Hiranyagarbha Sukta with Hindi Translation & Commentary | हिरण्यगर्भ सूक्त अनुवाद एवं टीका

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हिरण्यगर्भ सूक्त ऋग्वेद के १०वें मंडल का १२१वां सूक्त है। यह सूक्त इस ब्रह्मांड की उत्पत्ति और इसमें अंतर्निहित एकता के विषय पर चर्चा करता है। यह ऋग्वेद के सबसे चर्चित सूक्तों में से एक है क्योंकि यह भारतीय संस्कृति में सभी विचाधाराओं के सम्मान और समावेशन को समझाता। इस सूक्त में बार बार कहा गया है की हम जिस भी देवता की पूजा करता हैं उस पूजा से हम उस एक परम देवता की पूजा करते हैं। इस वीडियो में हमने हिरण्यगर्भ सूक्त का विस्तृत अध्ययन किया है। इसे सूक्त में संसार में बढ़ रहे सांप्रदायिक तनाव का समाधान हैं, आशा यही है की अधिकाधिक लोग इन विचारों को समझेंगे ताकि संसार में शांति स्थापित हो।

Hiranyagarbha sukta is the 121st sukta of the 10th mandala of Rigveda. This sukta talks about the origin of this universe and the underlying unity in it. It is one of the most talked about hymns of the Rigveda as it propagates respect and inclusion of all schools of thought in Indian culture. It is said repeatedly in this hymn that whatever deity we worship, we worship that one supreme deity. In this video we have done detailed study of Hiranyagarbha Sukta. This sukta provides the solution to the increasing communal tension in the world, the hope is that more and more people will understand these ideas, so that peace is established in the world.

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