"झूठ के सहारे चलने वाले, कुछ दूर तो जाते हैं,
मगर मेहनत की रोशनी में, वो जल्दी ही छिप जाते हैं।
जो हर सुबह इरादों के साथ उठते हैं,
वही लोग हैं जो ज़िंदगी की ऊँचाइयों को छूते हैं!"
नमस्कार साथियो, आज का विषय थोड़ा चुभता हुआ जरूर है, लेकिन सच्चाई से भरपूर है।
क्या आपने भी कभी देखा है —ऑफिस में कोई न कोई ऐसा व्यक्ति ज़रूर होता है. जो हर दूसरे हफ्ते “माँ की तबीयत”, “भाई का एक्सीडेंट”, या फिर “तेज़ बुखार” का बहाना बनाकर छुट्टी पर चला जाता है।
शुरुआत में हम सोचते हैं —
“चलो, हो सकता है सच्ची मजबूरी हो…”
लेकिन जब वही इंसान हर महीने किसी ना किसी बहाने से गायब रहने लगे — तो सवाल उठता है…
क्या ऐसे लोग अपनी ज़िंदगी में वाकई कुछ बड़ा हासिल कर पाते हैं?चलिए इसे समझते हैं…
काम और जिम्मेदारी: तरक्की का पहला क़दमसच बात तो ये है कि दुनिया का कोई भी काम बिना ज़िम्मेदारी निभाए बड़ा नहीं होता।
जो इंसान बार-बार बहाने बनाता है, वो सिर्फ़ ऑफिस को धोखा नहीं देता…
वो इंसान अपने भविष्य को भी धोखा दे रहा होता है।
हर वो दिन, जो आप सच्चे मन से काम में लगाते हैं,
वो आपको दूसरों से एक कदम आगे ले जाता है।
और हर वो बहाना, जो आप बना लेते हैं…
वो आपको एक सीढ़ी नीचे गिरा देता है।
विश्वास और छवि — सबसे बड़ा कैपिटलऑफिस में आपका काम जितना ज़रूरी है,
आपकी छवि, यानी आपकी “Image”, उससे भी कहीं ज़्यादा अहमियत रखती है।
जब एक कर्मचारी बार-बार झूठे बहाने बनाता है —
तो उसकी एक “बईमान वाली” छवि बन जाती है।
फिर चाहे वो कितना ही होशियार क्यू न हो
जब प्रमोशन की बारी आती है, तो
विश्वासपात्र कर्मचारी ही सबसे पहले चुने जाते हैं।
क्योंकि स्किल सीखा जा सकता है, लेकिन ईमानदारी नहीं।
छोटी जीत की बड़ी हारबहाने बनाकर छुट्टी लेना,, शायद एक दिन की छोटी जीत हो,
लेकिन उसी दिन कोई दूसरा कर्मचारी
आपके हिस्से का बना हुआ काम सीख रहा होता है।
आप एक दिन का आराम पाते हैं,
वो एक दिन का अनुभव जोड़ता है।
कई बार लोग कहते हैं —
"अरे भाई, क्या फर्क पड़ता है? एक दिन की ही तो बात है…"
लेकिन वही “एक दिन” हर महीने जोड़ने पर 12 दिन, फिर 24 दिन… और धीरे-धीरे एक साल की मेहनत गायब हो जाती है।
तरक्की उन्हीं की होती है, जो खुद से सच्चे होते हैंकभी गौर करिएगा…
आपके ऑफिस में जो लोग सबसे ऊपर हैं,
जो सीनियर हैं, जिनके पास सबसे ज़्यादा ज़िम्मेदारियाँ हैं…
क्या उन्होंने ऐसे बहाने बनाकर अपना करियर खड़ा किया है?नहीं।
उन्होंने काम को अपना कर्तव्य माना,
छोटे-छोटे मौके नहीं, बड़ी सोच और बड़ी नीयत से अपने सफर को आगे बढ़ाया।
तो साथियों,
छुट्टी लेना कोई गुनाह नहीं है — अगर वो वाजिब कारण से हो।
लेकिन बहाना बनाना, सिर्फ़ बहाने के लिए —
वो आपकी तरक्की की सबसे बड़ी रुकावट है।क्योंकि दुनिया उन्हीं को पहचानती है
जो अपने काम से पहचान बनाते हैं,
ना कि बहानों से।
"हर बहाना एक दीवार है, जो आपकी मंज़िल से आपको दूर करता है,
और हर ईमानदारी भरा दिन, एक पुल है — जो आपको उस मंज़िल तक पहुँचाता है।"तो "सोचिए, आप पुल बना रहे हैं या दीवार?"
आज के लिए इतना ही , हम कल फिर मिलेंगे अगले एपिसोड के साथ
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