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Скачать или смотреть देव्यपराधक्षमापनस्तोत्रम्॥न मन्त्रं नो यन्त्रं।।Na Mantram No Yantram Stottram।। Neeraj Uniyal

  • Neeraj Uniyal Official
  • 2024-07-20
  • 48899
देव्यपराधक्षमापनस्तोत्रम्॥न मन्त्रं नो यन्त्रं।।Na Mantram No Yantram Stottram।। Neeraj Uniyal
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Описание к видео देव्यपराधक्षमापनस्तोत्रम्॥न मन्त्रं नो यन्त्रं।।Na Mantram No Yantram Stottram।। Neeraj Uniyal

॥अथ देव्यपराधक्षमापनस्तोत्रम्॥

न मन्त्रं नो यन्त्रं तदपि च न जाने स्तुतिमहो
न चाह्वानं ध्यानं तदपि च न जाने स्तुतिकथाः।
न जाने मुद्रास्ते तदपि च न जाने विलपनं
परं जाने मातस्त्वदनुसरणं क्लेशहरणम्॥१॥

माँ मैं न मन्त्र जानता हूँ , न यन्त्र ; अहो ! मुझे स्तुति का भी ज्ञान नहीं है । न आवाहन का पता है , न ध्यान का । स्तोत्र और कथा की भी जानकारी नहींहै । न तो तुम्हारी मुद्राएँ जानता हूँ और न मुझे व्याकुल होकर विलाप करना हीं आता है ; परंतु एक बात जानता हूँ , केवल तुम्हारा अनुसरण – तुम्हारे पीछे चलना । जो कि सब क्लेशों को – समस्त दु:ख – विपत्तियों को हर लेनेवाला है १॥



विधेरज्ञानेन द्रविणविरहेणालसतया
विधेयाशक्यत्वात्तव चरणयोर्या च्युतिरभूत्।
तदेतत् क्षन्तव्यं जननि सकलोद्धारिणि शिवे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति॥२॥



सबका उद्धार करनेवाली कल्याणमयी माता ! मैं पूजा की विधि नहीं जानता , मेरे पास धन का भी अभाव है , मैं स्वभाव से भी आलसी हूँ तथा मुझ से ठीक – ठीक पूजा का सम्पादन हो भी नहीं सकता ; इन सब कारणों से तुम्हारे चरणों की सेवा में जो त्रुटी हो गयी है , उसे क्षमा करना ; क्योंकि कुपुत्र होना सम्भव है , किंतु कहीं भी कुमाता नहीं होती ॥२॥

पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहवः सन्ति सरलाः
परं तेषां मध्ये विरलतरलोऽहं तव सुतः।
मदीयोऽयं त्यागः समुचितमिदं नो तव शिवे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति॥३॥


माँ ! इस पृथ्वी पर तुम्हारे सीधे – सादे पुत्र तो बहुत – से हैं , किंतु उन सब में मैं ही अत्यन्त चपल तुम्हारा बालक हूँ ; मेरे – जैसा चंचल कोई विरला ही होगा । शिवे ! मेरा जो यह त्याग हुआ है , यह तुम्हारे लिये कदापि उचित नहीं है ; क्योंकि संसार में कुपुत्र होना सम्भव है , किंतु कहीं भी कुमाता नहीं होती ॥ ३॥

जगन्मातर्मातस्तव चरणसेवा न रचिता
न वा दत्तं देवि द्रविणमपि भूयस्तव मया।
तथापि त्वं स्नेहं मयि निरुपमं यत्प्रकुरुषे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति॥४॥


जगदम्ब ! मात: ! मैंने तुम्हारे चरणों की सेवा कभी नहीं की , देवि ! तुम्हें अधिक धन भी समर्पित नहीं किया ; तथापि मुझ – जैसे अधम पर जो तुम अनुपम स्नेह करती हो , इसका कारण यही है कि संसार में कुपुत्र पैदा हो सकता ह ै, किंतु कहीं भी कुमाता नहीं होती ॥४॥

परित्यक्ता देवा विविधविधसेवाकुलतया
मया पञ्चाशीतेरधिकमपनीते तु वयसि।
इदानीं चेन्मातस्तव यदि कृपा नापि भविता
निरालम्बो लम्बोदरजननि कं यामि शरणम्॥५॥


गणेशजी को जन्म देनेवाली माता पार्वती ! [ अन्य देवताओंकी आराधना करते समय ] मुझे नाना प्रकार की सेवाओं में व्यग्र रहना पड़ता था , इसलिये पचासी वर्ष से अधिक अवस्था बीत जाने पर मैंने देवताओं को छोड़ दिया है, अब उनकी सेवा – पूजा मुझ से नहीं हो पाती ; अतएव उनसे कुछ भी सहायता मिलने की आशा नहीं है । इस समय यदि तुम्हारी कृपा नहीं होगी तो मैं अवलम्ब रहित होकर किसकी शरणमें जाऊँगा ॥५॥

श्वापाको जल्पाको भवति मधुपाकोपमगिरा
निरातङ्को रङ्को विहरति चिरं कोटिकनकैः।
तवापर्णे कर्णे विशति मनुवर्णे फलमिदं
जनः को जानीते जननि जपनीयं जपविधौ॥६॥



चिताभस्मालेपो गरलमशनं दिक्पटधरो
जटाधारी कण्ठे भुजगपतिहारी पशुपतिः।
कपाली भूतेशो भजति जगदीशैकपदवीं
भवानि त्वत्पाणिग्रहणपरिपाटीफलमिदम्॥७॥



न मोक्षस्याकाङ्क्षा भवविभववाञ्छापि च न मे
न विज्ञानापेक्षा शशिमुखि सुखेच्छापि न पुनः।
अतस्त्वां संयाचे जननि जननं यातु मम वै
मृडानी रुद्राणी शिव शिव भवानीति जपतः॥८॥


नाराधितासि विधिना विविधोपचारैः
किं रुक्षचिन्तनपरैर्न कृतं वचोभिः।
श्यामे त्वमेव यदि किञ्चन मय्यनाथे
धत्से कृपामुचितमम्ब परं तवैव॥९॥


आपत्सु मग्नः स्मरणं त्वदीयं
करोमि दुर्गे करुणार्णवेशि।
नैतच्छठत्वं मम भावयेथाः
क्षुधातृषार्ता जननीं स्मरन्ति॥१०॥


जगदम्ब विचित्रमत्र किं
परिपूर्णा करुणास्ति चेन्मयि।
अपराधपरम्परापरं
न हि माता समुपेक्षते सुतम्॥११॥


मत्समः पातकी नास्ति पापघ्नी त्वत्समा न हि।
एवं ज्ञात्वा महादेवि यथायोग्यं तथा कुरु॥१२॥


महादेवि ! मेरे समान कोई पातकी नहीं है और तुम्हारे समान दूसरी कोई पापहारिणी नहीं है ; ऐसा जानकर जो उचित जान पड़े , वह करो ॥१२॥
इति श्रीशङ्कराचार्यविरचितं देव्यपराधक्षमापनस्तोत्रं सम्पूर्णम्।

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