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  • Upphysics12
  • 2025-08-27
  • 10
विद्युत धारा का चुंबकीय प्रभाव
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Описание к видео विद्युत धारा का चुंबकीय प्रभाव

चुम्बकीय क्षेत्र Magnetic Field): किसी चुम्बक के परितः वह क्षेत्र जिसमे किसी चुंबकीय किसी चुंबकीय सुई पर एक बल आघूर्ण आरोपित होता है जिसके कारण वह घूमकर एक निश्चित दिशा में ठहरती है, चुंबकीय क्षेत्र कहलाता है।
चुंबकीय क्षेत्र की तीब्रता (Intensity of Magnetic Field) : किसी स्थान पर चुंबकीय क्षेत्र के लंबवत रखे एकांक लम्बाई के तार में एकांक धारा प्रवाहित करने पर तार पर कार्यरत बल उस स्थान पर चुंबकीय क्षेत्र की तीब्रता कहलाती है।
ओर्स्टेड का प्रयोग (Orested’s Experiment): ओर्स्टेड ने अपने प्रयोग द्वारा यह निष्कर्ष निकाला की तार में प्रवाहित धारा के कारण तार के परितः चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है। तार में विद्युत धारा का मान बढ़ने पर विद्युत क्षेत्र की तीब्रता भी बढ़ जाती है। हम जानते हैं की गतिमान आवेश से ही विद्युत धारा उत्पन्न होती है अतः यह कहा जा सकता है कि गतिमान आवेश से चुंबकीय क्षेत्र की उत्पत्ति होती है।
बायो सेवार्ट ला नियम (धारावाही चालक के कारण उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र ) ( Biot- Savart’s Law) : इस नियम की सहायता से किसी चालक में प्रवाहित विद्युत धारा के कारण उसके चारों ओर उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता के लिए सूत्र प्राप्त किया जा सकता है।
माना तार A B में विद्युत धारा (I ) प्रवाहित हो रही है तार के एक छोटे खण्ड Δℓ के मध्य बिन्दु O से r दूरी धारा की दिशा से ө कोण बनाते हुए कोई बिन्दु P है तो इस नियम के अनुसार बिंदु P पर उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र की तीब्रता dB निम्न कारकों पर निर्भर करती है
i ) यह चालक में प्रवाहित विद्युत धारा ( I ) के अनुक्रमानुपाती होती है अर्थात dB ∝ I .
ii ) यह चालक खण्ड Δℓ के अनुक्रमानुपाती होती है अर्थात dB ∝ Δℓ
iii ) यह चालक के खण्ड से बिन्दु P तक की दूरी (r ) के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होती है अर्थात dB∝ ( 1 /r2 )
iv ) यह चालक खण्ड (Δℓ ) तथा दूरी (r) के बीच के कोण ө की ज्या के अनुक्रमानुपाती होती है l
dB ∝sinθ
उपरोक्त चारों नियमों को मिलाने पर
dB ∝ (I∆l sinθ)/r^2
dB = μ_0/(4 π) (I∆l sinθ)/r^2
जहाँ μ_0/(4 π) एक नियतांक है जिसका मान 10-7 न्यूटन / ऐम्पियर2 होता है l यही बायो - सेवर्ट नियम कहलाता है l यहाँ μ0 निर्वात की चुंबकशीलता है इसका मात्रक न्यूटन / ऐम्पियर 2 या न्यूटन / कूलम्ब 2 - सेकेण्ड 2 है l
विशेष परिस्थितियाँ :
i ) यदि कोण ө का मान 0 या 180 हो तो धारा के कारण उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र का मान न्यूनतम ( शून्य ) होगा।
ii ) यदि धारावाही चालक खण्ड (Δℓ ) से बिन्दु P की दूरी ( r ) यदि लंबवत अर्थात ө = 90 है तो चुम्बकीय क्षेत्र ( B ) का मान अधिकतम होता है।
iii ) किसी चालक की सम्पूर्ण लम्बाई के कारण उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र B = ∫▒dB = (μ_0 I)/4π ∫▒(dl sinθ)/r^2
चुंबकीय क्षेत्र की दिशा ज्ञात करने के नियम :
a) दाएं हाथ की हथेली का नियम : यदि हम दाएं हाथ का पंजा फैलाकर इस प्रकार रखें कि अंगुलियाँ , अंगूठे के लंबवत रहें तथा अँगूठा चालक में बहने वाली धारा की दिशा में तथा फैली हुई अंगुलियाँ उस बिंदु p की ओर संकेत करें जिस पर चुंबकीय क्षेत्र की दिशा ज्ञात करनी है , तो चुंबकीय क्षेत्र की दिशा हथेली के लंबवत बाहर की ओर होगी।
b)मैक्सवेल का दाएं हाथ का नियम : यदि हम दाएं हाथ से चालक को इस प्रकार पकड़ने की कल्पना करें कि अँगूठा धारा की दिशा में हो, तो मुड़ी हुई अँगुलियाँ चालक के परितः चुंबकीय बल रेखाओं की दिशा को व्यक्त करेंगी।
चुंबकशीलता 𝝻0 का मान मात्रक एवं विमा
𝝻0 = 4 𝝿 x 10 -7 न्यूटन /ऐम्पियर 2 या वेबर / ऐम्पियर -मीटर
𝝻0 की विमा = [ML〖T 〗^(-2) ]/[A^2 ] = [MLT^(-2) A^(-2) ]
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