गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह के सेनापति मलिक तुघान से छीन लिया था, पुर्तगालियों ने ये वसई का किला।

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Vasai Fort गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह के सेनापति मलिक तुघान से छीन लिया था, पुर्तगालियों ने ये वसई का किला।@Gyanvikvlogs

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वसई किला गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह के सेनापति मलिक तुघान ने 1533 में बनवाया था। एक ही वर्ष बाद पुर्तगालियों ने इसे सुल्तान की फौजों से छीन लिया। गोवा के बाद वसई को अपनी दूसरी राजधानी बनाकर, आस-पास के द्वीपों में अपनी ताकत मजबूत करते हुए उन्होंने छोटे-छोटे किले बनाए। दो सदियों तक चले उनके शासनकाल के बाद 18वीं सदी में सेनापति चिमाजी अप्पा के नेतृत्व में मराठों ने इस पर हमला किया और 3 वर्ष तक घेरे रहने के बाद 1739 में पुर्तगालियों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया। 1802 की लड़ाई में अंग्रेजों ने इसे मराठों से छीन लिया। नैसर्गिक बंदरगाह का भरपूर उपयोग करते हुए उन्होंने वसई को एक व्यावसायिक शहर में तबदील कर दिया। 110 एकड़ में फैले इस किले की विशालता का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि यहां खेती भी हुआ करती थी। वसई किला 1557 में जन्मे भारत के पहले सेंट गोंसालो गार्सिया की जन्मभूमि के रूप में प्रसिद्ध है। यह किला चर्च ऑफ सेंट पॉल और चर्च ऑफ डॉमिनिकंस सहित सात चर्चों के लिए मशहूर है, जिनमें कुछ खंडहर या पूरी तरह ध्वस्त हो चुके हैं।
स्वतंत्रता सेनानी छिपे थे यहां: वसई के पास ही विरार का अर्नाला किला हर ओर समुद्र से घिरा होने के कारण 'जल दुर्ग' या 'अर्नाला जंजीरा' के नाम से प्रसिद्ध है। गुजरात के मुस्लिम शासकों से छीने इस किले का उपयोग पुर्तगाली पश्चिमी तट पर होने वाले नौवहन पर नजर रखने के लिए करते थे। वसई के पुर्तगाली कप्तान ने कालांतर में इसे अभिजात कुल के एक पुर्तगाली सज्जन को भेंट कर दिया, जिसने पुराने किले का नामो-निशान मिटाकर यहां नए सिरे से 700 गुणे 700 फुट का किला बनवाना शुरू तो किया, पर पूरा नहीं कर पाया। विरार में ही सकवार गांव के पास दो हजार फुट ऊंचे टकमक किला के शीर्ष पर पहुंचने में आपको 3 घंटे पसीने बहाने पड़ेंगे। कुछ समय पहले किले वसई मोहिम के वॉलंटियर्स ने यहां की सफाई करते हुए 1860 के ब्रिटिश काल के तोप के कुछ गोले बरामद किए। 1857 के विफल स्वतंत्रता संग्राम के बाद यहां स्वतंत्रता सेनानी यहीं छिपे थे और ये गोले अंग्रेजों ने यहां पानी के तालाब नष्ट करने के‌ लिए दागे थे। विरार में ही एक अन्य किला भी होता था, जो अब जीवदानी मंदिर के निर्माण की भेंट चढ़ गया है।

किला, जेल और अब बाग: भाईंदर के बंदरगाह के पास, गोराई के उत्तर में डोंगरी किला, जिसे डोंगरी पहाड़ी का किला या स्थानीय इर्मित्रि किला या धारावी किला के नाम से पुकारते हैं। 1739 में यह मराठा शासन के अधीन आया। 1774 में अंग्रेजों के हाथों सहित मरम्मत के दौर से गुजरने के बावजूद आज यह बहुत जीर्ण हालत में है। इसे एक सार्वज‌निक उद्यान की शक्ल देने की आधी-अधूरी कोशिश की गई है। एक जमाने में इसका जेल के रूप में इस्तेमाल भी किया जा चुका है।

कोई नहीं आता अब यहां: मालाड का मढ किला-जिसे वर्सोवा किला भी कहते हैं-17वीं शताब्दी का पुर्तगालियों द्वारा किया निर्माण है। किसी जमाने में अपने रणनीतिक महत्व से यह मुंबई के शानदार किलों में रहा होगा, जहां बने वॉच टावर से किले पर काबिज फौजें समुद्र पर निगरानी करती थीं। पुरानी तोपों के अवशेष आज भी यहां मौजूद हैं।


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