नमस्कार मेरे प्रिय दर्शकों। आज मैं आपको एक ऐसी कथा सुनाने जा रहा हूँ जो न सिर्फ आपके मन को छू लेगी, बल्कि आपकी आत्मा को झकझोर देगी। यह केवल एक कहानी नहीं है, यह विश्वास, धैर्य, और आस्था की शक्ति का जीवंत प्रमाण है। यह उस क्षण की बात है जब भगवान ने परीक्षा ली — और मनुष्य की आस्था ने चमत्कार कर दिखाया।
हम सब जीवन में किसी न किसी मोड़ पर ऐसे दौर से गुजरते हैं जहाँ हमें लगता है कि भगवान हमारी सुन नहीं रहे। हम दुःख, संकट और अपमान में डूब जाते हैं, और सवाल करने लगते हैं — “हे भगवान, मैं ही क्यों?” लेकिन यह कहानी बताती है कि जब हम पूरी निष्ठा और विश्वास से अपने ईश्वर को पुकारते हैं, तो वह अवश्य प्रकट होते हैं — और तब होता है चमत्कार।
कहानी शुरू होती है एक छोटे से गाँव में रहने वाली एक साधारण सी महिला – सुभद्रा। गरीब घर, टूटा हुआ छप्पर, दिनभर मजदूरी और रात को भगवान की भक्ति। सुभद्रा की एक ही संतान थी – उसका बेटा मोहन। वह बेटा ही उसकी दुनिया था। उसके पास संपत्ति नहीं थी, लेकिन दिल में अपार श्रद्धा थी श्रीकृष्ण के लिए।
हर दिन सुबह उठकर वह तुलसी को जल चढ़ाती, आरती करती और कहती – “हे कृष्ण, तू मेरे जीवन का दीपक है। जैसे अंधेरे में दीपक जलता है, वैसे ही तू मेरे दुःखों में मेरा सहारा है।” उसका यह व्रत और पूजा वर्षों से चल रहा था।
लेकिन एक दिन परीक्षा आ गई।
उसका बेटा मोहन अचानक बीमार हो गया। डॉक्टर ने कहा – हालत बहुत खराब है, इसे शहर ले जाना पड़ेगा। लेकिन सुभद्रा के पास तो खाने तक के पैसे नहीं थे। वह रोई, गिड़गिड़ाई, लोगों से मदद माँगी, लेकिन कोई साथ नहीं आया।
उस रात वह भगवान कृष्ण की मूर्ति के सामने बैठ गई और बोली – “हे कृष्ण! मैंने तुझसे कभी कुछ नहीं माँगा, लेकिन आज माँग रही हूँ – मेरे बेटे को जीवनदान दे दे। मैं तुझसे क्रोध नहीं कर रही, बस विनती कर रही हूँ, अगर मेरी भक्ति में सच्चाई है, तो तू मेरी पुकार सुन।”
उसने पूरे गाँव के मंदिर में 7 दिन का निर्जला व्रत रखने का संकल्प लिया।
लोग हँसने लगे – “अरे ये क्या पागलपन है? अब भगवान आकर इलाज करेंगे?”
पर वह डटी रही।
7वें दिन जब वह बेहोश हो गई और गाँववाले उसे उठाने दौड़े, तभी एक अजनबी गाँव में आया। सफेद कपड़े, गले में माला, और हाथ में आयुर्वेद की पोटली।
उसने सुभद्रा के बेटे को देखा, नब्ज पकड़ी और कुछ औषधियाँ दीं। बोला – “घबराओ नहीं, यह ठीक हो जाएगा।”
लोगों ने पूछा – “आप कौन हैं?”
वह मुस्कराया और कहा – “जहाँ आस्था होती है, वहाँ कोई न कोई सहारा भेजा ही जाता है।”
अगले ही दिन सुभद्रा का बेटा उठ बैठा।
लोग चौंक गए। जिसने उम्मीद छोड़ी थी, उसी ने चमत्कार देखा।
पर वह साधु दोबारा कभी गाँव में नहीं दिखा। कुछ कहते हैं वह साधारण वैद्य था, कुछ कहते हैं वह स्वयं श्रीकृष्ण थे।
अब सोचिए — क्या यह चमत्कार नहीं था?
यह कहानी हमें सिखाती है कि जब परिस्थितियाँ विपरीत हों, जब दुनिया साथ छोड़ दे, तब भी अगर हमारी आस्था अडिग हो, तो चमत्कार अवश्य होते हैं।
आस्था का अर्थ केवल पूजा करना नहीं है, आस्था का अर्थ है — जब सब दरवाजे बंद हो जाएँ, तब भी एक आशा के साथ अपने ईश्वर को पुकारना।
यह वही आस्था है जिसने मीरा को विष पीने के बाद भी जीवित रखा। यही आस्था थी जिसने प्रह्लाद को अग्नि से सुरक्षित निकाला। और यही आस्था आज भी हर उस दिल में चमत्कार करती है, जो टूटने के बाद भी भगवान का नाम लेता है।
अब मैं आपको दूसरी कथा सुनाता हूँ – एक व्यापारी की।
यह व्यक्ति धनवान था, पर बहुत अहंकारी। उसे लगता था कि वह अपने कर्मों से सबकुछ हासिल कर सकता है, उसे किसी भगवान की आवश्यकता नहीं।
एक बार उसका व्यापार डूब गया। करोड़ों का घाटा। सारे दोस्त, रिश्तेदार, कर्मचारी – सबने साथ छोड़ दिया।
एक दिन वह रेल की पटरी पर बैठा आत्महत्या करने।
तभी एक वृद्ध व्यक्ति वहाँ पहुँचा और कहा – “बेटा, मृत्यु कभी समाधान नहीं होती। जिसने तुझे सबकुछ दिया, उसे आज तू दोष दे रहा है? ये परीक्षा है – विश्वास रख।”
व्यापारी को समझ नहीं आया, पर वह वृद्ध के शब्दों में शांति थी। वह वापस आया और पहली बार अपने जीवन में मंदिर गया।
उस दिन के बाद सब कुछ बदल गया। धीरे-धीरे उसकी हालत सुधरने लगी। नए अवसर मिले, पुराने कर्ज माफ हुए।
वह वृद्ध फिर कभी नहीं मिला। कुछ कहते हैं – वह स्वयं भगवान थे।
यह सब काल्पनिक नहीं है। ये कहानियाँ हमें ये दिखाने आई हैं कि भगवान जब परीक्षा लेते हैं, तब वे हमारी आस्था को आँकते हैं। अगर हम डगमगा गए, तो गिर जाते हैं। लेकिन अगर हम डटे रहे – तो वही परीक्षा एक चमत्कार बन जाती है।
आपके जीवन में भी ऐसी कोई स्थिति ज़रूर आई होगी।
शायद कोई बीमारी, कोई अपमान, कोई असफलता – जिसने आपको तोड़ दिया।
पर आज मैं आपसे कहता हूँ – उठिए। यह मत सोचिए कि आप अकेले हैं। आप अकेले नहीं हैं। आपका विश्वास, आपकी श्रद्धा – आपके सबसे बड़े साथी हैं।
भगवान हमें कभी भी हमारी सहनशक्ति से अधिक दुःख नहीं देते। जो लोग कह देते हैं कि “अब और नहीं सहा जाता” – वह भूल जाते हैं कि भगवान ने हमें केवल आज की नहीं, भविष्य की भी शक्ति दी है।
आस्था केवल पूजा करने से नहीं आती – वह आती है अनुभव से।
और अनुभव तब आता है जब हम जीवन की कठिनाइयों को आँखों में आँखें डालकर देखते हैं और फिर भी कहते हैं – “मेरा ईश्वर मेरे साथ है।”
अब अंत में, मैं आपको एक छोटी बात कहना चाहता हूँ —
जब भी जीवन कठिन हो जाए, जब कोई रास्ता न बचे, जब आँखों में आँसू हों और दिल में घाव – तब बस एक बार गहरी साँस लेकर कहिए –
"हे प्रभु, मैं जानता हूँ, यह सब तुम्हारी योजना का हिस्सा है। मुझे तू परीक्षा में डाल सकता है, पर मेरी आस्था तुझसे कभी दूर नहीं होगी।"
और यकीन मानिए — वहीं से चमत्कार शुरू होते हैं।
धन्यवाद।
जय श्रीकृष्ण।
जय महादेव।
जय माता दी।
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