महालक्ष्मी व्रत पूजा विधान
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महालक्ष्मी व्रत रविवार, अगस्त 31, 2025 को
चन्द्रोदय समय - 01:11 पी एम
महालक्ष्मी व्रत प्रारम्भ रविवार, अगस्त 31, 2025 को
महालक्ष्मी व्रत पूर्ण रविवार, सितम्बर 14, 2025 को
सम्पूर्ण महालक्ष्मी व्रत के दिन - 15
अष्टमी तिथि प्रारम्भ - अगस्त 30, 2025 को 10:46 पी एम बजे
अष्टमी तिथि समाप्त - सितम्बर 01, 2025 को 12:57 ए एम बजे
ये हरिद्वार, इंडिया का समय है, अपनी लोकेशन के अनुसार अपना समय और तिथि देखे।
पूजा में जरूरी -
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माँ के पास सोलह सूत्र के डोरे में सोलह गाँठ लगा कर उनका 'लक्ष्म्यै नमः' से हर गाँठ का पूजन करके माँ लक्ष्मी का पूजन करे -
पूजन पंचोपचार, दशोपचार, या षोडशोपचार जैसे आपकी सामर्थ्य हो उस प्रकार से करे। अगर हो सके तो षोडशोपचार विधि से पूजा करे।
पंचोपचार पूजा: गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य
दशोंपचार पूजा: पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र निवेदन, गन्ध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य
शोडशोपचार पूजा: पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, आभूषण, गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, आचमन, तांबूल, स्तवपाठ, तर्पण, नमस्कार
पूजा करने के बाद
“धनं धान्यं धरां हर्म्यं कीर्तिमायुर्यशः श्रियम्। तुरगान् दन्तिनः पुत्रान् महालक्ष्मि प्रयच्छ मे॥”
अर्थ: “हे महालक्ष्मी! मुझे धन, धान्य, भूमि, सुंदर भवन, कीर्ति, दीर्घायु, यश, समृद्धि, घोड़े, हाथी तथा संताने प्रदान करो।”
इस मंत्र से डोरे को दाहिने हाथ में बाँध ले और हरि दूर्वा के १६ पल्लव और १६ अक्षत लेकर महालक्ष्मी व्रत की कथा सुने। इस तरह से हर दिन करके अश्विन कृष्ण अष्टमी को विसर्जन करे। अगर आप पहले से स्थापित प्रतिमा में माँ की पूजा कर रहे है तो उसका विसर्जन का करे।
स्तुति स्तोत्र:
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श्री सूक्त यंत्र अर्चन
संपुटित श्रीसूक्त
प्रति ऋचा संकल्पित श्रीसूक्त
श्री लक्ष्मी सूक्तम
श्री महालक्ष्मी सूक्तम
श्री लक्ष्मी द्वादशनामानि स्तोत्रम्
श्रीमहालक्ष्मी हृदयम्
सद्य : फलदा लक्ष्मीस्तव हृदयम्
श्रीमहालक्ष्मी पंजर स्तोत्र
लक्ष्मी पंजर स्तोत्रम्
श्री लक्ष्मीस्तोत्रम्
श्री सिद्धलक्ष्मी स्तोत्रम्
श्री महालक्ष्म्यष्टकस्तव :
श्रीलक्ष्मी सहस्ननाम स्तोत्रम्
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अंग पूजा
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रोली, कुंकुम मिश्रित अक्षत-पृष्पोंसे नीचे दिये गए मंत्रों से एक एक मंत्र पढ़ कर पूजा करे।
जैसे “ॐ चपलायै नमः, पादौ पूजयामी” पढ़कर चरणों में रोली, अक्षत, पुष्प चढ़ाये उसी तरह से बाक़ी पूजा संपन्न करे -
ॐ चपलायै नमः, पादौ पूजयामि। - पैर
ॐ चञ्चलायै नमः, जानुनी पूजयामि। - घुटने
ॐ कमलायै नमः, कटिं पूजयामि। - कमर
ॐ कात्यायन्यै नसः, नाभिं पूजयामि। - नाभि
ॐ जगन्मात्रे नमः, जठरं पूजयामि। - पेट
ॐ विश्ववल्लभायै नमः, वक्षःस्थलं पूजयामि। - वक्षस्थल
ॐ कमलवासिन्यै नमः, हस्तौ पूजयामि। - हाथ
ॐ पद्माननायै नमः, मुखं पूजयामि। - मुख
ॐ कमलपत्राक्ष्यै नमः, नेत्रत्रयं पूजयामि। - तीनो नेत्र
ॐ श्रियै नमः, शिरः पूजयामि। - मस्तक
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, सर्वाङ्गं पूजयामि। - सम्पूर्ण अंग
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मंत्र साधना:
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(मंत्र साधना नियम और अष्टांग योग अपेक्षित करती है। न्यास, यंत्र पूजा, ध्यान - ये सब जरूरी है पुरुशचरण के लिए, सबको जान समझ कर मंत्र, देवता, और गुरु में श्रद्धा और सम्मान के बाद ही आगे बढ़िए)
शारदा तिलक में मन्त्र इस प्रकार है : (श्रीं ) इत्येकाक्षरबीजमन्त्र:। - “श्रीं” यह एकाक्षर बीजमन्त्र है।
यह चिंतामणि के समान चिंतित मनोरथ को प्रदान करता है।
श्रीं - बीज मंत्र
ऐं श्रीं ह्रीं क्लीं
ॐ नमः कमलवासिन्यै स्वाहा
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः
ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सौ: जगत्प्रसूत्यै नमः
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं कमलवासिन्ये स्वाहा - देवी भागवत पुराण
श्रीसूक्त - लक्ष्मी तंत्र में श्री सूक्त की फलश्रुति में लिखा है - यह श्रीसूक्त अत्यंत कल्याणकारक है, समस्त दरिद्रता को दूर करने वाला है। अतः कर्मकाल में मनुष्य इस श्रीसूक्त की विधि अन्यों को भी सुनाए। यह श्रीसूक्त फल प्रदान करने में मनुष्यों को समर्थ बनाता है, सुनने वाले को पुष्ट करता है। दरिद्रता को नष्ट कर देता है। यह श्रीसूक्त कर्म, मन, और वाणी से अभ्यास किए जाने पर बहुत बड़े बड़े पापो से रक्षा करता है और निश्चित रूप से अभीष्ट श्री प्रदान करता है।
जो कृतघ्न हो, जो तंत्र में श्रद्धा न रखता हो, जो निंदनीय हो, दूषित हो, उसे लक्ष्मी तंत्र का उपदेश कभी भी ना दे। जो भगवान वासुदेव का भक्त न हो ऐसे अवैष्णव को, जो मुझ में भक्ति ना रखता हो ऐसे शक्तिरहित को भी इस तंत्र का उपदेश ना करे। यह तंत्र शीलवान (अर्थात् चरित्रवान और संयमी हो) को, सुस्नात (शुचिता - शुद्ध आचरण) को, तथा तपस्वी को देना चाहिए। -- लक्ष्मी तंत्र
तपस्वी - तपस्वी वह है जो इन तीनों स्तरों पर तप (कायिक, मानसिक, और वाचिक तप) करता है, और जिसके अंदर धैर्य, तेज, संयम और ईश्वरीय संकल्पशक्ति विकसित हो चुकी हो। तंत्र में तपस्वी वह है जो साधना में आने वाली उग्र परिक्षाओं (भय, मोह, रोग, आलस्य) से डिगे नहीं, और अपने संकल्प तथा गुरु-निर्देश पर अडिग रहता है। वह भीतर की "आग" को साधकर शक्ति को जागृत करता है।
कृतघ्न = वह व्यक्ति जो किसी के उपकार, मदद, भलाई या कृपा को भूल जाए या उसका मूल्य न समझे। कृतघ्न वह होता है जो अहसान फरामोश, यानी उपकार का प्रतिदान न करने वाला या उपकार करने वाले के साथ ही बुरा व्यवहार करने वाला। धर्मग्रंथों में कृतघ्नता (अहसान न मानना) को बहुत बड़ा दोष माना गया है। महाभारत में कहा गया है कि कृतघ्न व्यक्ति धीरे-धीरे अपना तेज, धन और सम्मान खो देता है। गरुड़ पुराण में तो यहाँ तक कहा गया है कि कृतघ्न को नरक का भागी बनना पड़ता है।
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