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ग्रह और राशियों के अलावा जो शब्द ज्योतिष में बहुत चर्चित हैं , वह शब्द हैं नक्षत्र। यदि आपसे पूछा जाये कि नक्षत्र क्या है तो आपमें से अधिकांश का जवाब होगा , आसमान के तारा समूहों को नक्षत्र कहा जाता है। पर बात ऐसी नहीं है, जिस तरह पृथ्वी के चारो और के आसमान को 12 भागों में बांटकर 30-30 डिग्री की एक एक राशि निकली जाती है। सूर्य हर राशि में एक एक महीने चलकर 12 महीने के बाद उसी जगह पर पहुँच जाता है, जहाँ से सालभर पहले उसने यात्रा शुरू की थी। भले ही आसमान के उस 30 डिग्री के तरसमूहों की आकृति से राशियों के मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ और मीन के रूप में नामकरण करने में सुविधा हुई हो।
उसी तरह पृथ्वी के चारो और के आसमान को 27 भागों में बांटकर ११ डिग्री २० मिनट का एक एक नक्षत्र निकाला जाता है। चन्द्रमा हर नक्षत्र में एक एक दिन चलकर 27 दिनों बाद उसी जगह पर पहुँच जाता है , जहाँ से महीने भर पहले उसने यात्रा शुरू की थी। भले ही आसमान के उस १३ डिग्री २० मिनट के तारा समूहों को नक्षत्रों के नाम अश्विनी, भरणी , कृतिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा , पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा , मघा, पू फाल्गुनी, उ फाल्गुनी, हस्त, चित्र, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, शतमिषा, पू भाद्रपद, उ भाद्रपद, रेवती जाने लगे , जिसके बाद तारासमूह की चर्चा सामान्य रही और 13 डिग्री 20 मिनट की चर्चा गौण हो गयी।
आपमें से सबको जानकर आश्चर्य होगा कि हिंदी महीनो के नाम इन्ही नक्षत्रों के आधार पर रखे गए हैं। हम सभी जानते हैं कि हिंदी महीनो का समय एक पूर्णिमा से दूसरे पूर्णिमा तक का होता है। पूर्णिमा के दिन सूर्य और चंद्र आमने सामने होता है, सूर्य के दूसरी ओर पूर्णिमा का चाँद जिस नक्षत्र में होता है , हिंदी महीनो के नाम वही होते हैं। जिस महीने पूर्णिमा का चाँद चित्रा नक्षत्र में हो तो वह माह चैत्र कहलाता है। जिस महीने पूर्णिमा का चाँद विशाखा नक्षत्र में हो तो वह माह बैशाख कहलाता है। जिस महीने पूर्णिमा का चाँद ज्येष्ठा नक्षत्र में हो तो वह माह ज्येष्ठ कहलाता है। जिस महीने पूर्णिमा का चाँद पू आषाढा नक्षत्र में हो तो वह माह आषाढ़ कहलाता है। जिस महीने पूर्णिमा का चाँद श्रवण नक्षत्र में हो तो वह माह श्रावण कहलाता है। जिस महीने पूर्णिमा का चाँद भाद्रपद नक्षत्र में हो तो वह माहभाद्रपद कहलाता है। जिस महीने पूर्णिमा का चाँद अश्विनी नक्षत्र में हो तो वह माह आश्विन कहलाता है। जिस महीने पूर्णिमा का चाँद कृतिका नक्षत्र में हो तो वह माह कार्तिक कहलाता है। जिस महीने पूर्णिमा का चाँद मृगशिरा नक्षत्र में हो तो वह माह मार्गशीर्ष कहलाता है। जिस महीने पूर्णिमा का चाँद पुष्य नक्षत्र में हो तो वह माह पौष कहलाता है। जिस महीने पूर्णिमा का चाँद मघा नक्षत्र में हो तो वह माह माघ कहलाता है। जिस महीने पूर्णिमा का चाँद फाल्गुनी नक्षत्र में हो तो वह माह फाल्गुन कहलाता है।
प्रत्येक दो साल बाद तीसरे साल ऐसी स्थिति बनती है , जब सूर्य अपनी किसी राशि के शुरूआती बिंदु में हो और पूर्णिमा का दिन आ जाये। दूसरे महीने उसी राशि के अंतिम बिंदु में फिर से पूर्णिमा का दिन आ जाता है। ऐसे में लगातार दो महीने पूर्णिमा का चाँद किसी एक ही नक्षत्र में मौजूद होता है , पहली बार नक्षत्र के शुरूआती बिंदु और दुसरी बार नक्षत्र के अंतिम बिंदु में। इसलिए हिन्दू केलिन्डर में हर तीसरे साल एक माह दो बार आ जाता है और इस तरह हर तीसरे वर्ष प्राकृतिक रूप से हिन्दू केलिन्डर में 13 महीने हो जाते हैं।
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