Ram Van Gaman Path, श्री राम वनगमन पथ, राम वन गमन मार्ग, अयोध्या से श्री लंका, जय श्री राम

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भगवान श्री राम ने अपनी वनयात्रा अपने जन्म स्थान अयोध्या से ही शूरू की थी सबसे पहले वे अयोध्या से २० किमी दूर तमसा नदी के महादेवा घाट पहुंचे। यहाँ पर उन्होंने नाव से नदी पार की। तमसा नदी पार करते हुए भगवान राम ने जिस घाट पर वन-गमन का पहला रात्रि प्रवास किया था, वह स्थल रामचैरा के नाम से जाना जाता है।
शृगवेरपुर (सिंगरौर)
इसके बाद उन्होंने गोमती नदी पार की श्रृंगवेरपुर पहुँचे, जो निषादराज गुह का राज्य था। यहीं पर गंगा के तट पर उन्होंने केवट से गंगा पार कराने को कहा था। श्रृंगवेरपुर को वर्तमान में सिंगरौर कहा जाता है।
प्रयागराज
इससे आगे चलकर भगवान श्रीराम प्रयागराज पहुँचे थे।
चित्रकूट
इसके बाद उन्होंने प्रयाग संगम के समीप यमुना नदी को पार किया और फिर चित्रकूट पहुचें। महाराज दशरथ की मृत्यु के पश्चात भरत अपने भाई राम को मनाने यहीं आए थे और नहीं मानने पर उनकी चरण पादुकाएं साथ ले जाकर सिंहासन पर रखी थी।
अत्रि ऋषि का आश्रम
इसके बाद वे चित्रकूट के पास ही सतना मध्यप्रदेश स्थित अत्रि ऋषि के आश्रम पहुंचे। यहां भगवान श्रीराम ने आश्रम के आस पास रहने वाले दुष्ट राक्षसों का वध भी किया था।
सतना
अत्रि-आश्रम से भगवान राम मध्यप्रदेश के सतना पहुँचे, जहाँ ‘रामवन’ हैं।

दंडकारण्य
इसके बाद वे दंडकारण्य पहुचें। दंडकारण्य मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के कुछ क्षेत्रों में फैला है। वास्त्व में यही उनका असली वनवास था यहां वे लगभग 10 वर्ष तक रहे थे। यहाँ के पहाड़ों, सरोवरों, नदी तटों एवं गुफाओं में उनके रहने के सबूतों की भरमार है।
पंचवटी, नासिक
इसके बाद भगवान श्रीराम नासिक में गोदावरी नदी किनारे बसे पंचवटी स्थित अगस्त्य मुनि के आश्रम गए। यहां अगस्त्य मुनि ने श्रीराम को अग्निशाला में बनाए गए शस्त्र भेंट किए। यहीं उन्होंने खर और दूषण का वध था, शूर्पणखा की नाक काटी थी और मारीच का वध किया था। गिद्धराज जटायु से श्रीराम की मैत्री भी यहीं हुई थी।
सीताहरण का स्थान सर्वतीर्थ
पंचवटी में माता सीता के हरण के बाद भगवान श्री राम उनकी खोज में सर्वतीर्थ नाम स्थान पर पहुंचे यह स्थान नासिक से 56 किलोमीटर दूर ताकेड़ गांव में है। यहीं उन्हंे मरणासन्न जटायु मिले थे जिन्होंने सीताहरण और रावण के बारे में बताया। यहीं भगवान श्री राम ने जटायु का अंतिम संस्कार किया था।
पर्णशाला, भद्राचलम
इसके बाद वे पर्णशाला पहुंचे। सीताहरण के पश्चात रावण ने माता सीता को यही पर पुष्पक विमान में बिठाया था।
तुंगभद्रा तथा कावेरी नदियों के क्षेत्र
इसके बाद श्रीराम और लक्ष्मण सीता जी की खोज में तुंगभद्रा तथा कावेरी नदियों के क्षेत्र में पहुँचे।
शबरी आश्रम पम्पा सरोवर (केरल)
इकसे बाद तुंगभद्रा और कावेरी नदी को पार करते हुए कबंध से मिलने के पश्चात वे माता शबरी के आश्रम पहुंचे।
ऋष्यमूक पर्वत हनुमान से भेंट (कर्नाटक)
इकसे बाद वे ऋष्यमूक पर्वत पहुंचे। यहाँ उन्होंने हनुमान और सुग्रीव से भेंट की, सीता के आभूषणों को देखा, बाली का वध किया और किष्किंधा का राज्य सुग्रीव को वापस दिलवाया।
कोडीकरई (तमिलनाडु)
इसके बाद भगवान श्रीराम ने सीताजी की खोज में वानर सेना के साथ समुद्र की ओर प्रस्थान किया और कोडीकरई पहुंचे। वहां उन्होंने जाना कि लंका तक पुल बनाने के लिए यह स्थान उचित नहीं है तब वे रामेश्वरम पहुंचे
रामेश्वरम (तमिलनाडु)
रामेश्वरम में भगवान श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई करने के पहले भगवान शिव की पूजा की थी। रामेश्वरम का शिवलिंग श्रीराम द्वारा स्थापित शिवलिंग है।
धनुषकोडी (तमिलनाडु)

’नुवारा एलिया’ पर्वत शृंखला (श्रीलंका)

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