HIMALAYAN HIGHWAYS| उत्तराखंड का गाँव जहां आज तक मोबाईल पर नहीं बजी घंटी | उदयपुर सौरीगाड़

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हिमालयन हाइवेज। HIMALAYAN HIGHWAYS
इंसान के जीवन में अगर संघर्ष का रास्ता हो तो उम्मीद हमेशा एक प्रेरणा बनकर सहारा देती है। जी हां उत्तराखण्ड के सुदूर में यही संघर्ष आज भी आने वाले कल की बेहतरी की उम्मीद दिखा जाता है। इसीलिए बेहद मुश्किल परिस्थितियां भी यहां इंसानों के हौसले को डिगा नही पाती....


बुनियादी सुविधाओ का अभाव हर वक्त यहां दिलों को मायूस जरूर करता है लेकिन बात जब उल्लास की हो तो हर मायूस मन अपने उत्साह को आगे रख फिर उम्मीद पर जा टिकता है।

आप सोचिए जहां इस डिजिटल दौर में भी मोबाइल फोन पर घण्टी ना बजती हो इंटरनेट से लोगों का वास्ता ना हो और अपने गांव पहुंचने के लिए घण्टो पैदल चलना मजबूरी हो वहां रहने वाले लोग किस मिट्टी से बने होंगे.....


नमस्कार हिमालयन हाइवेज के एक ओर एपिसोड में आपका स्वागत है। उत्तराखण्ड के चमोली जनपद के सुदूर विकासखण्ड देवाल के आखिरी कोने में बसे उदयपुर सौरिगाड में सबसे पहले मासूम तनुजा को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ। उम्मीद करते है कि तनुजा जैसे जैसे अपने जीवन के सफर में आगे बढ़ेगी तब तक शायद बुनियादी सुविधाओं से सौरिगाड जुड़ चुका होगा। नमस्कार हिमालयन हाइवेज के एक ओर एपिसोड में आपका स्वागत है। कुछ समय पहले हमने आपको सौरिगाड उदयपुर से जुड़ा एक एपिसोड दिखाया था आज बात उस एपिसोड से आगे की। उदयपुर सौरिगाड से जुड़े इस नए एपिसोड में हम आपके लिए लेकर आये है बुनियादी सुविधाओं से जूझते गांव में लोगों की पीड़ा और इस पीड़ा से उपजे दर्द को कैसे एक दूसरे के साथ मिलकर भूलने की कोशिश करते स्थानीय लोग। साथ ही पहाड़ों के सुदूर में तेजी से बदलती लोकसंस्कृति ओर त्याहारों के साथ अब जन्मदिन का भी जश्न मनाते लोग। तो आइए शुरू करते है आज का यह खास सफर इस लोकगीत के साथ।


उदयपुर सौरिगाड तक पहुंचने के लिए सबसे पहले आपको पहुंचना होता है चमोली जनपद के देवाल बाजार में। लेकिन यहां पहुंचने के बाद भी आप उदयपुर पहुंच जाए यह तभी सम्भव है जब आप दोपहर होने तक पहुंचे। दोपहर बाद यहां से वाहनों की उपलब्धता बेहद मुश्किल होती है। देवाल बाजार से पिंडर घाटी के लिए शुरू हुआ ये सफर कुछ सालों पहले आपको मानमती तक पहुंचाता था लेकिन अब निर्माणाधीन सड़क से होते हुए आप चिन्याली तक पहुंचते है। चिन्याली में गाड़ी से उतरकर यहां से सामान खच्चरों की मदद से गांव पहुंचाना मजबूरी है। इंसानों के लिए यहां से पैदल सफर एकमात्र विकल्प है। बेहद ऊंची पहाड़ियों के बीच में बना रास्ता एक बार के लिए दहशत पैदा कर देता है लेकिन उदयपुर गांव के लोग अब इस खौफ के आदि हो चुके है। बेहद खतरनाक रास्ते से शुरू हुआ ये सफर लम्बी दूरी तय कर उदयपुर गांव की सीमा में पहुंचता है और इसके साथ ही यहां जीवनशैली की वो झलक दिखनी शुरू होती है जो वर्षो से पहाड़ों के जीवन का आधार रही है। पशुपालन ओर कृषि के साथ यहां जीवन हर दिन आगे बढ़ता है ओर इन सबके साथ इंसानों का एक दूसरे से गहरा रिश्ता आज भी मन को लुभाता है। कुछ दिनों बाद ही सही गांव लौट रही महिलाएं अपने बुजुर्गों को पूरा सम्मान देती नजर आती है बदले में इन्हें बुजुर्गों से भरपूर स्नेह मिलता है। दिनभर की थकान के बाद भी गांव में आयोजित आयोजन में सहभागिता अनिवार्य हो जाती है ओर यहाँ वो दृश्य नजर आते है जो यहां तो सामान्य लगते है लेकिन पहाड़ों से दूर किसी महानगर में आप ये एपिसोड देखें तो आपको वो दिन जरूर याद आएंगे जब आप ऐसे ही किसी आयोजन में शामिल हुआ करते थे।

बुनियादी सुविधाओं से जूझते उदयपुर गांव में समस्याओं की भरमार है। मोबाइल नेटवर्क ओर इंटरनेट सेवा ना होने से यहां आम लोगो को परेशानी तो होती है लेकिन सबसे ज्यादा परेशानी बुजुर्गों को है। बैंक से लेकर सरकारी कार्यालयों में मामूली काम के लिए भी इन्हें लम्बा सफर तय कर देवाल पहुंचना होता है। परेशानी स्वास्थ्य सुविधाओं की भी है बीमार मरीज को देवाल तक पहुंचाना अपने आप में चुनौती है साथ ही देवाल में इलाज मुहैया हो जाय ये उससे भी बड़ी चुनौती है। आज के दौर में मोबाइल फोन पर एक अदद घण्टी या हैलो कहने के लिए जंगलों में नेटवर्क तलाश करना पड़े तो आप समझ सकते है कि प्रगति के पथ पर कौन अग्रसर है।

पहाड़ों में जीवन के साथ बुनियादी सुविधाओं का दुख तो है लेकिन एक खूबसूरती भी है कि यहां बुनियादी सुविधाओं को लेकर मातम का माहौल नही दिखता। इसीलिए तो इन विकट परिस्थितियों में भी यहां जीवन हमेशा मुस्कुराता ओर गुदगुदाता नजर आता है। मुश्किलों से मुकाबला करना यहां आदत नही बल्कि खून में शामिल है और इसीलिए यहां उम्मीद से नाउम्मीद कभी नही हुआ जाता। गांव में आधुनिकता के रंग स्थानीय लोगों के उत्साह को दर्शाते हैं इसीलिए तो यहां जीवन के कई बसन्त पार कर चुकी महिलाएं भी अपनी जी तोड़ मेहनत के बाद भी मुस्कुराने का माद्दा रखती है। पहाड़ों के जीवन मुश्किल होता था होता है और आगे कब तक ऐसे ही रहेगा कोई नही जानता। लेकिन एपिसोड की शुरुआत में हमने आपको बताया था कि संघर्ष तभी होता है जब बेहतर की उम्मीद आंखे सजाती है। देश की आजादी के सात दशक ओर लग राज्य बनने के दो दशक बाद भी उदयपुर सौरिगाड का ये दुख खत्म होने का नाम नही ले रहा। उम्मीद ही है कि आने वाले समय में यहां सड़क संचार जैसी बुनियादी सुविधाएं पहुंचेगी ओर लोगों को थोड़ा राहत मिलेगी। ऊंचे हिमालय की तलहटी में जीवन ऐसे ही आगे बढ़ने का नाम है और जब तक यहां लोग मौजूद है ये जीवन ऐसे ही मुस्कुराते चेहरों, पारम्परिक रीति रिवाजों के पीछे एक अनसुना दर्द लिए आगे बढ़ता रहेगा।

इससे पहले की आज का एपिसोड यही समाप्त करें नन्ही मासूम तनुजा को एक बार फिर बधाई। उम्मीद करेंगे कि निकट भविष्य में जब हम उदयपुर सौरोगाड से जुड़ा कोई नया एपिसोड आपके लिये लेकर आएं तब तक शायद ये हालात ज्यादा नही तो थोड़ा बदले होंगें। जल्द ही एक नए गांव के साथ आपसे मुलाकात होगी आपको हमारा यह एपिसोड कैसा लगा कृपया कमेंट कर अवश्य बताएं साथ ही हमारे चैनल को अवश्य सब्सक्राइब कीजियेगा।

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