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Скачать или смотреть क्या ब्रह्मा जी के 5 सिर थे? केतकी के फूल शिवजी पर क्यों नहीं चढाते?

  • वेद विज्ञान[Ved Vigyan]
  • 2022-10-11
  • 91
क्या ब्रह्मा जी के 5 सिर थे? केतकी के फूल शिवजी पर क्यों नहीं चढाते?
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Описание к видео क्या ब्रह्मा जी के 5 सिर थे? केतकी के फूल शिवजी पर क्यों नहीं चढाते?

क्या ब्रह्मा जी के 5 सिर थे? केतकी के फूल शिवजी पर क्यों नहीं चढाते?
जब समस्त शक्तियों को अपने आप में समेट कर पारब्रह्म परमेश्वर एकाकार हुए थे तब उसके बाद सृष्टि करने की पुनः इच्छा हुई. तब उन्होंने क्रम का निर्धारण जन्म, पोषण और संहार के रूप में किया और उसके निमित्त 3 विग्रह प्रकट किये जिन्हें ब्रह्मा, विष्णु और महेश के रूप में जाना जाता है. उसके बाद उन्हें अपने अनुरूप शक्तियों को संग्रह करने का आदेश दिया.
सबने अपने अनुरूप आवश्यक शक्तियों का संग्रह इधर उधर से किया. उसके बाद संयोग से एक बार ब्रह्मा जी घुमते घुमते उस स्थान पर पहुंचे जहां भगवान् विष्णु शेष शैय्या पर विराजमान थे. भगवान् विष्णु ने उन्हें देखकर पूछा कि हे भद्र आप कौन हैं? आइये, विराजिये. तब ब्रह्मा जी को बहुत क्रोध उत्पन्न हुआ. उन्होंने कहा कि अरे शठ! तुमने मुझे देखने के बाद भी आसन नहीं छोड़ा . तुम्हारा मैं वध करूँगा. और इस प्रकार दोनों युद्ध के लिये तत्पर हुए. तब भगवान् शिव ने बीच बचाव करते हुए कहा कि यह निर्णय युद्ध से नहीं होगा कि कौन श्रेष्ठ है. और यह कह कर भगवान् शिव स्तम्भ रूप में होकर बोले कि जो इसके आदि अंत का पता लगा लेगा वही श्रेष्ठ माना जाएगा. ब्रह्मा जी हंस पर सवार होकर ऊपर की तरफ चले तथा विष्णु जी गरुण पर सवार होकर पाताल वेधन कर नीचे की तरफ चले.
पारब्रह्म एकाकार परमेश्वर ने जब अपना विघटन त्रिदेवों तथा शक्तियों के रूप में किया तब उनसे पृथक हुआ प्रकृति का दोष जो परमेश्वर की महाशक्ति के कारण लुप्त था, वह अंतरिक्ष में भ्रमण कर रहा था. तथा वह उस स्तम्भ के निकट जाकर उसी से चिपक कर उसे दूषित करना चाह रहा था.
इसी मध्य हंस वाहन ब्रह्मा जी ऊपर की तरफ जाते दिखाई दिये. उस समय पांचो भूत तत्व (ठोस, द्रव, वायु, वाष्प और किरण) ब्रह्मा जी के मुख रूप में चारो तरफ देखते हुए उस स्तम्भ के साथ ऊपर की तरफ चले जा रहे थे.
प्राकृत दूषण ब्रह्मा जी को देख कर बोला कि हे पञ्चानन! तुम कहाँ चले जा रहे हो? तुम बहुत क्लांत और निराश दिखाई दे रहे हो. मुझे बताओ, क्या कारण है. ब्रह्मा जी थक चुके थे. उस स्तम्भ का आदि अंत कहीं दिखाई नहीं दे रहा था. वह वहीँ पर बैठ गये. उस दूषण ने कहा कि हे दिव्य जीव! मेरा अपना कोई दोष नहीं है. किन्तु फिर भी मुझे सृष्टिमें घृणा की दृष्टि से देखा जा रहा है. तुम मेरी कुछ सहायता करो.ब्रह्मा जी ने कहा कि मैं तुम्हारी सहायता अवश्य करूंगा किन्तु तुम्हें भी मेरी सहायता करनी पड़ेगी. वह दूषण तैयार हो गया. चूँकि वह कीर्ति रहित था अतः उसे ब्रह्मा जी ने केतकी की संज्ञा दी.
"कीर्तिं हन्त्य कारणं केतक:'
ब्रह्मा जी उसे साथ लेकर नीचे आ गये. वहां उन्होंने देखा कि विष्णु निराश, दुखी और मुँह लटकाये हुए बैठे हैं. उन्हें विश्वास हो गया कि विष्णु उस स्तम्भ का पता नहीं लगा सका है. यह जानकार वह बहुत प्रसन्न हुए. और उन्होंने घोषणा कर दी कि उन्होंने उस स्तम्भ का पता लगा लिया है. यदि विश्वास न हो तो इस केतक से पूछ लिया जाय. कटक तो लोभ का वशीभूत ही ब्रह्मा जी के साथ आया था. अतः उसने भी असत्य भाषण किया और कहा कि ब्रह्मा जी की बात सत्य है. अतः महेश को अब ब्रह्मा जी को श्रेष्ठता प्रदान कर देनी चाहिये.
महेश्वर ने ध्यान लगाया. उन्हें सब तथ्य का पता लग गया. उन्हें बहुत क्रोध हुआ. जिसके कारण उनके ललाट से भैरव देव प्रकट हुए. भैरव ने पूछा कि क्या करूँ? भगवान् महेश्वर ने कहा कि इस पञ्चानन का सिर काट डालो.
भैरव देव ने तत्काल ब्रह्मा का सिर काटना आरम्भ कर दिया.
"सवैगृहीत्वैककरेण केशं तत्पञ्चमंदृप्तमसत्यभाषणम.
छित्वा शिरांस्यस्यनिहान्तुमुद्यतः प्रकम्पयन्खड्ग मतिस्फुटंकरै:--शिवमहापुरण विद्याधर संहिता अध्याय 1 श्लोक 4
तब ब्रह्मा जी ज्योंहि भैरव देव ने अभी ब्रह्मा जी का एक सिर काटा, ब्रह्मा जी भगवान् शिव के चरणों में गिर कर विनती करने लगे-
"अथाहदेवः कितवं विधिं विगतकन्धरम.
ब्रह्मंस्त्वमर्हनणाकांक्षी शठमीशत्वामास्थितः.---श्री शिवमहापुराण विद्याधर संहिता अध्याय 1 श्लोक 9
तब भगवान् शिव ने उन्हें वरदान देकर पूज्य होने का वरदान दिये.
इधर उस दूषण स्वरूप केतक को कहा कि अरे दुष्ट तूने बहुत घृणित कार्य किया है, अतः तुम पतित हो जाओ. तब गिरते हुए केतक ने का कि हे महेश्वर! कृपा करो. मैं अज्ञानी, मूढ़ मति नीच अवश्य हूँ किन्तु साक्षात त्रिदेव के दर्शन से संसार का कोई पाप दर्शनार्थी को स्पर्श तक नहीं कर पाटा. अतः आप प्रसन्न होइये. भगवान् महेश्वर ने कहा कि अवश्य अब तुम कलुष रहित हो गये हो. अतः मैं तुम्हें वरदान देता हूँ कि पृथ्वी पर तुम भले ही गिर जाओगे किन्तु पुष्प होकर रहोगे. और विवाह, यज्ञ आदि जो भी उत्सव, पूजा-पाठ या त्यौहार होंगें तुम्हारे बिना अधूरे ही रहेगें. जो व्यक्ति तुम्हारे ठोस स्वरूप को धारण करेगा उसे दरिद्रता, ग्रह्बाधा और व्याधि हानि नहीं पहुन्चायेगें.
यही केतकी का पुष्प अत्यंत सुगन्धित और सौम्य सुन्दर होता है. तथा केतकी पत्थर-रत्न हानि, विघ्न-बाधा आदि दूर करने वाला हो गया. मैंने अपने फेसबुक के पेज पर किसी लेख में इसका चित्र भी डाल रखा है. प्रयत्न करता हूँ कि इसका चित्र भी इस विडिओ में दिखाऊं.

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