श्रीमद भगवद गीता सार अध्याय 1 से 18 (सरल हिंदी) | Shrimad Bhagwad Geeta Saar Adhyay 1 to18 (HINDI)

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श्रीमद भगवद गीता सार अध्याय 1 से 18 (सरल हिंदी) (4Hrs 40Mins) | Shrimad Bhagavad Geeta Saar Adhyay 1 to 18(Hindi).

महाभारत युद्ध आरम्भ होने के ठीक पहले भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिया वह श्रीमद भगवद गीता के नाम से प्रसिद्ध है। यह महाभारत के भीष्मपर्व का अंग है। गीता में 18 अध्याय और 696 श्लोक हैं।

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Shrimad Bhagwad Geeta
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00:00 Animation
00:16 #1. Adhyay 001
11:31 #2. Adhyay 002
34:33 #3. Adhyay 003
52:12 #4. Adhyay 004
01:10:54 #5. Adhyay 005
01:20:38 #6. Adhyay 006
01:38:46 #7. Adhyay 007
01:51:48 #8. Adhyay 008
02:05:54 #9. Adhyay 009
02:20:47 #10. Adhyay 010
02:36:42 #11. Adhyay 010
02:57:34 #12. Adhyay 010
03:08:35 #13. Adhyay 010
03:26:10 #14. Adhyay 010
03:37:01 #15. Adhyay 010
03:50:33 #16. Adhyay 010
04:01:12 #17. Adhyay 010
04:14:45 #18. Adhyay 018
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0:0:16 - श्रीमद भगवद गीता सार अध्याय 1 ( 0:0:16 )
Shrimad Bhagawad Geeta Saar Adhyay 1
प्रथम अध्याय का नाम अर्जुनविषादयोग है।

0:11:31 - श्रीमद भगवद गीता सार अध्याय 2 ( 0:11:31 )
Shrimad Bhagwad Geeta Saar Adhyay 2
दूसरे अध्याय का नाम सांख्ययोग है।

0:34:33 - श्रीमद भगवद गीता सार अध्याय 3 ( 0:34:33 )
Shrimad Bhagwad Geeta Saar Adhyay 3
इस प्रकार सांख्य की व्याख्या का उत्तर सुनकर कर्मयोग नामक तीसरे अध्याय में अर्जुन ने इस विषय में और गहरा उतरने के लिए स्पष्ट प्रश्न किया कि सांख्य

0:52:12 - श्रीमद भगवद गीता सार अध्याय 4 ( 0:52:12 )
Shrimad Bhagwad Geeta Saar Adhyay 4
चौथे अध्याय में, जिसका नाम ज्ञान-कर्म-संन्यास-योग है, यह बाताया गया है कि ज्ञान प्राप्त करके कर्म करते हुए भी कर्मसंन्यास का फल किस उपाय से प्राप्त किया जा सकता है।

1:10:54 - श्रीमद भगवद गीता सार अध्याय 5 ( 1:10:54 )
Shrimad Bhagwad Geeta Saar Adhyay 5
पाँचवे अध्याय कर्मसंन्यास योग नामक में फिर वे ही युक्तियाँ और दृढ़ रूप में कहीं गई हैं।

1:20:38 - श्रीमद भगवद गीता सार अध्याय 6 ( 1:20:38 )
Shrimad Bhagwad Geeta Saar Adhyay 6
छठा अध्याय आत्मसंयम योग है जिसका विषय नाम से ही प्रकट है। जितने विषय हैं उन सबसे इंद्रियों का संयम-यही कर्म और ज्ञान का निचोड़ है। सुख में और दुख में मन की समान स्थिति, इसे ही योग कहते हैं।

1:38:46 - श्रीमद भगवद गीता सार अध्याय 7 ( 1:38:46 )
Shrimad Bhagwad Geeta Saar Adhyay 7
संज्ञा ज्ञानविज्ञान योग है। ये प्राचीन भारतीय दर्शन की दो परिभाषाएँ हैं। उनमें भी विज्ञान शब्द वैदिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण था।

1:51:48 - श्रीमद भगवद गीता सार अध्याय 8 ( 1:51:48 )
Shrimad Bhagawad Geeta Saar Adhyay 8
संज्ञा अक्षर ब्रह्मयोग है। उपनिषदों में अक्षर विद्या का विस्तार हुआ। गीता में उस अक्षरविद्या का सार कह दिया गया है-अक्षर ब्रह्म परमं, अर्थात् परब्रह्म की संज्ञा अक्षर है।

2:05:54 - श्रीमद भगवद गीता सार अध्याय 9 ( 2:05:54 )
Shrimad Bhagwad Geeta Saar Adhyay 9
राजगुह्ययोग कहा गया है, अर्थात् यह अध्यात्म विद्या विद्याराज्ञी है और यह गुह्य ज्ञान सबमें श्रेष्ठ है।

2:20:47 - श्रीमद भगवद गीता सार अध्याय 10 ( 2:20:47 )
Shrimad Bhagawad Geeta Saar Adhyay 10

2:36:42 - श्रीमद भगवद गीता सार अध्याय 11 ( 2:36:42 )
Shrimad Bhagwad Geeta Saar Adhyay 11
नाम विश्वरूपदर्शन योग है। इसमें अर्जुन ने भगवान का विश्वरूप देखा।

2:57:34 - श्रीमद भगवद गीता सार अध्याय 12 ( 2:57:34 )
Shrimad Bhagwad Geeta Saar Adhyay 12

3:08:35 - श्रीमद भगवद गीता सार अध्याय 13 ( 3:08:35 )
Shrimad Bhagwad Geeta Saar Adhyay 13
में एक सीधा विषय क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ का विचार है। यह शरीर क्षेत्र है, उसका जाननेवाला जीवात्मा क्षेत्रज्ञ है।

3:26:10 - श्रीमद भगवद गीता सार अध्याय 14 ( 3:26:10 )
Shrimad Bhagwad Geeta Saar Adhyay 14
का नाम गुणत्रय विभाग योग है। यह विषय समस्त वैदिक, दार्शनिक और पौराणिक तत्वचिंतन का निचोड़ है-सत्व, रज, तम नामक तीन गुण-त्रिको की अनेक व्याख्याएँ हैं।

3:37:01 - सश्रीमद भगवद गीता सार अध्याय 15 ( 3:37:01 )
Shrimad Bhagwad Geeta Saar Adhyay 15
का नाम पुरुषोत्तमयोग है। इसमें विश्व का अश्वत्थ के रूप में वर्णन किया गया है। यह अश्वत्थ रूपी संसार महान विस्तारवाला है।

3:50:33 - श्रीमद भगवद गीता सार अध्याय 16 ( 3:50:33 )
Shrimad Bhagwad Geeta Saar Adhyay 16
में देवासुर संपत्ति का विभाग बताया गया है। आरंभ से ही ऋग्देव में सृष्टि की कल्पना दैवी और आसुरी शक्तियों के रूप में की गई है।

4:01:12 - श्रीमद भगवद गीता सार अध्याय 17 ( 4:01:12 )
Shrimad Bhagwad Geeta Saar Adhyay 17
की संज्ञा श्रद्धात्रय विभाग योग है। इसका संबंध सत, रज और तम, इन तीन गुणों से ही है, अर्थात् जिसमें जिस गुण का प्रादुर्भाव होता है, उसकी श्रद्धा या जीवन की निष्ठा वैसी ही बन जाती है।

4:14:45 - श्रीमद भगवद गीता सार अध्याय 18 ( 4:14:45 )
Shrimad Bhagwad Geeta Saar Adhyay 18
की संज्ञा मोक्षसंन्यास योग है। इसमें गीता के समस्त उपदेशों का सार एवं उपसंहार है। यहाँ पुन: बलपूर्वक मानव जीवन के लिए तीन गुणों का महत्व कहा गया है।

गीता की गणना प्रस्थानत्रयी में की जाती है, जिसमें उपनिषद् और ब्रह्मसूत्र भी सम्मिलित हैं। अतएव भारतीय परम्परा के अनुसार गीता का स्थान वही है जो उपनिषद् और धर्मसूत्रों का है। उपनिषदों को गौ (गाय) और गीता को उसका दुग्ध कहा गया है। इसका तात्पर्य यह है कि उपनिषदों की जो अध्यात्म विद्या थी, उसको गीता सर्वांश में स्वीकार करती है। उपनिषदों की अनेक विद्याएँ गीता में हैं।

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