बैकुंठ धाम | कालीनाग शिखर की पूर्ण यात्रा | सतयुग की कुटिया | मानो या ना मानो सच्ची घटनाएं

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उत्तराखंड का वह क्षेत्र जहां हैं सिर्फ नागों के मंदिर, क्‍या है इत‍िहास और धार्मिक पक्ष, जानि‍ए |

उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में बेरीनाग में नाग मंदिरों का इतिहास आर्यों से भी पहले का रहा है। काकेशियन आर्यों के इस क्षेत्र में आने से पहले यहां पर नाग वंश का शासनकाल था।

उत्तराखंड का वह क्षेत्र जहां हैं सिर्फ नागों के मंदिर, क्‍या है इत‍िहास और धार्मिक पक्ष, जानि‍ए|

उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में बेरीनाग में नाग मंदिरों का इतिहास आर्यों से भी पहले का रहा है। काकशियन आर्यों के इस क्षेत्र में आने से पहले यहां पर नाग वंश का शासनकाल था। नाग वंश के प्रतापी शासकों के नाम पर आज भी उनके मंदिर हैं। धार्मिक पक्षकार इन्हें भगवान श्रीकृष्ण द्वारा पराजित किए गए कालीनाग का वंशज मानते हैं, लेकिन इतिहासकार काकेशियन आर्यों के आगमन से पूर्व के नागवंश से जोड़ते हैं। जो भी हो यह क्षेत्र ऐसा है जहां पर मंदिर ही नहीं बल्कि पहाडिय़ों के नाम भी नागों के नाम से हैं।

हिमालयी क्षेत्र में नागवंश का शासनकाल

इतिहास देखने पर पता चलता है कि आर्यों के भारत में आने से पहले हिमालयी क्षेत्र में नागवंश का शासनकाल था। कश्मीर से लेकर हिमाचल प्रदेश, उत्त्तराखंड और नेपाल तक नाग वंश के होने के प्रमाण हैं। कश्मीर में भी अनंतनाग, बेरीनाग है तो उत्त्तराखंड के मनकोट क्षेत्र में कई नागों के नाम के स्थल और मंदिर हैं। इतिहासकार बताते हैं कि नागवंश ने इस क्षेत्र में लगभग एक हजार वर्षों तक शासन किया। जिसमें कई प्रतापी राजा भी हुए। जब यहां पर काकेशियन आर्य पहुंचे तो यहां मौजूद नाग लोगों ने अपने प्रतापी राजा के नाम पर मंदिर बनाए जो आज आस्था के प्रमुख केंद्र बने हैं। पहाड़ में आज भी भूमिया देव को पूजा जाता है। तब नागवंशीय लोगों ने भी प्रतापी राजा को भी भूमि का देव मानते हुए पूजा था।

बेरीनाग कीं किंवदंतियों का धार्मिक पक्ष|

दूसरी तरफ धार्मिक मान्यता के आधार पर इसे लोग द्वापर युग में भगवान कृष्ण द्वारा गोकुल में काली नाग का मानमर्दन मानते हैं। यमुना नदी में जब कृष्ण ने काली नाग को पराजित किया तो काली नाग ने अपना सबकुछ छिनने के बाद आगे के लिए उनसे अनुरोध किया। तब कृष्ण ने उसे हिमालयी क्षेत्र में जाने को कहा। काली नाग हिमालयी क्षेत्र में आकर राज करने लगा जिसके चलते कश्मीर से लेकर उत्तराखंड के तक पर्वतीय भाग में नागों का राज्य रहा। नागों को पूजने की परंपरा चली।

कत्यूर व गोरखाओं ने भी कराया नाग मंदिरों का निर्माण|

स्थानीय स्तर पर इसे 13वीं शताब्दी से जोड़ा जाता है। इस दौरान यहां पर कत्यूरी शासकों का शासन था। उस दौरान इस क्षेत्र में नाग बहुत दिखाई देते थे। उनको शांत करने के लिए इस क्षेत्र में मांस, प्याज, लहसुन तक का प्रयोग नहीं किया जाता था। यह पूरा क्षेत्र मनकोट में आता था। यहां शासन चलाने वाले को मनकोटिया राजा कहा जाता था। मनकोट नामक स्थान राजधानी थी। 16वीं शताब्दी में 1790 में यहां गोरखाओं का राज हो गया । तब भी नाग निकलते थे। तो उस समय नागों को शांत करने के लिए मंदिरों का निर्माण किया गया।

क्षेत्र में ये हैं प्रमुख नाग मंदिर

नाग मंदिर आज इस क्षेत्र में आस्था के प्रमुख केंद्र हैं। जहां पर नागों के अलग-अलग मंदिर हैं। प्रमुख मंदिरों में बेरीनाग, धौली नाग, फेणी नाग, पिंगली नाग, काली नाग, सुंदरी नाग है। यहां तक कि कुछ पहाड़ों का नाम तक नागों के नाम पर है। धौलीनाग बागेश्वर जिले के कमेड़ी देवी के पास स्थित है तो सुंदरीनाग मुनस्यारी विकास खंड के तल्ला जोहार में है। इन नाग मंदिरों और पहाड़ों का एक दूसरे से संबंध है। ये नाग मंदिर आज इस क्षेत्र के लोगों के ईष्ट देवता हैं। इन मंदिरों में रहने वाले देवताओं को बेहद शक्तिशाली माना जाता है। अलबत्त्ता इस क्षेत्र विशेष के अलावा अन्य स्थानों पर नाग के मंदिर नहीं हैं। अतीत में छोटे -छोटे मंदिर अब भव्य रूप ले चुके हैं।


Nag Devta Temple
As we all know Uttarakhand is a spiritual place. It is a glorifying and peaceful place. Uttarakhand is also known as ‘DEVBHOOMI’ which refer to as ‘THE LAND OF LORD.’Uttarakhand is a divine place that is a home to many gods and goddesses. This place has an aura of spiritual and religious essence in its core. Uttarakhand has many famous sculptures, architecture, temples, shrines, and cultures. This place is also famous for its Char Dham Yatra which is known as Chhota Char Dham in Uttarakhand.



This nag temple is one of the most popular dedicated to many incarnations of Lord Vishnu. This temple of Nag Devta carries a lot of significance among the local people and even the devotees from all over the world. Milk is offered in these temples on the occasion of Nag Panchami every year.

History of Nag Devta Temple, Berinag
This town was a major place of worship for the rules of Chand dynasty. When the pants from Maharashtra as mentioned by the locals, when they came to settle at this town, they witnessed a large number of snakes of various colors coiled together. They built a snake temple there after this event during 14th century.

Mythology of Nag Devta Temple – Berinag
It was believed that there was a poisonous Naga living in the Yamuna Nagar named Kalinag (kaliya), in Vrindavan which was defeated by Lord Krishna. The Kalinag recognized the greatness of Lord Krishna and surrendered. The Lord Krishna ordered Kalinag to leave theYamuna rive and go somewhere else. After this, Kalinag left the Yamuna River and went on to reside in this region of Berinag.

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