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Скачать или смотреть मेघवाल, जाटव, चमार जाति का इतिहास |History of meghwal, jatav caste|जाटव समाज के खास व्यक्ति

  • Gyanoday
  • 2024-11-15
  • 3250
मेघवाल, जाटव, चमार जाति का इतिहास |History of meghwal, jatav caste|जाटव समाज के खास व्यक्ति
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Описание к видео मेघवाल, जाटव, चमार जाति का इतिहास |History of meghwal, jatav caste|जाटव समाज के खास व्यक्ति

‪@aloksandesh‬ जाटवजाति का इतिहास वास्तव में बहुत जटिल और विवादित है!
डॉ. दयाराम आलोक के अनुसार, जाटव जाति की उत्पत्ति चंद्रवंशी राजपूत से हुई थी और उन्हें क्षत्रिय समुदाय में गिना जाता था, लेकिन आंतरिक द्वन्द्व के चलते उन्हें क्षत्रिय समुदाय से अलग कर दिया गया और शुद्र जाति में गिना जाने लगा।
लेकिन यह कहानी विवादित है और इसका उल्लेख किसी भी ऐतिहासिक पुस्तक या ग्रंथ में नहीं मिलता है। इसलिए इस कहानी को पूर्ण सत्य नहीं माना जा सकता है।
जाटव जाति का इतिहास प्राचीन भारत के समय से अस्तित्व में रहा है, और इसे चमार और चर्मकार नाम से जाना जाता था। लेकिन इस जाति की उत्पत्ति और इतिहास के बारे में अलग-अलग मत हैं।
यह जानकारी जाटव जाति के इतिहास और संस्कृति को समझने के लिए बहुत उपयोगी है, लेकिन इसकी सत्यता को सत्यापित करने के लिए और अधिक शोध की आवश्यकता है।
वर्तमान समय में इनकी मुख्य जनसंख्या 'उत्तर प्रदेश, कानपुर, मेरठ, इलाहाबाद, वाराणसी आदि शहरों में अधिक है। 2001 की जनगणना के अनुसार चमार जाति की संख्या उत्तर प्रदेश में 16% पंजाब में 14% और हरियाणा में 12% है। वर्तमान समय में इस जाति के लोग अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में आते हैं। चमार जाति के लोग प्राचीन समय से शूद्र समुदाय की श्रेणी में शामिल किये जाते रहे हैं। प्राचीन राजा महाराजाओं के समय से इस जाति के लोगों का मानसिक और शारीरिक रूप से शोषण होता रहा है।
चमार जाति के लोगों का परंपरागत व्यवसाय चमड़े की वस्तुओं का निर्माण कार्य है, लेकिन चमड़े के व्यवसाय के चलते इस जाति के लोगों को छुआछूत की श्रेणी में रखा गया।
जाति इतिहासकार डॉ.दयाराम आलोक के अनुसार ऐसा माना जाता है कि चमार जाति के लोग भारत में अंग्रेजों की हुकूमत से पहले काफी धनवान हुआ करते थे, लेकिन अंग्रेजी हुकूमत के रहते हुए दबंग और सत्ताधारी लोगों ने उनका शोषण किया और इन्हें शूद्र जाति की तरह इस्तेमाल किया।
अंग्रेजों से देश को आजादी मिलने के बाद सभी अनुसूचित जनजातियों एवं दलितों के साथ छुआछूत रोकने के लिए डॉ भीमराव अंबेडकर ने संवैधानिक रूप से कई सख्त कानून व्यवस्था का निर्माण किया। डॉ भीमराव अंबेडकर ने चमार जाति की आर्थिक और मानसिक मनोदशा को सुधारने के लिए संविधान में आरक्षण व्यवस्था का निर्माण किया। अनुसूचित जनजाति के लोगों के लिए आरक्षण व्यवस्था के बाद चमार जाति में तेजी से आर्थिक सुधार देखने को मिला, इस आर्थिक सुधार का पूरा श्रेय डॉ भीमराव अंबेडकर को जाता है।
चमार (जाटव) जाति की वर्तमान स्थिति-
भारत के सभी राज्यों में चमार जाति की 150 से भी ज्यादा उपजातियां पाई जाती हैं जिनमें 'कुरीन, संखवाद, दोहरे, ततवा, मोची' आदि शामिल हैं। वर्तमान समय में चमार जाति के लोगों की स्थिति पहले से कई गुना बेहतर है, अब इस जाति के लोग चमड़े के व्यापार के अलावा 'राजनीति, विज्ञान, सिनेमा जगत, व्यापार और खेती आदि सभी क्षेत्रों में प्रगति के पथ पर अग्रसर हैं।
इस बात का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं, कि वर्तमान समय में ब्राह्मण जाति के बाद अखिल भारतीय सेवाओं में सबसे अधिक चमार जाति के लोग शामिल हैं। मध्यकाल में यह जाति छुआछूत और अपवित्र जातियों में शुमार की जाती थी, लेकिन अब यह स्थिति पूर्ण रूप से बदल गई है। चमार जाति के लोग मुख्यतः हिंदू गांव क्षेत्रों में रहते हैं। इस जाति को भारतीय संविधान के अनुसार अनुसूचित जनजाति में शुमार किया जाता है।

रीत रिवाज और रहन-सहन

चमार जाति के रहन-सहन और रीति-रिवाज की बात करें तो मध्यकाल में चमार जाति के लोगों में शिक्षा की कमी के कारण रहन-सहन में काफी दोष थे, लेकिन वर्तमान समय में इस जाति के लोगों में काफी सुधार देखने को मिल रहा है। अब इस जाति के लोग बड़े स्तर पर सामाजिक हो चले हैं, चमार जाति का एक बड़ा हिस्सा गौतम बुध और संत रविदास के उपदेशों का पालन करता है। इस जाति के लोगों का मुख्य आदर्श डॉ भीमराव अंबेडकर हैं।

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