जय एकेश्वर महादेव 🙏🏽 Ekeshwar Mahadev Visit

Описание к видео जय एकेश्वर महादेव 🙏🏽 Ekeshwar Mahadev Visit

a visit to ekeshwar mahadev

एकेश्वर महादेव
उत्तराखण्ड में शैव तथा शक्ति दोनों ही सम्प्रदायों के उपासक हैं, जिस कारण यहां कई महत्वपूर्ण शैव तथा शक्तिपीठ स्थापित हैं। मात्र केदारक्षेत्र में ही पांच प्रमुख शैवपीठ हैं १-ताड़केश्वर महादेव २-बिन्देश्वर महादेव ३-एकेश्वर महादेव ४-क्यूंकालेश्वर महादेव ५-किल्किलेश्वर महादेव। एकेश्वर महादेव जिनको कि स्थानीय भाषा में "इगासर महादेव" के नाम से भी जाना जाता है इन्ही पांच प्रमुख शैवपीठों में से एक हैं। यह मन्दिर कोटद्वार-पौड़ी राजमार्ग पर सतपुली नामक स्थान से लगभग २० किलोमीटर की दूरी पर एकेश्वर नामक स्थान पर स्थित है। संभवतया इसी शैवपीठ के नाम पर इस स्थान का नाम एकेश्वर कहलाया। सतपुली बाजार से समय समय पर इस स्थान के लिये नियमित बस सेवा तथा टैक्सी सेवा के द्वारा इस स्थान तक पहुंचा जा सकता है। मुख्य सड़क मार्ग पर ही सीमेन्ट तथा टाईल्स से बना हुआ मन्दिर का प्रवेशद्वार स्थित है। यहां से मन्दिर तक लगभग १०० मीटर का सीमेन्ट-कंक्रीट का बना सीढ़ीनुमा पैदल रास्ता जाता है। मन्दिर के आस पास के बांज तथा चीड़ के वृक्षों इस स्थान की प्राकृतिक सुन्दरता को और बढ़ा देते हैं। पौराणिक संदर्भों में इस स्थान के महात्म्य के बारे में जो वर्णन मिलता है उसके अनुसार इस स्थान पर महाभारत काल में पाण्डवों ने भगवान शिव की तपस्या की थी। तथा कहा जाता है कि संवंत ८१० के आसपास सर्वप्रथम आदिगुरू शंकराचार्य ने इस स्थान पर इस मन्दिर की स्थापना की थी। हालांकि इस मन्दिर की स्थापना से आदिगुरू शंकराचार्य का नाम जुड़ा है परन्तु मन्दिर की निर्माण शैली पूर्णतया आधुनिक है। संभवतया मन्दिर की पौराणिक संरचना समय समय पर भक्तों द्वारा कराये गये जीर्णोद्धार के कारण समाप्त हो गई है परन्तु मन्दिर परिसर के आसपास रखी प्राचीन मूर्तियों के अवशेष इसकी प्राचीनता का अनुभव कराते हैं। एकेश्वर महादेव मन्दिर के गर्भगृह में स्वयंभू शिवलिंग विराजमान हैं। मन्दिर के उत्तर में स्थित वैष्णव देवी गुफा तथा गुफा के पीछे ही भैरवनाथ के मन्दिर की स्थिति इस मन्दिर के महत्व को और बढ़ा देती है। कहा जाता है कि भैरवनाथ मन्दिर के अन्दर से बदरीनाथ मन्दिर तक एक सुरंग मार्ग है जो कि अब बन्द कर दिया है। उत्तराखण्ड के कई पौराणिक/ऐतिहासिक मन्दिरों में इस तरह की भूमिगत-गुप्त सुरंगों का वर्णन मिलता है जिनको प्राचीन काल में प्राय: एक स्थान से दूसरे स्थान तक आवागमन हेतु या फिर आक्रमण के समय संकटकाल में सुरक्षित निकलने हेतु प्रयोग किया जाता था। परन्तु अब अधिकतर सुरंगों को सुरक्षा की दृष्टि से बदं कर दिया गया है।
पौराणिक संदर्भों से प्राप्त विवरणों के अनुसार भगवान शिव एकेश्वर से ही ताड़केश्वर महादेव गये थे। एकेश्वर महादेव में प्रत्येक शिवरात्रि को भक्तों की भीड़ लगी रहती है। श्रावण मास में यहां भक्त आकर शिवलिंग का दूध, गंगाजल तथा बेलपत्री से अभिषेक करने अवश्य आते हैं। श्रावण मास में ही यहां कांवड़ मेले का आयोजन किया जाता है। पुत्रप्राप्ति हेतु उत्तराखण्ड के कुछ खास शिवमन्दिरों में खड़े दीये की पूजा की जाती है जिसे स्थानीय भाषा में "खड़रात्रि" कहते हैं। प्रत्येक वर्ष बैशाखी के अगले दिन (१४ अप्रैल को) संतान प्राप्ति की इच्छुक महिलायें अपने पति के साथ यहां रात्रिभर प्रज्वलित दीपक हाथों में लेकर खड़ी रहकर भगवान शिव की स्तुति करती हैं। वैसे तो हर छोटे बड़े पर्व पर श्रद्धालु भक्तों की अपार भीड़ यहां दर्शनार्थ व पूजा अर्चना हेतु यहां आती है। परन्तु १४ अप्रैल को यहां इतनी भीड़ होती है कि वर्तमान में इसने एक विशाल मेले का रूप ले लिया है। इस पर्व को अब धर्मिक-सांस्कृतिक मेले का रुप देकर मन्दिर समिति तथा स्थानीय नागरिकों की ओर से आयोजित किया जाता है। ऐसे ही एक और चारदिवसीय मेला श्रीनगर के कमलेश्वर महादेव में बैकुन्ठ चतुर्दशी (कार्तिक मास कि पूर्णिमा से पहला दिन) पर आयोजित किया जाता है। मन्दिर परिसर में एक धर्मशाला स्थित है जिसमें यात्रियों/भक्तों के ठहरने की व्यवस्था है परन्तु भोजन की व्यवस्था स्वयं करनी होती है। मन्दिर से ही कुछ दूरी पर स्थित एकेश्वर बाजार में आल्पाहार की दुकाने हैं संभवतया वहां आग्रह पर भोजन की व्यवस्था हो सके। अन्यथा भोजन तथा होटल की सुविधा हेतु निकटस्थ स्थान सतपुली बाजार लगभग २० किलोमीटर दूर स्थित है।
मन्दिर के पास ही लगभग १५० मीटर नीचे जाकर "मंगरा धारा" पानी का एक प्राकृतिक स्रोत है। जिसका निर्माण प्रस्तरखण्डों से बड़े कलात्मक ढंग से किया गया है। शीतल जल का यह प्राकृतिक स्रोत आस पास के निवासियों के लिए महादेव के एक आशिर्वाद की तरह है। इस तरह की प्रस्तरशिलाओं से बने हुये पानी के स्रोत अब उत्तराखण्ड में बहुत कम रह गये है जो कि यहां के प्राचीन स्थानीय कारीगरों की कार्यकुशलता तथा कलात्मकता का परिचय देते हैं। इस तरह के स्रोत अब बहुत कम किसी पौराणिक या एतिहासिक स्थल के आसपास ही देखने को मिलते हैं।

Комментарии

Информация по комментариям в разработке