सोलह वर्ष की आयु से मैं बोल रहा हूँ : अब, मेरे प्रवचन का अंतिम शब्द

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विश्व के पाँचवें मूल जगद्गुरु एवं काशी विद्वत परिषत् द्वारा जगद्गुरूत्तम की उपाधि से विभूषित श्री कृपालु जी महाराज को 'सनातनवैदिकधर्मप्रतिष्ठापन सत्सम्प्रदाय परमाचार्य' की उपाधि से भी अलंकृत किया गया है। इस दृष्टि से श्री महाराज जी के श्रीमुख से निकले दिव्य श्रीवचन ही वास्तविक सनातन वैदिक धर्म के उद्घोषक हैं। श्री महाराज जी ने हम कलियुगी जीवों के कल्याणार्थ समस्त वेद शास्त्रों का सार अपने दिव्य प्रवचनों में अत्यंत सरल एवं रोचक शैली में प्रस्तुत किया है।
यह वीडियो बहुत विशेष है। इसमें समस्त शास्त्र वेदों का सार अत्यंत संक्षेप में बताया गया है।
श्री महाराज जी के श्रीमुख से—

"रोकर भगवान को पुकारना सबसे बड़ी साधना है।
जिसने ये साधना नहीं मानी, वो सब शास्त्र वेद का ज्ञान व्यर्थ है और उसको अनंत कोटि कल्प तक भगवत्प्राप्ति नहीं हो होगी, और न आनंद मिलेगा।
बस इतना-सा शास्त्र वेद का ज्ञान है, इसके अलावा अगर कोई कहे, और भी है, मेरे पास भेज देना।"

—जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज

पूरी सिद्धांत विस्तार सर जानने के लिये यह वीडियो अवश्य देखिये।
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"रोकर भगवान को पुकारना सबसे बड़ी साधना है।
जिसने ये साधना नहीं मानी, वो सब शास्त्र वेद का ज्ञान व्यर्थ है और उसको अनंत कोटि कल्प तक भगवत्प्राप्ति नहीं हो होगी, और न आनंद मिलेगा।
बस इतना-सा शास्त्र वेद का ज्ञान है, इसके अलावा अगर कोई कहे, और भी है, मेरे पास भेज देना।"

—जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज

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