कबीर कहते हैं —
सत्य बाहर नहीं, भीतर जलता है।
परम्पराएँ हमें बाँधती हैं,
दया हमें मुक्त करती है।
यह गीत मांसाहार, जन्म-मोह, पूजा-अंधविश्वास —
सभी को प्रेम और करुणा के प्रकाश में देखने की पुकार है।
जो प्रेम में हत्या है — वह प्रेम नहीं।
जो धर्म में बंधन है — वह धर्म नहीं।
जो जीवन में समझ नहीं — वहीं से दुख शुरू होता है।
सत्य कोई पूजा नहीं — एक जागरण है।
अगर मन देख ले — तो दुनिया बदल जाती है।
यह वीडियो उन सब के लिए है जो परम्परा से नहीं,
सत्य से प्रेम करते हैं।
जो धर्म को सवाल करने की हिम्मत रखते हैं।
जो अहिंसा को प्रेम की अंतिम भाषा मानते हैं।
और जो जन्म, परिवार, समाज के चले-आ रहे भ्रम को
खुले मन से देखने की क्षमता रखते हैं।
यह जागरण का गीत है।
"कबीर की आग — प्रेम में अन्यों का रक्त नहीं"
"कबीर कहते हैं — दया ही असली धर्म है"
"कबीर का प्रेम: जहाँ हत्या का स्थान नहीं"
"कबीर: जन्म का मोह दुख का बीज है"
"कबीर की दीया — सत्य भीतर जलता है"
"कबीर कहते हैं — जो प्रेम देता है, नहीं बाँधता"
"कबीर का सत्य: परम्परा नहीं, आत्मा की पुकार"
"कबीर: प्रेम का अर्थ है — किसी को न काटना"
"कबीर की आँखों में — दुनिया का उदास सच"
"कबीर कहते हैं — उत्सव नहीं, समझ ज़रूरी है"
"कबीर: धर्म नहीं, दया को अपनाओ"
"कबीर: जिसे तुम धर्म कहते हो — वह आदत है"
"कबीर: प्रेम रोशनी है, वासना अंधकार"
"कबीर: जिसने जन्म दिया, उसने बंधन दिया"
"कबीर: प्रेम में रक्त की गंध नहीं होती"
"कबीर की रात — जहाँ मन अपने आप से मिलता है"
"कबीर: छोड़ने में ही मिलना है"
"कबीर का चुप — सबसे ऊँचा ज्ञान"
"कबीर की साँस में धुआँ और रोशनी साथ"
"कबीर कहते हैं — भगवान बाहर नहीं, भ्रम बाहर है"
"धर्म नहीं, स्पष्टता चाहिए"
"कबीर: मंदिरों में नहीं, मन की रोशनी में खोज"
"प्रार्थना नहीं — जागरण"
"कबीर कहते हैं — जो डर से ईश्वर खोजे, वह भक्त नहीं दास है"
"सत्य को मत पूजा करो — उसे देखो"
"कबीर: मूर्ति टूटी कि आस्था टूटी — तो आस्था थी ही कहाँ?"
"अंधविश्वास का नाम भक्ति नहीं"
"कबीर कहते हैं — सवाल ही सबसे बड़ी प्रार्थना है"
"ईश्वर नहीं मिलता — भ्रम मिटता है"
"दर्द से भागोगे तो धर्म बनाओगे, दर्द को देखोगे तो सत्य मिलेगा"
"कबीर: जो सोचता है ईश्वर बाहर है — वह अभी बच्चा है"
"तुमने भगवान नहीं बनाए — तुमने डर को नाम दिया"
"कबीर कहते हैं — धर्म वही जो तुम्हें स्वतंत्र करे"
"श्रद्धा नहीं, समझ — यही मुक्ति है"
"कबीर की चुप रात — जहाँ मन खुद से टकराता है"
"कबीर: रोशनी भीतर है, धुआँ हम खुद हैं"
"कबीर कहते हैं — प्रेम है स्वतंत्रता, स्वामित्व नहीं"
"जो देख ले — वही मुक्त"
"कबीर: भीतर की चिता बुझाओ, बाहर की नहीं"
संत कवीर की दृष्टि में प्रेम वह गहन आंतरिक तड़प है जो चेतना के मूल स्वरूप को जगाती है—सत्य की अनंत खोज, जहाँ अहंकार की सीमाएँ धुंधली हो जाती हैं और आत्मा का विस्तार अनंत में विलीन हो जाता है। यह प्रेम कोई क्षणिक आकर्षण या शारीरिक बंधन नहीं, बल्कि एक शाश्वत प्रवाह है जो सारी कामनाओं के पीछे छिपा होता है, बस हमें उसकी अस्पष्टता में उलझा रहने देता है। जब हम प्रेम में डूबते हैं, तो वहाँ न 'मैं' का दंभ रहता है, न किसी विशेष के प्रति सीमित लगाव; यह तो सत्य की तानाशाही है, जहाँ समन्वय या समझौते की कोई गुंजाइश नहीं बचती, केवल पूर्ण समर्पण का आनंद। परिवार, विवाह या सामाजिक रिश्तों में जो कुछ हम 'प्रेम' कहते हैं, वह अक्सर अध्यात्म की अनुपस्थिति में सूखा पत्ता मात्र है—प्रेम तो अध्यात्म का ही दूसरा नाम है, जो मोह की वृत्तियों को तोड़कर मुक्ति का द्वार खोलता है। इस प्रेम में न बढ़ना-घटना है, न आकर्षण का लालच; यह बस है, शुद्ध, निर्लिप्त, और जीवन को परिवर्तित करने वाली शक्ति के रूप में।
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कबीर का संदेश किसी धर्म का विरोध नहीं —
बल्कि अंधे अनुसरण का अंत है।
जहाँ समझ नहीं, वहाँ धर्म नहीं।
जहाँ दया नहीं, वहाँ प्रेम नहीं।
जहाँ हत्या है — वहाँ भगवान का नाम लेना भी पाप है।
हम संसार को दुःख देकर उत्सव मनाते हैं —
फिर पूछते हैं कि शांति क्यों नहीं मिलती।
कबीर कहते हैं —
जो रोशनी भीतर है
उसे समझने में ही जीवन का अर्थ है।
यह गीत उन्हीं के लिए है
जो सुनने नहीं — समझने आते हैं।
जो पूजा नहीं — दृष्टि चाहते हैं।
जो धर्म नहीं — सत्य खोजते हैं।
🕯️ यह जागरण है, मनोरंजन नहीं।
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