Arey Man! Ubhaya Roop Jaga Jaan Part-1/2 || अरे मन! उभय रूप जग जान -भाग 1/2

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इस वीडियो के कुछ अंश हैं—
एक तत्वज्ञ अपने मन से कहता है, अरे मन! यह संसार दो प्रकार का है। उभय का ज्ञान, जब तक कोई जीव संसार को न जानेगा तब तक परमार्थ की, अध्यात्म जगत की, ईश्वरीय जगत की प्रवेशिका भी नहीं प्रारंभ नहीं कर सकता। ईश्वरीय जगत में प्रवेश पाने के लिए संसार का ज्ञान अनिवार्य है। आप कहेंगे ये क्यों? जिसमें प्रवेश पाना है उसका ज्ञान अनिवार्य होना चाहिए। भगवान में प्यार करना है, भगवान में मन लगाना है, भगवान में अनुराग करना है तो संसार के ज्ञान की क्या आवश्यकता? विरोधी वस्तु है। भगवान को जानो, तो भगवान में प्यार हो। जानो संसार को प्यार करना है भगवान से। ये कैसी पहेली है? हैं! ऐसी पहेली। थोड़ा समझ लीजिए इस पहेली को। भगवान को जानना ये तब होगा जब श्रद्धा की उत्पत्ति होगी।तो संसार को जानना इसलिए अनिवार्य है कि ईश्वर को जानने के लिए श्रद्धा की आवश्यकता है। श्रद्धा! और क्षद्धा की उत्पत्ति वैराग्य से होती है। और वैराग्य की उत्पत्ति संसार के ठीक-ठीक ज्ञान से होती है, ठीक-ठीक ज्ञान। ऐसे तो बहुत से आपलोगों में हमसे सीनियर भी है। ये कह सकते है अजी बड़ा संसार देखा है, बेवकूफ थोड़े ही है, धूप में बाल सफेद थोड़े ही हुए है। अरे अनंत जन्म में संसार को नहीं जान सके। एक जन्म में जानने का क्या दावा कर रहे हो? अनंत जन्म बीत गए। और जब तक संसार को नहीं जानेंगे तब तक संसार से मन पृथक न होगा। पृथक, माने राग भी न हो, द्वेष भी न हो। और जब तक संसार से पृथक न होगा तब तक ईश्वरीय मार्ग में प्रवेश कैसे होगा? मन ही को तो प्रवेश लेना है। इसलिए पहला काम संसार का परिज्ञान, तब दूसरा काम संसार से वैराग्य, तब तीसरा परिणाम श्रद्धा की उत्पत्ति, तब चौथा परिणाम किसी वास्तविक महापुरुष की प्राप्ति, तब पाॅंचवा परिणाम महापुरुष की शरणागति, तब छठा नंबर आता है भजन क्रिया। सातवां नंबर फिर आता है अनर्थ निवृत्ति। आठवां नंबर आता है निष्ठा। नौवां नंबर आता है रुचि। दसवां नंबर आता है आसक्ति। ग्यारहवां नंबर आता है भाव। बारहवां नंबर आता है प्रेम। तेरहवां नंबर आता है भगवतप्राति।

—जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज

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कलियुग में दान को ही कल्याण का एकमात्र माध्यम बताया गया है। 'दानमेकं कलौयुगे'।
दान पात्र के अनुसार ही अपना फल देता है तथा भगवान एवं महापुरुष के निमित्त किया गया दान सर्वोत्कृष्ट फल प्रदान करता है।
हम साधारण जीव यथार्थ में यह नहीं जान सकते कि वास्तविक महापुरुष के प्रति किया गया हमारा दान/समर्पण हमारे कल्याण का कैसा अद्भुत द्वार खोल देगा। अतएव, समर्पण हेतु आगे बढिये।
आपकी यह दान राशी जीरकपुर (चंडीगढ़) स्थित राधा गोविंद मन्दिर के निर्माण कार्य में प्रयुक्त होगी।
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(केवल भारतीय नागरिकों के लिए)

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Contact numbers : 8552066661, 9872396855, 9988998001
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