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Скачать или смотреть दुर्गा व्रत कथा | Maa Durga Navratri Vrat Katha

  • Brijnaari Sumi
  • 2016-09-27
  • 245309
दुर्गा व्रत कथा | Maa Durga Navratri Vrat Katha
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Описание к видео दुर्गा व्रत कथा | Maa Durga Navratri Vrat Katha

Navratri Vrat Katha | मां दुर्गा की पवित्र पौराणिक कथा |
कथा प्रारम्भ


बृहस्पति जी बोले- हे ब्राह्मण। आप अत्यन्त बुद्धिमान, सर्वशास्त्र और चारों वेदों को जानने वालों में श्रेष्ठ हो। हे प्रभु! कृपा कर मेरा वचन सुनो। चैत्र, आश्विन और आषाढ़ मास के शुक्लपक्ष में नवरात्र का व्रत और उत्सव क्यों किया जाता है? हे भगवान! इस व्रत का फल क्या है? किस प्रकार करना उचित है? और पहले इस व्रत को किसने किया? सो विस्तार से कहो?


बृहस्पति जी का ऐसा प्रश्न सुनकर ब्रह्मा जी कहने लगे कि हे बृहस्पते! प्राणियों का हित करने की इच्छा से तुमने बहुत ही अच्छा प्रश्न किया। जो मनुष्य मनोरथ पूर्ण करने वाली दुर्गा, महादेवी, सूर्य और नारायण का ध्यान करते हैं, वे मनुष्य धन्य हैं, यह नवरात्र व्रत सम्पूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाला है। इसके करने से पुत्र चाहने वाले को पुत्र, धन चाहने वाले को धन, विद्या चाहने वाले को विद्या और सुख चाहने वाले को सुख मिल सकता है। इस व्रत को करने से रोगी मनुष्य का रोग दूर हो जाता है और कारागार हुआ मनुष्य बन्धन से छूट जाता है। मनुष्य की तमाम आपत्तियां दूर हो जाती हैं और उसके घर में सम्पूर्ण सम्पत्तियां आकर उपस्थित हो जाती हैं। बन्ध्या और काक बन्ध्या को इस व्रत के करने से पुत्र उत्पन्न होता है। समस्त पापों को दूूर करने वाले इस व्रत के करने से ऐसा कौन सा मनोबल है जो सिद्ध नहीं हो सकता। जो मनुष्य अलभ्य मनुष्य देह को पाकर भी नवरात्र का व्रत नहीं करता वह माता-पिता से हीन हो जाता है अर्थात् उसके माता-पिता मर जाते हैं और अनेक दुखों को भोगता है। उसके शरीर में कुष्ठ हो जाता है और अंग से हीन हो जाता है उसके सन्तानोत्पत्ति नहीं होती है। इस प्रकार वह मूर्ख अनेक दुख भोगता है। इस व्रत को न करने वला निर्दयी मनुष्य धन और धान्य से रहित हो, भूख और प्यास के मारे पृथ्वी पर घूमता है और गूंगा हो जाता है। जो विधवा स्त्री भूल से इस व्रत को नहीं करतीं वह पति हीन होकर नाना प्रकार के दुखों को भोगती हैं। यदि व्रत करने वाला मनुष्य सारे दिन का उपवास न कर सके तो एक समय भोजन करे और उस दिन बान्धवों सहित नवरात्र व्रत की कथा करे।


हे बृहस्पते! जिसने पहले इस व्रत को किया है उसका पवित्र इतिहास मैं तुम्हें सुनाता हूं। तुम सावधान होकर सुनो। इस प्रकार ब्रह्मा जी का वचन सुनकर बृहस्पति जी बोले- हे ब्राह्मण! मनुष्यों का कल्याण करने वाले इस व्रत के इतिहास को मेरे लिए कहो मैं सावधान होकर सुन रहा हूं। आपकी शरण में आए हुए मुझ पर कृपा करो।

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