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Скачать или смотреть आधुनिक विधि से ग्वार की खेती से मोटी कमाई 😍 | gawar ki kheti | Cluster Bean Farming | Krishi Network

  • Krishi Network
  • 2021-08-25
  • 75844
आधुनिक विधि से ग्वार की खेती से मोटी कमाई 😍 | gawar ki kheti | Cluster Bean Farming | Krishi Network
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Описание к видео आधुनिक विधि से ग्वार की खेती से मोटी कमाई 😍 | gawar ki kheti | Cluster Bean Farming | Krishi Network

ग्वार की फलियों का उपयोग सब्जी बनाने में किया जाता है। इसके अलावा ग्वार का उपयोग हरा चारा एवं हरी खाद के तौर पर भी किया जाता है। बहु-उपयोगी फसल होने के कारण इसकी खेती करने वाले किसान कम समय में अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। आइए जानते हैं ग्वार की खेती से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां।


ग्वार की बुवाई के लिए उपयुक्त समय:
ग्वार की खेती गर्मी एवं वर्षा दोनों मौसम सफलतापूर्वक की जा सकती है।
गर्मी के मौसम में फसल प्राप्त करने के लिए इसकी बुवाई फरवरी-मार्च महीने में करनी चाहिए।
वर्षा के मौसम में फसल प्राप्त करने के लिए इसकी बुवाई जून-जुलाई महीने में करें।


उपयुक्त मिट्टी एवं जलवायु:
ग्वार की खेती लगभग सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है।
अच्छी पैदावार के लिए उचित जल निकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी सर्वोत्तम है।
इसकी खेती रेतीली मिट्टी, हल्की क्षारीय एवं लवणीय मिट्टी में भी की जा सकती है।
मिट्टी का पीएच स्तर 7.5 से 8 होना चाहिए।
पौधों के अच्छे विकास के लिए सूखे एवं गर्म मौसम की आवश्यकता होती है।
कम वर्षा होने वाले क्षेत्रों में भी इसकी खेती की जा सकती है।

उन्नत किस्में:
इसकी किस्मों को मुख्यतः 3 भागों में बांटा गया है।

दानों के लिए : अगर आप दानों के लिए ग्वार फली की खेती कर रहे हैं तो दुर्गापुर सफेद, मरू ग्वार, दुर्गाजय, एफएस-277, अगेती ग्वार-111, आरजीसी-197, आरजीसी-417 और आरजीसी-986 आदि किस्मों की खेती करें।

हरी फलियों के लिए : अगर आप ग्वार फली की खेती हरी फलियों के लिए कर रहें हैं तो शरद बहार, पूसा सदाबहार, पूसा नवबहार, पूसा मौसमी , गोमा मंजरी, आईसी-1388, एम-83 और पी-28-1-1 आदि किस्मों की खेती आपके लिए फायदेमंद साबित होगी।

हरे चारे के लिए : यदि आप ग्वार फली की खेती से हरा चारा प्राप्त करना चाहते हैं तो आप ग्वार क्रांति, बुन्देल ग्वार-1, बुन्देल ग्वार -2, बुन्देल ग्वार-3, मक ग्वार, एचएफजी-119, गोरा-80 और आरआई-2395-2 आदि किस्मों की खेती कर सकते हैं।


बीज की मात्रा एवं बीज उपचारित करने की विधि:
छिड़काव विधि से खेती करने पर प्रति एकड़ जमीन में 8 से 10 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।
क्यारियों में खेती करने पर प्रति एकड़ भूमि में 5.6 से 6.4 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।
बुवाई से पहले प्रति किलोग्राम बीज को 2 ग्राम बाविस्टिन या कैप्टान से उपचारित करें।
इसके बाद प्रति किलोग्राम बीज को 2 से 3 ग्राम राइजोबियम कल्चर से भी उपचारित करें।


खेत की तैयारी एवं बुवाई की विधि:
खेत तैयार करते समय सबसे पहले एक बार गहरी जुताई करें और कुछ दिनों तक खुला रहने दें।
इसके बाद 2 से 3 बार हल्की जुताई करें।
जुताई के समय प्रति एकड़ भूमि में 80 से 100 क्विंटल तक गोबर की खाद मिलाएं।
जुताई के बाद खेत में पाटा लगाकर मिट्टी को समतल एवं भुरभुरी बना लें।
बीज की बुवाई के लिए खेत में क्यारियां तैयार करें।
क्यारियों में बुवाई करने पर सिंचाई एवं खरपतवार नियंत्रण में आसानी होती है।
सभी क्यारियों के बीच 30 सेंटीमीटर की दूरी रखें।
पौधों से पौधों की दूरी 15 सेंटीमीटर होनी चाहिए।


सिंचाई एवं खरपतवार नियंत्रण:
वर्षा के मौसम में वर्षा होने पर सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है।
गर्मी के मौसम में 7 से 10 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें।
बुवाई के करीब 1 सप्ताह बाद ही खरपतवार की समस्या शुरू हो जाती है।
खरपतवारों पर नियंत्रण के लिए निराई-गुड़ाई करें।


फसल की तुड़ाई:
ग्वार की खेती यदि फलियों के लिए की जा रही है तो फलियों की तुड़ाई नर्म एवं हरी अवस्था में करें।
बुवाई के 55 से 80 दिनों के बाद फलियों की तुड़ाई की जा सकती है।
हर 4 से 5 दिनों के अंतराल पर फलियों की तुड़ाई करें।
यदि बीज या दाने प्राप्त करने के लिए ग्वार की खेती की गई है तो फलियों का रंग पीला होने के बाद ही तुड़ाई करें।
फलियों को पक कर तैयार होने में करीब 120 दिनों का समय लगता है।


हमें उम्मीद है यह जानकारी आपके लिए महत्वपूर्ण साबित होगी। यदि आपको इस पोस्ट में दी गई जानकारी पसंद आई है तो इसे लाइक करें एवं अन्य किसानों के साथ साझा भी करें। जिससे अन्य किसान मित्र भी इस जानकारी का लाभ उठाते हुए ग्वार की अच्छी पैदावार प्राप्त के सकें। इससे जुड़े अपने सवाल हमसे कमेंट क माध्यम से पूछें।


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