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Скачать или смотреть बुरा कर्म का बुरा फल हि मिलेगा ये सत्ते हे।

  • Bhakti Vibes
  • 2025-10-08
  • 3064
बुरा कर्म का बुरा फल हि मिलेगा ये सत्ते हे।
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Описание к видео बुरा कर्म का बुरा फल हि मिलेगा ये सत्ते हे।

हिन्दू शास्त्रों के अनुसार यह सिद्धांत पूर्ण रूप से सच माना जाता है। इसे कर्म सिद्धांत या कर्म का नियम कहा जाता है। यह हिन्दू धर्म का एक मूलभूत और केंद्रीय सिद्धांत है।

आइए इसे विस्तार से समझते हैं:

1. कर्म सिद्धांत का मूल अर्थ

"कर्म" का शाब्दिक अर्थ है "क्रिया" या "काम"। कर्म सिद्धांत कहता है कि हर क्रिया का एक समान प्रतिफल (फल) अवश्य होता है। जैसी क्रिया, वैसी प्रतिक्रिया।

· अच्छा कर्म (पुण्य): अच्छे, दयापूर्ण, और धर्म के अनुसार किए गए कर्मों का फल सुख, समृद्धि और अच्छी परिस्थितियों के रूप में मिलता है।
· बुरा कर्म (पाप): बुरे, हिंसक, और अधर्म के अनुसार किए गए कर्मों का फल दुःख, कष्ट और बुरी परिस्थितियों के रूप में मिलता है।

2. शास्त्रों में प्रमाण

हिन्दू शास्त्रों में इस सिद्धांत को बार-बार दोहराया और समझाया गया है:

· भगवद्गीता (8.15): भगवान कृष्ण अर्जुन से कहते हैं:
"मामुपेत्य पुनर्जन्म दु:खालयमशाश्वतम्। नाप्नुवन्ति महात्मान: संसिद्धिं परमां गता:॥"
· अर्थ: मुझे प्राप्त करके, महात्मा लोग इस दुखों के घर (संसार) में पुनर्जन्म को प्राप्त नहीं होते, जो अनित्य है, वे परम सिद्धि को प्राप्त हो जाते हैं। यहाँ अंततः कर्मफल से मुक्ति का उपाय बताया गया है।
· भगवद्गीता (4.17):
"कर्मणो ह्यपि बोद्धव्यं बोद्धव्यं च विकर्मण:। अकर्मणश्च बोद्धव्यं गहना कर्मणो गति:॥"
· अर्थ: कर्म की गति बहुत गहन (जटिल) है। इसलिए मनुष्य को कर्म क्या है, विकर्म (निषिद्ध कर्म) क्या है और अकर्म (कर्म न करने का फल) क्या है, इसे अच्छी तरह समझ लेना चाहिए।
· मनुस्मृति:
"यथैधांसि समिद्धोऽग्निर्भस्मसात्कुरुतेऽर्जुन। ज्ञानाग्निः सर्वकर्माणि भस्मसात्कुरुते तथा।"
· अर्थ: जैसे प्रज्वलित अग्नि लकड़ी को जलाकर राख कर देती है, वैसे ही ज्ञानरूपी अग्नि सभी कर्मों को भस्म कर देती है।

3. बुरे कर्म का फल कब और कैसे मिलता है?

यहाँ एक महत्वपूर्ण बात समझनी चाहिए: कर्म का फल मिलने में समय लग सकता है और यह जरूरी नहीं कि वह इसी जन्म में मिले।

· त्रिविध कर्म:
1. संचित कर्म: पिछले सभी जन्मों के कर्मों का भंडार।
2. प्रारब्ध कर्म: संचित कर्म का वह भाग जो इस जन्म में भोगने के लिए निश्चित हो चुका है। हमारा वर्तमान जीवन इसी का फल है।
3. क्रियमाण कर्म: इस जन्म में हम जो नए कर्म कर रहे हैं, वे भविष्य के लिए संचित हो रहे हैं।
· कर्मफल का समय: कोई बुरा कर्म तुरंत फल दे सकता है, कुछ वर्षों बाद, या अगले जन्मों में। इसीलिए कई बार हमें बुरे कर्म करने वाले व्यक्ति को सुखपूर्वक और अच्छे कर्म करने वाले को दुःख में देखकर भ्रम होता है। शास्त्र कहते हैं कि उसका प्रारब्ध (पिछले जन्म का अच्छा कर्म) अभी खत्म नहीं हुआ, और उसके नए बुरे कर्मों का फल भविष्य में मिलेगा।

4. क्या बुरे कर्म का फल टाला जा सकता है?

शास्त्रों के अनुसार, कर्म के फल को भोगे बिना टाला नहीं जा सकता। हालाँकि, कर्म के बंधन से मुक्ति का मार्ग है:

· कर्मफल का त्याग: भगवद्गीता में कर्म योग का सिद्धांत बताया गया है। इसमें कहा गया है कि मनुष्य को फल की इच्छा छोड़कर, अपना कर्तव्य (धर्म) निभाना चाहिए। जब हम फल की आसक्ति छोड़ देते हैं, तो कर्म हमें बांधते नहीं हैं।
· प्रायश्चित: बुरे कर्मों के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए प्रायश्चित (तपस्या, पश्चाताप, दान, सेवा) का विधान है। ईमानदारी से पश्चाताप और सुधार से कर्म का बोझ हल्का हो सकता है।
· भगवद् कृपा: ऐसा माना जाता है कि ईश्वर की असीम कृपा और शरणागति से भी कर्म के बंधनों से मुक्ति संभव है।

निष्कर्ष:

हिन्दू शास्त्रों के दृष्टिकोण से, "बुरा कर्म का बुरा फल मिलना" पूर्णतया सच है। यह एक cosmic law (विश्वव्यापी नियम) है, जो उसी निश्चितता के साथ काम करता है जैसे भौतिकी का गुरुत्वाकर्षण का नियम। यह सिद्धांत व्यक्ति को अपने कर्मों के लिए जिम्मेदार बनाता है, नैतिक जीवन जीने की प्रेरणा देता है और दुनिया में हो रहे अन्याय के प्रतीत होने वाले मामलों का एक तार्किक स्पष्टीकरण प्रदान करता है। अंतिम लक्ष्य इस कर्म के चक्र (संसार) से मुक्ति पाना हे।
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