भगवान बोले भैया कमाना तो मैं भी नहीं जानता ! जो जानता हूँ वो सुनो !
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माँ गंगाजी नहाने गई, तो बहू से कह गई कि 'मेरे बेटे को सुबह रोटी दे दियो।'
बहू ने कहा, 'अच्छा दे दूँगी।'
सुबह बेटा बोला- 'माँ-माँ रोटी दो।'
बहू बोली, 'ना माँ है, ना रोटी, कमा के लाओगे तभी रोटी दूँगी।'
वह बोला 'भागवान् ! मैं तो कमाना ना जानूँ।'
लेकिन बहू नहीं मानी तो बेटे ने कहा, 'अच्छा तो चार रोटी आम का अचार दे दो।'
बहू ने बना कर दे दी। वह रोटी लेकर कुएँ की पाल पर जाकर बैठ गया और कहने लगा, 'राम कमानो ना जानूँ।' भगवान ब्राह्मण का वेष बनाकर आए, 'बोले तुम ऐसे उदास क्यों बैठे हो।'
वह बोला, 'मेरी पत्नी ने कहा है कि कमा के लाओगे तो रोटी मिलेगी।
पर मैं कमाना नहीं जानता।' ब्राह्मण (भगवान) बोले, 'भैया कमाना तो मैं भी नहीं जानता।
हाँ पर मैं आठों वारों का नाम जानता हूँ। जिससे तेरे अटूट भंडार हो जाएँगे।
चावल के दाने और पानी की घंटी ले लो। ढके बर्तन को उघाड़ो। औधों को सीधा करो।' ब्राह्मण ने कही उसने सुनी। इतवार, सोमवार, मंगलवार, बुधवार, बृहस्पतिवार, शुक्रवार शनिवार आठों वारों का आसरा, भरियो पीहर सासरा। अटूट भंडार होते चले गए। घर पहुँचा बीवी बोली क्या लाए ?
उसने कहा आठों वारों का नाम लाया हूँ।
बीवी ने सोचा चलो कुछ तो लाया है। चावल के दाने और पानी की घंटी ला, औंधो को सीधा, ढकों को उघाड़ो, उसने कही, उसने सुनी, इतवार, सोमवार मंगलवार बुधवार बृहस्पतिवार शुक्रवार शनिवार आठों वारों का आसरा, भरियो पीहर सासरा।
अटूट भंडार होते चले गए। बेटा वबहू से बोला, 'मैं बेटी के जा रहा हूँ।' फटे से कपड़े पहनकर बेटी के गया।
बच्चे बोले, 'नाना आए।' बेटी बोली, 'कैसे भेष में आए हैं ?' बच्चे बोले, 'मैले भेष में आए हैं ?
आए क्या हैं दो दिन की रोटी तोड़ने आए हैं।'
सच है गरीबी सब कुछ कहला देती है। बेटी से कहा, 'बेटी आठों वारों की मेरी कहानी सुन ले।'
उसने कहा, 'पिताजी मेरा मुँह झूठा है।' उसके पिता भूखे ही सो गए। अगले दिन बेटी को तरस आया बोली, 'पिताजी-पिताजी अपनी कहानी सुनाओ।
पिताजी ने कहा, 'चावल के दाने लाओ,पानी की घंटी लाओ।
ढकों का उघाड़ों, आँधों को सीधा करो। पिता ने कही बेटी ने सुनी। इतवार, सोमवार, मंगलवार, बुधवार, बृहस्पतिवार, शुक्रवार, शनिवार आठ वारों का आसरा, भरियो पीहर सांसरा। अटूट भंडार होते चले गए।
बेटी भर-भर के बोरे बाँटने लगी।
पड़ोसिन ने कहा, 'तुम तो कह रही थी मेरा बापू कुछ नहीं लाया। फिर ये भर-भर के बोरे कैसे बाँट रही हो।' '
मेरे बापू तो खाली हाथ ही आए थे। ये तो आठों वारों की कहानी का फल है' बेटी बोली। '
अपने बापू से हमको भी कहानी सुनवा दोगी' पड़ोसन ने कहा।
बेटी ने पिताजी से कहा तो वह बोला, 'आज तो मेरा मुँह झूठा है कल सुना दूँगा।'
अगले दिन उसके बाप ने पड़ोसन को आठों वारें की कहानी सुनाई।
उसके भी खूब अटूट भंडार हो गए। जैसे उस ब्राह्मण के आठों वारों की कहानी से सबके अटूट भंडार भर गए, कहते सुनते
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