• इतिहास से जैन समाज को प्रेरणा लेनी होगी.
• हमारी जनसंख्या का निरंतर घटना सबसे बड़ी चिंता का विषय है. याद रखो, बड़ी मछली छोटी मछली को निगल जाती है !
• संगठित हुए बिना कोई भी समाज सुरक्षित नहीं रह सकता.
• इतनी विकट परिस्थितियों के बीच भी हमारी सोच नहीं बदल रही, यह अत्यंत दुःखद है.
• दक्षिण भारत के इतिहास में 7 वीं शताब्दी जैनधर्म के विनाश की शताब्दी थी.
• आज से करीब 1300 वर्ष पहले वहां जैनधर्म और समाज को समाप्त करने, उनके स्थापत्यों को हड़पने या तोड़ने तथा जबरन धर्मपरिवर्तन करवाने के अनेक दुःखदायी घटनाक्रम हैं.
• हर जैन को इतिहास के उस रक्तरंजित काले अध्याय से सीख लेने की आवश्यकता है.
• तमिल भाषा और तमिल संस्कृति पर जैनधर्म व जैन साधुओं का गहरा प्रभाव था. जैन साधुओं के योगदान को याद किये बिना प्राचीन तमिल भाषा और साहित्य का इतिहास अधूरा है.
• अब वक्त का तकाज़ा है कि जैन जागृत बनें और परस्पर मिलझुल कर आगे बढ़ें. अपने अस्तित्व की रक्षा का यह पहला उपाय है.
– आचार्य श्री विमलसागरसूरीश्वरजी महाराज साहब
(Nayi Soch, Sahi Disha की प्रस्तुति)
9967762222.
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It is a generous campaign dedicated to Lord Mahavireer's principle in the name of Revolutionary, Versatile & Vigorous Preacher Aacharya Shree Vimalsagarsuriji.
It is Purely Sacred, Perceptional & Intellectual effort to bring one’s attention on life values in the form of Religious Integrity, Social Intimacy, National Pride, Human Values, Spiritual Supremacy,
Non Violence, Good Faith, Vegetarianism, Indian Culture, Karma Theory & much more.
It Emphasizes on Awakening the Youth, Prospering Women Welfare, Promoting Communal Harmony, Maintaining Cultural Pride & Enhancing Jain Ideology.
क्रांतिकारी-ओजस्वी प्रवचनकार आचार्य श्री विमलसागरसूरिजी महाराज के प्रवचन और विविध आयोजन भगवान महावीरस्वामी के सिद्धांतों को समर्पित सर्व हितकारी अभियान हैं.
यह जैनधर्म, अध्यात्म, समाज, संस्कृति, राष्ट्रीयता, अहिंसा, नैतिकता, सुसंस्कार, शाकाहार, सद्भावना, आहार विज्ञान, कर्मवाद और मानवता की सेवा का पावन पुरुषार्थ है.
सकारात्मक सोच, युवा जागरण, कन्या उत्कर्ष, साम्प्रदायिक सद्भाव और सांस्कृतिक गौरव इसके सार्थक माईल स्टोन हैं.
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