📍SHANIWAR WADA बाजीराव प्रथम छत्रसाल बुंदेला की बेटी मस्तानी से शादी करके उन्हें इसी महल में लाए थे

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📍SHANIWAR WADA पेशवाओं के इसी शनिवार वाडा में भयानक आग लगने से ये इमारत जलकर राख हो गई थी।‪@Gyanvikvlogs‬

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पेशवा बाजीराव-प्रथम के पिता बालाजी विश्वनाथ मराठा शासक छत्रपति शिवाजी के पोते और सतारा के छत्रपति साहू के पेशवा यानी प्रधानमंत्री हुआ करते थे। बालाजी विश्वनाथ का परिवार पुणे से क़रीब 32 कि.मी. दूर सस्वाद के एक वाड़े में रहता था। सन 1720 में बालाजी विश्वनाथ का अचानक देहांत हो गया। उसके बाद छत्रपति साहू ने बाजीराव-प्रथम को मराठा साम्राज्य का पेशवा नियुक्त कर दिया। तब उनकी उम्र केवल बीस साल की थी। पेशवा बाजीराव-प्रथम के दौर में मराठा साम्राज्य मालवा, गुजरात, बुंदेलखंड और यहां तक कि लगभग दिल्ली के दरवाज़े तक फैल गया था।
सन 1730 में पेशवा बाजीराव ने सस्वाद में पुश्तैनी निवास वाड़े को छोड़कर पुणे में बसने का फ़ैसला किया। पेशवा बाजीराव ने पुणे के एक गांव में मछुआरों और बुनकरों से पांच एकड़ ज़मीन ली और बदले में उन्हें मंगलवार पेठ क्षेत्र में जगह दे दी। शनिवार, दस जनवरी सन 1730 को बाजीराव-प्रथम ने नये वाड़े की नींव रखी। क्योंकि इस दिन को पवित्र माना गया था। दो मंज़िल और तीन चौक वाला महल दो साल में बनकर तैयार हो गया। इसके निर्माण में कुल 16,110 रुपये ख़र्च हुए थे।
हिंदू रीति-रिवाज के साथ 22 जनवरी सन 1732 को गृह प्रवेश हुआ और दिलचस्प बात ये है कि वो दिन भी शनिवार था। ज्योतिषीय कारणों से महल का नाम भी शनिवार वाड़ा रखा गया।
सन 1728 में पेशवा बाजीराव-प्रथम ने राजा छत्रसाल बुंदेला की बेटी मस्तानी से शादी कर ली लेकिन बाजीराव के परिवार और पुणे के रुढ़िवादी ब्राह्मणों ने ये शादी स्वीकार नहीं की। शादी के बाद मस्तानी जब महल में रहने आईं तो उनके लिये महल के एक तरफ़ अलग से कमरे बनवा दिए गए जिसे मस्तानी महल कहा जाता था। इस महल में जिस दरवाज़े से होकर जाया जाता था उसे मस्तानी दरवाज़ा कहते थे जो आज भी मौजूद है। महल के भीतर की साज़िशों को देखते हुये बाजीराव ने महल से कुछ दूर कोठरुड़ में मस्तानी के लिये अलग से एक घर बनवा दिया जहां मस्तानी अपनी मृत्यु (1740) तक रहीं।
सन 1740 में पेशवा बाजीराव-प्रथम की मृत्यु के बाद उनके पुत्र बालाजी बाजीराव, जिन्हें नाना साहेब भी कहा जाता था, पेशवा बन गये। नाना साहेब के शासनकाल में मराठा साम्राज्य का ख़ूब विस्तार हुआ और ये उत्तर में एटक से लेकर दक्षिण में तंजोर तक फैल गया। इस दौरान पुणे न सिर्फ़ मराठा साम्राज्य की राजनीतिक राजधानी बन गया था बल्कि महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र के रुप में उभर गया था।

बालाजी बाजीराव (1740-1761) ने महल में कई बदलाव किये और इसे और सुंदर बनाया। इसे भव्य बनाने में उन्होंने अपना ज्ञान और पैसा दोनों लगाये। महल के कई महत्वपूर्ण निर्माण कार्य नाना साहेब पेशवा के ज़माने में हुये। उस समय महल में उनके परिवार के बीस सदस्य रहते थे। उपलब्ध दस्तावेज़ों के अनुसार उस समय शनिवार वाड़ा परिसर में दस महल और पांच गेस्ट हाउस हुआ करते थे।
जनवरी सन 1761 में, शनिवार वाड़ा में तब दुखों का पहाड़ टूट पड़ा जब नाना साहेब के सबसे बड़े बेटे विश्वासराव और चचेरा भाई सदाशिवराव भाऊ पानीपत में अहमदशाह अब्दाली की सेना के साथ हुये युद्ध में मारे गए। इस त्रासदी से दुखी नाना साहेब ने भी कुछ महीने बाद यानी 23 जून सन 1761 को दम तोड़ दिया। उनकी मृत्यु के बाद उनके दूसरे पुत्र माधवराव पेशवा बने। उस समय माधवराव महज़ 16 साल के थे और उन्हें उनके चाचा रघुनाथराव की साज़िशों का सामना करना पड़ रहा था। दुर्भाग्य से माधवराव की भी तपेदिक (टीबी) से सन 1772 में मृत्यु हो गई। मृत्यु के बाद उनका छोटा भाई नारायणराव उनका उत्तराधिकारी बना।

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