Om Namoh Narayan
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नवरात्रि पर्व के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा का विधान है। कहा जाता है कि माता शैलपुत्री ने पर्वत राज हिमालय के घर जन्म लिया था। मां शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल है। देवी मां के माथे पर चंद्रमा सुशोभित है। ज्योतिष अनुसार माँ शैलपुत्री की उपासना से चंद्रमा के द्वारा पड़ने वाले बुरे प्रभावों से मुक्ति मिल जाती हैं। मां के इस स्वरूप की सवारी नंदी बैल है। मां के इस रूप को करुणा और स्नेह का प्रतीक माना गया है। जानिए मां शैलपुत्री की संपूर्ण पूजा विधि…
पूजा विधि: मां शैलपुत्री को सफेद रंग की वस्तुकएं काफी प्रिय हैं, इसलिए नवरात्रि के पहले दिन मां को सफेद वस्त्रं और सफेद फूल चढ़ाने चाहिए। साथ ही सफेद रंग की मिठाई का भोग भी मां को बेहद ही पसंद आता है। मां शैलपुत्री की पूजा से भक्तों को मनोवांछित फल और कन्याोओं को उत्तम वर की प्राप्ति होती है। शैल का अर्थ होता है पत्थकर और पत्थनर को दृढ़ता का प्रतीक माना जाता है। इसीलिए मां के इस स्वपरूप की उपासना से जीवन में स्थिरता और दृढ़ता आती है।
माता शैलपुत्री की पवित्र कथा: पौराणिक कथाओं अनुसार एक बार राजा दक्ष के स्वागत के लिए सभी लोग अपने स्थान से खड़े हुए लेकिन भगवान शंकर अपने स्थान से नहीं उठे। राजा दक्ष को उनकी पुत्री सती के पति की यह बात अच्छी नहीं लगी और उन्होंने इसे अपमान स्वरूप ले लिया। इसके कुछ समय बाद दक्ष ने अपने निवास पर एक बड़े यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने सभी देवी-देवताओं को बुलाया, लेकिन अपने अपमान का बदला लेने के कारण शिव जी नहीं बुलायासती ने भगवान शिव से अपने पिता द्वारा आयोजित यज्ञ में जाने की इच्छा जताई। सती के आग्रह पर भगवान शंकर ने उन्हें जाने की अनुमति दे दी। जब सती यज्ञ में पहुंचीं, तो उनकी मां के अलावा किसी ने उन पर ध्यान नहीं दिया। सती के पिता दक्ष ने यज्ञ में सबके सामने भगवान शंकर के लिए अपमानजनक शब्द कहे। अपने पति के बारे में भला-बुरा सुनने से हताश हुईं मां सती ने यज्ञ वेदी मे कूदकर अपने प्राण त्याग दिए। इसके बाद सती ने अगला जन्म शैलराज हिमालय के घर में पुत्री के रूप में लिया और वे शैलपुत्री कहलाईं।
मां शैलपुत्री की अराधना के मंत्र:
-ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः॥
स्तुति: या देवी सर्वभूतेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
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