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  • Dev bhoomi 511
  • 2025-04-01
  • 8762
पांडु,धृतराष्ट्र और विदुर की जन्म कथा
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Описание к видео पांडु,धृतराष्ट्र और विदुर की जन्म कथा

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शान्तनु के सत्यवती से विवाह के पश्चात् सत्यवती के दो पुत्र हुए – चित्रांगद और विचित्रवीर्य। चित्रांगद और विचित्रवीर्य की बाल्यावस्था में ही शान्तनु का स्वर्गवास हो गया, इसलिए उनका पालन पोषण भीष्म ने ही किया। चित्रांगद के बड़े युवावस्था प्राप्त करने पर भीष्म ने उन्हें राजगद्दी पर बिठा दिया किन्तु कुछ ही काल में गन्धर्वों से युद्ध करते हुये चित्रांगद मृत्यु को प्राप्त हुआ। तब भीष्म ने उनके अनुज विचित्रवीर्य को राज्य सिंहासन सौंपा। विचित्रवीर्य को राज्य सौंपने के पश्चात् भीष्म को उसके विवाह की चिन्ता हुई।
उन्हीं दिनों काशीराज की तीन कन्याओं अम्बा, अम्बिका और अम्बालिका का स्वयंवर का आयोजन हुआ। भीष्म ने स्वयंवर में जाकर अकेले ही वहाँ आये समस्त राजाओं को परास्त कर दिया और अम्बा, अम्बिका और अम्बालिका का हरण कर हस्तिनापुर ले आये। अम्बा ने भीष्म को बताया कि वह अपना तन-मन राजा शाल्व को अर्पित कर चुकी है। इस बात को सुन कर भीष्म ने उसे राजा शाल्व के पास भिजवा दिया और अम्बिका और अम्बालिका का विवाह विचित्रवीर्य के साथ करवा दिया। विचित्रवीर्य अपनी दोनों रानियों के साथ भोग-विलास में रत हो गये किन्तु दोनों ही रानियों से उनकी कोई सन्तान नहीं हुई और वे क्षय रोग से पीड़ित हो कर मृत्यु को प्राप्त हो गये। अब कुल नाश होने के भय से माता सत्यवती ने एक दिन भीष्म से कहा, “पुत्र! इस वंश को नष्ट होने से बचाने के लिये मेरी आज्ञा है कि तुम इन दोनों रानियों से पुत्र उत्पन्न करो।” माता की बात सुन कर भीष्म ने कहा, “माता! मैं अपनी प्रतिज्ञा किसी भी स्थिति में भंग नहीं कर सकता।”
यह सुन कर माता सत्यवती को अत्यन्त दुःख हुआ। अचानक उन्हें अपने पुत्र वेदव्यास का स्मरण हो आया। स्मरण करते ही वेदव्यास वहाँ उपस्थित हो गये। सत्यवती उन्हें देख कर बोलीं, “हे पुत्र! तुम्हारे सभी भाई निःसन्तान ही स्वर्गवासी हो गये। अतः मेरे वंश को नाश होने से बचाने के लिये मैं तुम्हें आज्ञा देती हूँ कि तुम उनकी पत्नियों से सन्तान उत्पन्न करो।” वेदव्यास उनकी आज्ञा मान कर बोले, “माता! आप उन दोनों रानियों से कह दीजिये कि वे एक वर्ष तक नियम-व्रत का पालन करते रहें तभी उनको गर्भ धारण होगा।” एक वर्ष व्यतीत हो जाने पर वेदव्यास सबसे पहले बड़ी रानी अम्बिका के पास गये। अम्बिका ने उनके तेज से डर कर अपने नेत्र बन्द कर लिये। वेदव्यास लौट कर माता से बोले, “माता अम्बिका का बड़ा तेजस्वी पुत्र होगा किन्तु नेत्र बन्द करने के दोष के कारण वह अंधा होगा।” सत्यवती को यह सुन कर अत्यन्त दुःख हुआ और उन्हों ने वेदव्यास को छोटी रानी अम्बालिका के पास भेजा। अम्बालिका वेदव्यास को देख कर भय से पीली पड़ गई। उसके कक्ष से लौटने पर वेदव्यास ने सत्यवती से कहा, “माता! अम्बालिका के गर्भ से पाण्डु रोग से ग्रसित पुत्र होगा।” इससे माता सत्यवती को और भी दुःख हुआ और उन्होंने बड़ी रानी अम्बालिका को पुनः वेदव्यास के पास जाने का आदेश दिया। इस बार बड़ी रानी ने स्वयं न जा कर अपनी दासी को वेदव्यास के पास भेज दिया। दासी ने आनन्दपूर्वक वेदव्यास से भोग कराया। इस बार वेदव्यास ने माता सत्यवती के पास आ कर कहा, “माते! इस दासी के गर्भ से वेद-वेदान्त में पारंगत अत्यन्त नीतिवान पुत्र उत्पन्न होगा।” इतना कह कर वेदव्यास तपस्या करने चले गये।

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   / @poojanavi511  


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