काफिर का अंग (सम्पूर्ण) | संत रामपाल जी महाराज द्वारा विस्तृत वर्णन | Kafir Ka Ang by Sant Rampal Ji | Satlok Ashram
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काफिर बोध सुनो रे भाई। दोहूं दीन बीच राम खुदाई।।1।।
काफिर सो माता दैं गारी, वै काफिर जो खेलैं सारी।।2।।
काफिर कूड़ी साखि भरांही, काफिर चोरी खट्या खांही।।3।।
काफिर दान यज्ञ नहीं करहीं, काफिर साधु संत सें अरहीं।।4।।
काफिर तीरथ ब्रत उठावैं, सत्यवादी जन नाम लौ लावैं।।5।।
काफिर पिता बचन उलटांहीं, इतनें काफिर दोजिख जांहीं।।6।।
सत्यकर मानौं बचन हमारा, काफिर जगत करूं निरवारा।।7।।
वे काफिर जो बड़ बड़ बोलैं, काफिर कहौ घाटि जो तोलैं।।8।।
वै काफिर ऋणि हत्या राखैं, वै काफिर परदारा ताकैं।।9।।
काफिर स्वाल सूखन कूं मोड़ैं, काफिर प्रीति नीचसूं जोड़ैं।।10।।
दोहा- काफिर काफिर छाड़ि हूं, सत्यवादी सें नेह।
गरीबदास जुग जुग पड़ै, काफिर कै मुख खेह।।11।।
वै काफिर जो कन्या मारैं, वै काफिर जो बन खंड जारैं।।12।।
वै काफिर जो नारि हितांही, वै काफिर जो तोरैं बांही।।13।।
वै काफिर जो अंतर काती, वै काफिर जो देवल जाती।।14।।
वै काफिर जो डाक बजावैं, वै काफिर जो शीश हलावैं ।।15।।
वै काफिर जो करैं कंदूरी, वै काफिर जिन नहीं सबूरी।।16।।
वै काफिर जो बकरे खांही, वै काफिर नहीं साधू जिमांही।।17।।
वै काफिर जो मांस मसाली, वै काफिर जो मारें हाली।।18।।
वै काफिर जो खेती चोरं, वै काफिर जो मारैं मोरं।।19।।
वै काफिर अन भावत खांही, काफिर गणिका सूं गल बांही।।20।।
काफिर अर्ध बिंब सें संगा, काफिर सो जो फिरै बिनंगा।।21।।
काफिर सो जो मही तनावैं, जाका दूध रुधिर घर ल्यावैं।।22।।
काफिर जो भल भदर भेषा, जाके शिरपर बाल न एका।।23।।
दोहा- काफिर कीड़े नरक के, जुग जुग होत बिधंस।
गरीबदास साची कहै, नहीं चिन्हत हैं बंस।।24।।
काफिर सो जो मुरगी काटैं, वै काफिर जो सीनां चाटैं।।25।।
काफिर गूदा घतैं सलाई, काफिर हुका पीवैं अन्याई।।26।।
काफिर भांग भसौड़ी भरहीं, काफिर हुक्के कूं सर करहीं।।27।।
काफिर घट में धूमां देहीं, काफिर नास नाक में लेहीं ।।28।।
काफिर कथ सुपारी चूना, पांन लपेटि मुख में थूंनां।।29।।
काफिर मालनि कूं डर पावैं, बिनहीं कीनैं भाजी खावैं।।30।।
काफिर सो एक अंब चिचोरैं, मजलसि बैठें मुख निपोरैं।।31।।
काफिर सो जो कानी देही, काफिर सो कन्या धन लेही।।32।।
काफिर सो साली सें साखा, काफिर बचन पलटै माका।।33।।
काफिर सो जो विद्या चुरावैं, काफिर भैरव भूत पूजावै।।34।।
साखी- पूजैं देई धाम कूं, शीश हलावै जोय।
गरीबदास साची कहैं, हदि काफिर है सोय।।26।।
काफिर तोरै बनज ब्योहारं, काफिर सो जो चोरी यांर।।36।।
काफिर सो जो बाग उपारं, काफिर सो बिन सतनाम अधारं।।37।।
काफिर आंन देवकूं मानैं, काफिर गुड़कुं दूधैं सानैं।।38।।
वै काफिर जो अनरुचि खांही, वै काफिर जो भूले सांई।।39।।
वै काफिर जो अंडा फोरैं, काफिर सूर गऊ कूं तोरैं।।40।।
वै काफिर जो मिरगा मारैं, काफिर उदर क्रदसे पारैं।।41।।
काफिर पीवत गऊ हटावैं, काफिर कूवे की मणि ढांहवैं।।42।।
काफिर भेष भेष कूं मारै, काफिर कूड़ा ज्ञान पसारै।।43।।
दोहा- गरीब काफिर कीर्ति ना लखै, धर्म दया ब्यवहार।
गरीबदास कैसैं बचै, जाना जम दरबार।।44।।
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