहारिक: यह कौशल, रुचि और आर्थिक दक्षता पर आधारित होता है। एक व्यक्ति अपनी योग्यता के अनुसार कोई भी पेशा चुन सकता है।
· लचीलापन: इसमें व्यक्ति अपनी स्थिति बदल सकता है। एक इंजीनियर का बेटा डॉक्टर बन सकता है और एक किसान का बेटा शिक्षक।
· उद्देश्य: उत्पादकता और दक्षता बढ़ाना, आर्थिक विकास को गति देना।
· उदाहरण: एक कार फैक्ट्री में कुछ लोग इंजन लगाते हैं, कुछ पहिए, कुछ पेंटिंग का काम करते हैं। यह श्रम का विभाजन है।

2. जाति प्रथा (Caste System) क्या है?

जाति प्रथा भारतीय समाज की एक पारंपरिक सामाजिक संरचना है जो जन्म पर आधारित है। इसमें श्रम का विभाजन जन् # म से ही तय हो जाता है।

· अनैच्छिक और जन्मजात: व्यक्ति का पेशा और सामाजिक स्थिति उसके जन्म से ही तय होती है। एक व्यक्ति चाहकर भी अपनी जाति से बंधे पेशे को बदल नहीं सकता था।
· कठोर और अबंधनकारी: यह प्रथा अत्यंत कठोर है और सामाजिक गतिशीलता को पूरी तरह रोकती है। इसमें ऊँच-नीच और छुआछूत की भावना निहित है।
· उद्देश्य: सामाजिक व्यवस्था और वर्ण/जाति की "शुद्धता" बनाए रखना, सत्ता का संरक्षण करना। आर्थिक दक्षता इसका उद्देश्य नहीं था।
· उदाहरण: ब्राह्मण का काम पूजा-पाठ, क्षत्रिय का शासन और युद्ध, वैश्य का व्यापार और शूद्र का सेवा का कार्य माना जाता था। एक शूद्र चाहकर भी पढ़-लिख नहीं सकता था और न ही एक ब्राह्मण चाहकर भी खेती या मोची का काम कर सकता था।

3. मुख्य अंतर (श्रम विभाजन बनाम जाति प्रथा)

आधार श्रम विभाजन जाति प्रथा
आधार योग्यता, रुचि, प्रशिक्षण जन्म
लचीलापन उच्च, व्यक्ति पेशा बदल सकता है शून्य, पेशा जन्म से ही निश्चित
उद्देश्य आर्थिक दक्षता और विकास सामाजिक नियंत्रण और ऊँच-नीच बनाए रखना
सामाजिक गतिशीलता संभव और प्रोत्साहित असंभव और निषेध
प्रकृति खुली, प्रतिस्पर्धात्मक बंद, विशेषाधिकार प्रदान करने वाली
भेदभाव आर्थिक आधार पर (अमीर-गरीब) सामाजिक और धार्मिक आधार पर (ऊँची-नीची जाति)

4. डॉ. भीमराव आंबेडकर का दृष्टिकोण

डॉ. आंबेडकर ने जाति प्रथा को "श्रम के जबरिया विभाजन" (Forced Division of Labour) का रूप बताया। उनके अनुसार:

· श्रम विभाजन एक स्वाभाविक और स्वस्थ सामाजिक प्रक्रिया हो सकती है, लेकिन जाति प्रथा इसका एक विकृत और अनैतिक रूप है।
· जाति प्रथा में श्रम का विभाजन व्यक्ति की इच्छा या योग्यता से नहीं, बल्कि जन्म के आधार पर थोपा जाता है।
· यह प्रथा समाज को टुकड़ों में बाँटती है, लोगों के बीच घृणा और ईर्ष्या पैदा करती है और राष्ट्रीय एकता के लिए खतरा है।
· आंबेडकर का मानना था कि एक स्वस्थ समाज के लिए "सामाजिक संसक्ति (Social Solidarity)" जरूरी है, जो जाति प्रथा में संभव नहीं है। उन्होंने अंतर्जातीय विवाह (Inter-caste Marriage) को इस प्रथा को तोड़ने का सबसे शक्तिशाली हथियार माना
संक्षेप में, श्रम विभाजन एक आर्थिक औज़ार है जबकि जाति प्रथा एक सामाजिक बंधन है।

· श्रम विभाजन व्यक्ति को उसकी क्षमता के अनुसार आगे बढ़ने का अवसर देता है और समाज की प्रगति में योगदान करता है।
· जाति प्रथा व्यक्ति की क्षमताओं को कुचलती है, उसे एक ऐसे पिंजरे में बंद कर देती है जिसे वह चाहकर भी नहीं तोड़ सकता। यह मानवीय गरिमा और समानता के सिद्धांतों के विपरीत है।

इसलिए, जाति प्रथा को श्रम विभाजन का एक रूप मानना एक भूल होगी; यह वास्तव में एक सामाजिक भेदभाव और उत्पीड़न की प्रथा है जिसने श्रम विभाजन के सिद्धांत का दुरुपयोग किया
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