1. दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः
हे दुर्गा! जब तुम्हें स्मरण किया जाता है, तो तुम सम्पूर्ण प्राणियों के सभी भय दूर कर देती हो।
2. स्वस्थैः स्मृता मतीमतीव शुभां ददासि
जो व्यक्ति स्वस्थ और स्थिर मन से तुम्हारा स्मरण करते हैं, उन्हें तुम उत्तम बुद्धि और शुभता प्रदान करती हो।
3. दारिद्रयदुःखभयहारिणि का त्वदन्या
दारिद्र्य, दुःख और भय को हरने वाली तुम्हारे समान दूसरी कौन हो सकती है?
4. सर्वोपकारकरणाय सदाद्रचित्ता
तुम सदा सबका उपकार करने के लिए पूजनीय हो।
इस श्लोक की विस्तृत व्याख्या इस प्रकार है:
1. *दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः*
इस पंक्ति में देवी दुर्गा की महिमा का वर्णन किया गया है। जब भी संसार के किसी भी जीव को भय या संकट का अनुभव होता है, वह देवी दुर्गा को स्मरण करता है। "स्मृता" का अर्थ है स्मरण करना। जब कोई व्यक्ति देवी दुर्गा को सच्चे मन से स्मरण करता है, तो देवी उसकी समस्त आशंकाओं और भयों का नाश कर देती हैं। "अशेषजन्तोः" का अर्थ है सभी जीवों के लिए। इसका तात्पर्य यह है कि देवी दुर्गा केवल किसी विशेष व्यक्ति के लिए ही नहीं, बल्कि संसार के सभी जीवों के संकटों को दूर करती हैं।
2. *स्वस्थैः स्मृता मतीमतीव शुभां ददासि*
इस पंक्ति में बताया गया है कि जो व्यक्ति स्थिर और स्वस्थ मन से देवी दुर्गा का स्मरण करते हैं, उन्हें देवी शुभता और सद्बुद्धि प्रदान करती हैं। "स्वस्थैः" का अर्थ है जो शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ और स्थिर हैं। "मतीमतीव" का अर्थ है बुद्धिमत्ता या श्रेष्ठ सोच। यहाँ यह बताया गया है कि देवी दुर्गा न केवल भय और संकट को दूर करती हैं, बल्कि उन्हें भी आशीर्वाद देती हैं जो अपने जीवन में स्थिरता और शुभता चाहते हैं। यह पंक्ति इस बात का प्रतीक है कि जो व्यक्ति मन की शांति और सुदृढ़ता से देवी का स्मरण करता है, उसे शुभ और श्रेष्ठ फल प्राप्त होते हैं।
3. *दारिद्रयदुःखभयहारिणि का त्वदन्या*
इस पंक्ति में पूछा गया है कि दारिद्र्य (गरीबी), दुःख और भय का नाश करने वाली देवी दुर्गा के समान कौन हो सकता है? "दारिद्रय" से तात्पर्य केवल आर्थिक गरीबी नहीं है, बल्कि जीवन के हर प्रकार के अभाव से है। यह अभाव मानसिक, शारीरिक, या सामाजिक हो सकता है। "दुःख" से तात्पर्य जीवन में उत्पन्न होने वाले सभी प्रकार के कष्टों से है, और "भय" से तात्पर्य उन आशंकाओं और चिंताओं से है जो हमें भविष्य या अनिश्चितताओं को लेकर होती हैं। इस पंक्ति में यह स्पष्ट किया गया है कि देवी दुर्गा ही वह शक्ति हैं जो इन तीनों कष्टों (दारिद्र्य, दुःख, और भय) का नाश कर सकती हैं। उनका कोई विकल्प या समकक्ष नहीं है।
4. *सर्वोपकारकणाय सदाद्रचित्त*
यहाँ देवी दुर्गा की कृपा का वर्णन किया गया है। देवी दुर्गा को सदा पूजनीय माना गया है क्योंकि वह सभी का उपकार करने वाली हैं। "सर्वोपकार" का अर्थ है सभी जीवों का कल्याण और "सदा" का अर्थ है हमेशा। यह पंक्ति यह दर्शाती है कि देवी दुर्गा किसी विशेष समय, व्यक्ति या परिस्थिति में सीमित नहीं हैं, बल्कि वह सदा-सर्वदा हर किसी के लिए उपकारी हैं। इसी कारण उन्हें सदैव श्रद्धा और भक्ति से पूजनीय माना जाता है।
संक्षिप्त निष्कर्ष:
इस श्लोक के माध्यम से देवी दुर्गा की महिमा का गुणगान किया गया है। वे संकटों से घिरे हुए प्राणियों के सभी भयों का नाश करती हैं, उन्हें शुभता और सद्बुद्धि प्रदान करती हैं, और दारिद्र्य, दुःख तथा भय से मुक्त करने वाली एकमात्र देवी हैं। इसीलिए वे सदा पूजनीय और सभी का उपकार करने वाली हैं।
यहाँ श्लोक के प्रत्येक शब्द का अर्थ दिया गया है:
1. *दुर्गे* – हे दुर्गा (देवी दुर्गा)
2. *स्मृता* – स्मरण करने पर, याद करने पर
3. *हरसि* – हर लेती हो, दूर कर देती हो
4. *भीतिम्* – भय, डर
5. *अशेष* – संपूर्ण, बिना किसी शेष के
6. *जन्तोः* – प्राणियों का, जीवों का
7. *स्वस्थैः* – स्वस्थ मन वाले, स्थिर चित्त वाले
8. *स्मृता* – याद करने पर, स्मरण करने पर
9. *मती* – बुद्धि
10. *अतीव* – अत्यधिक, बहुत अधिक
11. *शुभां* – शुभता, कल्याणकारी
12. *ददासि* – प्रदान करती हो, देती हो
13. *दारिद्रय* – गरीबी, दरिद्रता
14. *दुःख* – कष्ट, दुख
15. *भय* – डर, भय
16. *हारिणि* – हरने वाली, दूर करने वाली
17. *का* – कौन
18. *त्वदन्या* – तुम्हारे अलावा, तुम्हारे सिवा
19. *सर्वोपकारकरणाय* – सभी का उपकार करने के लिए
20. *सदा* – हमेशा, निरंतर
21. *अर्चिता* – पूजनीय, वंदनीय
इस प्रकार, श्लोक के प्रत्येक शब्द का अर्थ इस तरह है, जिससे यह पूरी व्याख्या और भी स्पष्ट हो जाती है।
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