पंजाब की सबसे पाक जगह Mujaddid Alfesani RA-की दरगाह सिरहिंद शरीफ, सबसे अलग खूबसूरत ज़ियारत

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Title- दीने इलाही की मुखालफत करने वाले वाहिद अल्लाह के वली, सिरहिंद शरीफ की दरगाह का खूबसूरत नज़ारा

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अस्सलामू अलैकुम नाजरीन नूरानी खबरों में आपका खैर मकदम है...नाजरीन  हिंदुस्तान की सरजमीं अल्लाह तबारक व ताला के वली अल्लाह की सरजमीं है।  जहाँ अल्लाह के बेशुमार वली आराम फरमां है।  नाजरीन जैसा कि आप सभी जानते हैं कि नूरानी खबरें वली अल्लाह, बुजुर्गोंने दीन और औलिया इकराम की दरगाहों की जियारत के लिए जानी जाता है। दरगाह की जियारत से हम और आप दोनों फैज़ हासिल करते हैं। दरगाहों की जियारत पर
 वीडियो बनाने का हमारा मकसद उम्मते मुसलमां को अल्लाह के वली , बुजुर्गाने दीन और आलिया इकराम से मुतालिक मालूमात देना है। ताकि हर उम्मते मुसलमां को मालूम हो कि इस्लाम का परचम बुलंद करने अल्लाह के वलियों, बुजुर्गाने दीन और अल्लाह के वलियों ने कितनी मेहनत की है। इसके अलावा उम्मते मुसलमां को वलियों से मोहब्बत का पैगाम देना और वलियों से मुतालिक गलतफहमियों को दूर करना है। नाजरीन दरगाहों की जियारत से दिलों दिमाग को सुकून हासिल होता है।  नाजरीन हर जुमेरात को हम आपको किसी न किसी वली अल्लाह, बुजुर्गाने दीन और औलिया इकराम की दरगाहों की जियारत कराते है।  दरगाहों की जियारत की इसी कड़ी के मद्देनज़र नूरानी खबरें की टीम निकल पड़ी है दिल्ली से 280 किलो मीटर दूर पंजाब की सरजमीं सिरहिंद शरीफ में जहां आराम फरमां है। दीने इस्लाम का परचम बुलंद करने वाले और वक्त के बादशाह जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर की मुखालफत करने वाले अल्लाह के वली हजरत मुजद्दिद अल्फेसानी रहमातुल्लाह अलैह...  

नाजरीन पंजाब के सरहिंद शरीफ में अल्लाह तबारक व ताला के वली अल्लाह हजरत शेख सैयद मुजद्दिद अल्फेसानी रहमातुल्लाह अलैह की मजारे मुबारक है। आपका पूरा नाम हजरत शेख अहमद इमाम रब्बानी मुजादिद अल्फेसानी अलैह है। आपको यौमे विलादत 26 जून 1564 ईसवीं में पंजाब के सरहिंद में ही हुई थी। इनके वालिद शेख अब्द अल अहद रहमातुल्लाह अलैह अपने वक्त के बहुत बड़े आलीम थे। हजरत मुजद्दिद अल्फेसानी बादशाह अकबर के खासा सलाहकार भी थे। नाजरीन अल्लाह के वली ने इस्लाम की तबलीग के लिए बादशाह अकबर के कैदखाने को भी इस्लाम की रोशनी से रोशन कर दिया था.... नाजरीन बादशाह अकबर यूं तो सुन्नी मुसलमान थे और दीन के बड़े पाबंद थे.. मालूमात तो यहाँ तक है कि जब बादशाह अकबर सफर पर निकलते थे अपने साथ जैनमाज़ लेकर निकलते थे .. कि कहीं सफर में नमाज़ कज़ा न हो जाए और वक्त पर नमाज़ की अदायगी हो जाए। अगर  बादशाह अकबर घोड़े पर सवार हो और अगर कोई साहिल या फकीर अल्लाह का नाम लेता तो बादशाह अकबर घोड़े से उतरकर उसकी मदद करते।  बादशाह अकबर वली अल्लाह का एहतराम करते पर न जाने शैतान ने उनके दिमाग में क्या डाला दिया कि वह खुद को सबसे ज्यादा ताकतवर समझने लगे। वो खुद को कौम का रहनुमा समझने लगे। बादशाह अकबर यहीं नही रूके बल्कि उन्होनें हिंद को दिखाने और अपनी हुकूमत को कायम रखने के लिए नए दीन का इंतेखाब किया। जहाँ अस्सलामू अलैकुम की जगह अल्लाहू अकबर बोलना, बुतों की पूजा करना, पैगंबरों को न मानने वाले नए दीन को अपनी  हुकूमत के तमाम लोगों को नफीस किया।  दीन से गाफिल हुए बादशाह अकबर ने उम्मते मुसलमां के दीने इस्लाम से अलग अपनी दीने इलाही पर चलने का हुक्म दिया। जिसके माने उन्होनें अल्लाह का धर्म बताया।  अकबर की सलतनत में जिस भी शख्स ने बादशाह अकबर के दीने इलाही की मुखालफत वाले लोगों को कैदखाने में डालने का हुक्म दे दिया... यह सब देख बादशाह अकबर के सिपाहसालारों और दानिशमंदों ने भी दीने इलाही की मुखालफत करने के बजाय चुप्पी साधना ही बेहतर समझा लेकिन उसी सल्तनत में दीन की रोशनी फैलाने वाले अल्लाह के वली मुजद्दीद अल्फेसानी रहमातुल्लाह अलैह ने दीने इलाही की खुलकर मुखालफत की और बादशाह अकबर को दीने इस्लाम पर चलने और तौबा करने की बात कहीं। बादशाह अकबर दीन से इस तरह गाफिल थे कि उन्होनें अल्लाह के वली को चुप कराने के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया। बादशाह अकबर के तमाम कोशिशों के बावजूद अल्लाह के वली ने दीने इलाही को कबूल नहीं किया। आखिर में बादशाह अकबर ने अल्लाह के वली हजरत मुजद्दीद अल्फेसानी को कौदखाने में डाल दिया। कैदखाने में भी अल्लाह के वली ने दीन की तबलीग जारी रखी और तमाम कैदियों को दीने इस्लाम के बारे में बताया और उस दौरान कैदखाने में कैद तमाम कैदियों ने तौबा कर दीने इस्लाम को कबूल किया।

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